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गजल -  वही साखी पुरानी है...

1222, 1222, 1222, 1222

वही काठी, वही जज्बा, वही लाठी पुरानी है।
हसीं बुत मिल गया जिसमें वही मिट्टी पुरानी है।

अॅंधेरों को मिटाकर रोशनी के साथ जलता जो,
वही सूरज, वही चन्दा, वही भट्टी पुरानी है।

जगा कर देश को जिसने बढाया मान-मर्यादा,
वही पत्रक, वही पोथी, वही रद्दी पुरानी है।

दिला कर मंजिले पर्वत शिखर का कद किया बौना,
वही धागा कलाई का वही रस्सी पुरानी है।

जला कर दीप नयनों के दिलों को जोडते रब से
खुदा-श्रीराम-ईसा की वही बस्ती पुरानी है।

मिटा कर भेद-भावों को पिरोया प्यार मानव में,
कबीरा-सूर-तुलसी की वही साखी पुरानी है।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 12, 2014 at 5:07am

आ0 सौरभ सर जी, शिरोमणि भाई,, जवाहर भाई रमेश भाई, जितेन्द्र भाई, मीना जी, गोपाल भाई, धामी भाई भण्डारी भाई, भुवन भाई, नीरज भाई जी, आप सभी का बहुत बहुत आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 7:33pm

आदरणीय गोपालनारायनजी के कहे से मैं भी सहमत हूँ.  साखी कबीर से जुड़ी है.

शुभ-शुभ

Comment by भुवन निस्तेज on August 5, 2014 at 6:06pm

बेहद उम्दा इस गजल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय....

Comment by Neeraj Nishchal on August 5, 2014 at 3:58pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी आपकी ये ग़ज़ल तो अनमोल है
ऐसी अद्भुत प्रतिभा देखता हूँ शून्यवत रह जाता हूँ
तारीफ करूँ क्या उसकी जिसने ये ग़ज़ल बनायी ।
और तारीफ करूँ क्या उसकी जिसने इस ग़ज़ल बनाने वाले को बनाया ।
सादर , आदरणीय केवल प्रसाद जी ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 11:14am

जला कर दीप नयनों के दिलों को जोडते रब से
खुदा-श्रीराम-ईसा की वही बस्ती पुरानी है।

मिटा कर भेद-भावों को पिरोया प्यार मानव में,
कबीरा-सूर-तुलसी की वही साखी पुरानी है। ---------- लाजवाब ! गज़ल के लिये और इन दो शेर के लिये बधाइयाँ , आ. केवल भाई ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2014 at 10:59am

आ० केवल भाई इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 4, 2014 at 12:40pm

केवल भाई i कविता बहुत सुन्दर बन पडी है i आपको बधाई  i अंतिम पंक्ति के बारे में जहाँ तक मेरी समझ है साखी का सम्बन्ध केवल कबीर से है तुलसी और सूर र्से नही i अतः पंक्ति में संशोधन अपेक्षित है i

 

Comment by Meena Pathak on August 4, 2014 at 11:34am

बहुत सुन्दर गज़ल ... बधाई आ० केवल जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2014 at 9:58am

बहुत अच्छी गजल कही आपने आदरणीय केवल जी. हरेक शे'र एक सुंदर सन्देश देता हुआ, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by रमेश कुमार चौहान on August 3, 2014 at 10:09pm

बहुत सुंदर रचना सभी बंध आनंददायी संदेशपरक हैं, हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

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