For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी तू भी अजीब है -- डॉo विजय शंकर

जिंदगी भी अजीब है
जब भी उदास होती है ,
बेहद पास होती है |
खुश होती है तो ,
हमीं से दूर होती है ||
खुश हो तो लापरवाह इतनी
कि खुद हमसे नहीं सम्हलती ,
उदास होती है तो हमें ही
नहीं संभाल पाती है ||
जिंदगी अपनी होते हुये भी
क्यों अंजानी सी लगती है
दूसरे की जिंदगी क्यों अच्छी ,
जानी पहचानी सी लगती है ||
साथ बैठें तेरे कभी आ
कुछ बात करें, तुझी से
आ जिंदगी तुझको
थोड़ा देंखें करीब से |
इक हम हैं जो जीते हैं
सिर्फ तेरे ही दम से
इक तू है की मिलती है
सिर्फ और सिर्फ नसीब से ||

मौलिक एवं अप्रकाशित
--------------

डॉo विजय शंकर

Views: 466

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 27, 2014 at 10:33am
आदरणीय डॉ o प्राची सिंह जी , आपकी बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । आपने जो प्रश्न रक्खा है , वह बहुत सही है , समर्थ के लिए होना तो यही चाहिए कि जिंदगी पलक पांवड़े बिछा कर हर सौगात हाथों में लेकर प्रतीक्षा में हमारी बाँट जोहे । आशीर्वाद भी हम ऐसे ही देते हैं कि सफलता तुम्हारे पीछे पीछे भागे । बस सिर्फ एक बात है कि आने वाले हर पल की कोई खबर नहीं होती और जिंदगी एक पहेली सी बानी रहती है । शायद यही जिंदगी का सबसे सुन्दर रूप है , हर आनेवाला पल एक उत्सुकता ,
एक जिज्ञासा , एक obsessoin लिए आता रहे और हम उसे वैसे ही जियें । इसी में जीवन की आशाएं निहित रहती हैं ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 25, 2014 at 11:57am

आ जिंदगी तुझको
थोड़ा देंखें करीब से |
इक हम हैं जो जीते हैं
सिर्फ तेरे ही दम से
इक तू है की मिलती है
सिर्फ और सिर्फ नसीब से ||................अक्सर सिर्फ एक कदम के फासले से सताती है ज़िंदगी और हम उसके पीछे भागते ही रह जाते हैं...उम्र निकल जाती है. क्यों न ऐसा हो कि ज़िंदगी ही राह तके..... क्या मुमकिन है?

ऐसे ही ख़याल उठे आपकी अभिव्यक्ति पढ़ कर..समझ कर.

इस प्रस्तुति पर दिली बधाई स्वीकारिये आ० डॉ० विजय शंकर जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 7:18pm
आ o जीतेन्द्र ' गीत ' जी ,
पंक्तियाँ आपको अच्छी लगीं , धन्यवाद . कष्ट और दुख: तो सभी की जिंदगी में होते हैं , पर दूसरे के कष्ट तो हम देख नहीं पाते , उसकी सुखमय जिंदगी हमें अपनी जिंदगी से अधिक आकर्षक लगती है . यह कहना चाहा है .
सादर.
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:35am

जिंदगी अपनी होते हुये भी
क्यों अंजानी सी लगती है
दूसरे की जिंदगी क्यों अच्छी ,
जानी पहचानी सी लगती है

सच! शायद दुसरे हमें अपने जीवन में आये उतार-चढाव का परिणाम व् उनमे अपने निर्णय बता देते है, और हम अपनी समस्यायों में ही उलझे पड़े रहते है. हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय डा.विजय जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 17, 2014 at 9:42pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी ,
सादर.
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 17, 2014 at 9:40pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राजेश कुमारी जी ,
सादर.
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 17, 2014 at 9:38pm
बहुत बहुत धन्यवाद आo गोपाल जी ,
सादर.
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 17, 2014 at 9:13pm

जिंदगी अपनी होते हुये भी
क्यों अंजानी सी लगती है
दूसरे की जिंदगी क्यों अच्छी ,
जानी पहचानी सी लगती है ||

वही तो… 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 17, 2014 at 9:09pm

साथ बैठें तेरे कभी आ
कुछ बात करें, तुझी से
आ जिंदगी तुझको
थोड़ा देंखें करीब से |
इक हम हैं जो जीते हैं
सिर्फ तेरे ही दम से
इक तू है की मिलती है
सिर्फ और सिर्फ नसीब से ||----वाह्ह्ह बहुत सुन्दर विचार ,बढ़िया अभिव्यक्ति ,बधाई आपको |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 17, 2014 at 1:07pm

विजय जी

जिन्दगी के अबूझ फलसफे  को आपने निज के अनुभव से एक नयी तासीर दी  i इसकेलिए आपको धन्यवाद i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
19 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service