For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल-खोलकर खिडकी तेरा अहसास करती हूँ--उमेश कटारा

वो तेरे नखरे तुझे कुछ खास करते हैं

आज भी हम तो मिलन की आस करते हैं

इन हवाओं में महकती है तेरी खुशबू
खोलकर खिडकी तेरा अहसास करते हैं

बन गयी नासूर मुझको खामुशी मेरी

ये जुबां वाले मेरा उपहास करते हैं

बेवफाई कर नहीं सकता सनम मेरा
लोग यूँ ही आजकल बकवास करते हैं

कौन आगे बोलता है अब सितमगर के
बैठते हैं साथ में और लाश करते हैं

उमेश कटारा

मौलिक एंव अप्रकाशित 

Views: 642

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on December 20, 2013 at 9:27am

सही कहा निलेश भाई साहब मुझे भी अटपटा लग रहा है पर कोई दूसरा लफ्ज सूझ नहीं रहा था

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2013 at 8:57am

ग़ज़ल में काफ़िया "आस" है ..खास/ आस/ उपहास आदि ..इसमें लाश का होना ..काफ़िये के हिसाब से सही नहीं लगता है.
सादर   

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2013 at 7:46am

इन हवाओं में महकती है तेरी खुशबू
खोलकर खिडकी तेरा अहसास करते हैं

आदरणीय उमेश भाई , सुन्दर गज़ल कही है

Comment by umesh katara on December 19, 2013 at 9:28pm

कुछ तो कहा है गिरिराज जी मिसरे में -------साथ बैठकर भी लोग आजकल लाश कर देते हैं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 19, 2013 at 7:26pm

आदरणीय उमेश भाई , सुन्दर गज़ल कही है , अपको बधाई ॥ आदरणीय अविनाश भाई का प्रश्न जायज़ लगता है ,वो मिसरा कुछ कह नही पाया है ॥

Comment by annapurna bajpai on December 19, 2013 at 2:13pm

आ० उमेश कटारा जी सुंदर गजल के लिए बधाई , आखिरी लाइन  जिसे  आ० अविनाश जी ने भी इंगित किया है , को समझाने का आग्रह है । सादर 

Comment by savitamishra on December 19, 2013 at 10:22am

बन गयी नासूर मुझको खामुशी मेरी

ये जुबां वाले मेरा उपहास करते हैं......खुबसूरत

Comment by AVINASH S BAGDE on December 19, 2013 at 10:19am

बैठते हैं साथ में और लाश करते हैं=????????

Comment by AVINASH S BAGDE on December 19, 2013 at 10:18am

इन हवाओं में महकती है तेरी खुशबू
खोलकर खिडकी तेरा अहसास करते हैं..wah! Umesh ji...

Comment by ajay sharma on December 18, 2013 at 10:19pm

बन गयी नासूर मुझको खामुशी मेरी

ये जुबां वाले मेरा उपहास करते हैं..........khoobsoorat 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service