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दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,

दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,
थे होशमंद, न थे दीवाने से पहले
*इश्क का शहर

सब्ज़ बाग़, सुर्ख गुल हम देख ही न पाये,
खिजां आ गई बहार आने से पहले

बज़्म* में उनकी मुहब्बत एक तमाशा है,
मालूम न था हमें, वहां जाने से पहले
*बज़्म- महफिल

मेरा नाखुदा* तो नाशुक्रा निकला,
रज़ा भी न पूछी, डुबाने से पहले
*नाखुदा- मल्लाह, नाविक

कैस, फरहाद, रांझा तो बीते दिनों की बात है,
राब्ता* रखिये जनाब, नए ज़माने से पहले
*राब्ता- ताल्लुक, संपर्क

वादी-ऐ-मुहब्बत की रंगतें तो धोखा है,
ये चंद शेर पढ़ लेना दिल लगाने से पहले

दुष्यंत................

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Comment by ABHISHEK TIWARI on May 22, 2010 at 4:20pm
दिल मत देना दोस्त दिल लगाने से पहले ,
क्योंकि चाँद अल्फ़ाज़ बदल जाते हैं ,दिल मिलाने से पहले , बहुत खुब्शुरत ग़ज़ल है
Comment by दुष्यंत सेवक on May 22, 2010 at 3:20pm
biresh ji, dharam ji, yograj ji, preetamji, khushbooji, aleem ji, bagi ji, guru ji, admin ji, kanchan ji tah e dil se aabhaar apki mulyavaan pratikriyaon se maiin anugrahit hua.....
Comment by Biresh kumar on May 21, 2010 at 2:32pm
very nice!!!!!
Comment by धर्मेन्द्र शर्मा on May 21, 2010 at 10:57am
Bahoot khoob likha dushyant bhai.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 21, 2010 at 10:02am
थोडा वजन पर और ध्यान दो दुष्यंत भाई ! तीसरे और आखरी शेयर में "सकता" है - जरा दोबारा ध्यान से पढ़कर इसको दूर करने क़ी कोशिश करो !
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 21, 2010 at 9:58am
वादी-ऐ-मुहब्बत की रंगतें तो धोखा है,
ये चंद शेर पढ़ लेना दिल लगाने से पहले
waah dushyant bhai waah....ekdam lajawab hai....ye last ki 2 lines to ekdam dil ko chu lene wali hai....
bahut accha likh rahe hian aap////aisehi likhte rahe...aapki agli rachna ka intezaar rahega..
Comment by Khushboo on May 21, 2010 at 9:57am
दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,
थे होशमंद, न थे दीवाने से पहले
*इश्क का शहर
bahut badhiya dushyant jee...behtareen...aisehi likhte rahe.......
Comment by aleem azmi on May 20, 2010 at 9:49pm
bahut nirala andaaz hai aapka ....bahut umda ghazal aapne likhi hai jo kabile gaur hai
upar wale ne aapko bahut acha ilm dia hai bas aise hi behtareen andaaz me likhte rahe
aapki ye line to bahut hi khubsurat haiii
वादी-ऐ-मुहब्बत की रंगतें तो धोखा है,
ये चंद शेर पढ़ लेना दिल लगाने से पहले

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 20, 2010 at 8:36pm
मेरा नाखुदा* तो नाशुक्रा निकला,
रज़ा भी न पूछी, डुबाने से पहले

दुष्यंत भाई बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कहा है आपने, बहुत खूब , शानदार है ये आपकी रचना |
Comment by दुष्यंत सेवक on May 20, 2010 at 1:59pm
ji ji .....mujhe laga tha ki sabke liye sweekarya banane ke liye ye avashyak hai isliye kar diya...shukriya admin ji .....

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