For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बचपन में हम कागज की नाव बनाया करते थे
पानी में उसे तैराया करते थे
कागज के हेलिकाप्टर उड़ाया करते थे
रेत के घर बनाया करते थे
निर्जीव गुड्डे- गुड्डियों की शादी रचाया करते थे
तितलियाँ प्यारी लगतीं थीं
वस्तुएं जिज्ञासा पैदा
करतीं थीं
बचपन का उमंग था
हौंसलों में दम था
यह आशंका नहीं थी
कि कागज की नाव डूबती है या नहीं
हेलिकाप्टर उड़ता है या नहीं
रेत का घर टिकता है या नहीं
तितलियाँ सहचर होती हैं या नहीं
ज्यों ज्यों हम बड़े हए
स्कूल कॉलेज में किताबों को पढ़े हुए
ज्ञान का विकास होता गया
हौंसलों का नाश होता गया
जिज्ञासा मृत होती गयी
निर्भीकता की जगह कायरता घर करती गयी
अब हम कुछ भी नया करने से डरते हैं
कोई हौंसला करने में सौ बार सोंचते हैं
आगा- पीछा सब देखते हैं
हानि- लाभ सब परखते हैं
वो अनहोनी में होनी करने की चाहत कहाँ गयी
रात में परियों के आवाज की खनखनाहट कहाँ गयी
क्या हम सचमुच बड़े हो गये
या उम्र- ठग के द्वारा ठगे गये
या हम एक भला आदमी होने से रह गये
या मूढ़ता अज्ञानता की खाई में धंसते चले गये
आखिर हम क्या हो गये?

(रचना पूर्णत: मौलिक व अप्रकाशित है)

Views: 709

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 9:21pm

प्रिय विन्ध्येश्वरी जी ..

बचपन की निश्छलता और उन्मुक्तता से दूर होते होते इस बड़े होते जाने में क्या हासिल किया आखिर हमने इसकी विवेचना करती अभिव्यक्ति

यह सम्प्रेषण काव्य नहीं है..बहुत सपाटबयानी सी हैं प्रवाह में, अतुकांत में इससे बचना बहुत ज़रूरी है..

शुभेच्छाएँ 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 23, 2013 at 9:18pm

हमारी बचपन की सोच, कप्लना की उड़ान, ज्ञान के साथ साथ विस्मृत होती जाती है और बचपन दूर होता चला 

जाता है | जब एक व्यक्ति क़ानून पढ़ लेता है तो डरपोक हो जाता है यह सोचकर ऐसा किया तो ये धरा मुझ पर 

लग जायेगी | फिर भी बचपन की यादे यदा कदा स्मरण हो आती है, तो सुखद अनुभूति होती है | बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on April 23, 2013 at 6:11pm

आपका कहन तो बहुत अच्छा है लेकिन नई कविता लिखने के चक्कर में आपने गद्य को अपने ऊपर हावी होने दिया इसलिए गद्य  के वाक्य कविता की पंक्तियां बन गए। इस ओर ध्यान दें।

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 23, 2013 at 5:31pm

आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी सादर, बहुत सुन्दर रचना. सचमुच हम उस बचपन के संसार से दूर कहीं आ गए हैं. जहां हमें छोटी छोटी सी बात पर डर लगता है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 3:19pm

आदरणिय त्रिपाठी जी , बहुत ही सुन्दर //हार्दिक बधाई 

Comment by Savitri Rathore on April 23, 2013 at 12:20pm

बचपन और यौवन का अंतर,समझ और नासमझी का अंतर,आपकी इस रचना में स्पष्ट दृष्टव्य है।यथार्थ के धरातल पर एक उत्कृष्ट रचना ...........बधाई हो।

Comment by Dr.Ajay Khare on April 22, 2013 at 1:20pm

apne ne hame bachpan ki yaad taja kara di sunder rachan badhai

Comment by coontee mukerji on April 22, 2013 at 3:35am

आदरणिय त्रिपाठी जी ,  यों तो  कविता के भाव बहुत अच्छे हैं ...लेकिन  कहीं कहीं गद्य और पद्य  में कोई भेद नहीं रह गया है. ..बार  ...बार थे  .. था

का प्रयोग  बहुत खटक रहा है....सुंदर प्रयास के लिये बहुत बधाई .  सादर  / कुंती .

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 21, 2013 at 10:49pm

आ0  त्रिपाठी जी,  अतिसुन्दर प्रस्तुति।  हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by manoj shukla on April 21, 2013 at 6:23am
आपकी की यह पंक्तिया हमे विचार करने पर बाध्य करती हैं की हम मे यह परिवर्तन आना कहाँ तक उचित है...बधाई स्वीकार करें आदर्णीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। रोटी पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
yesterday
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service