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राजू मोबाइल से गाना सुनने में मस्त था- "वो इक लड़की थी जिसे मैं प्यार करता था।"
तब तक उसके कानों में पिता जी की आवाज गूंजी- "सूरदास का पद नहीं सुन सकते थे क्या? या मीरा, तुलसी, कबीर का भजन सुनते?"
राजू डर गया और उसने गाना सुनना बंद कर दिया।
दो दिन बाद की बात है पिता जी अपने मोबाइल से गीत सुन रहे थे-"धूप में निकला न करो रूप की रानी, गोरा रंग काला न पड़ जाये।"
तब तक उनके कानों में आवाज गूँजी- "पिता जी! यह किसका पद या भजन है?"

मौलिक व अप्रकाशित
(संशोधित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 12, 2013 at 8:22pm

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें....प्रिय विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी............

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 11, 2013 at 5:14pm
आदरणीय वीनस सर जी! मैं संतुष्ठ हूँ? कदापि नहीं। तभी मैंने आदरणीय सौरभ सर जी! रचना पर समीक्षा की प्रार्थना किया था। क्योंकि पोस्ट करने के बाद मुझे भी लगने लगा कि कहीं कुछ तो कमी है।आपका आदेश न मानूँ? अभी मैं अपने को इतना काबिल नहीं पाता हूँ। और शायदन न हीं................
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 11, 2013 at 5:03pm
आदरणीय गिरि सर जी! आपका सुझाव सादर अनुमन्य है। आपके इस महत्त्वपूर्ण सुझाव के लिये आपका हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 11, 2013 at 5:01pm
अरुण भाई आप भी निरश हुए। मुझे अपार कष्ट है। आज मैं क्यों नहीं किसी की अपेक्षा पर खरा उतरा?
लेकिन निकट लघुकथा में शायद निराश न करूँ।
Comment by वीनस केसरी on July 11, 2013 at 5:00pm

जो इंसान गाना सुनने पर पाने बेटे को चार हाथ जमा देगा उसका पुत्र किसी दशा में ऐसा जवाब अपने बाप को नहीं दे सकता है ... यही मानव स्वभाव है ,,,  बाकी आप जैसा उचित समझें

Comment by वीनस केसरी on July 11, 2013 at 4:58pm

विन्धेश्वरी भाई आपने आगे जो अपने मन से जोड़ लिया है वह मुझे बिलकुल अस्वभाविक लगा ...
आप अपनी रचना से पूरी तरह से संतुष्ट है तो मेरी बात पर ध्यान न् दीजिए
शुभकामनाएं

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 11, 2013 at 4:57pm
आदरणीय अग्रज भाई संदीप जी! आपकी अपेक्षा पर मैं खरा नहीं उतर पाया इसके लिये दुखी हूँ।क्षमाप्रार्थना।
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2013 at 4:53pm

tabhi to sandeh tha ..........ke ye katha aap kaise rach sakte hain ..........ye to us bachche dwaara sunaai gayi katha hai n ...........jise aapne prakaashit kar diyaa hai

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 11, 2013 at 4:53pm
आदरणीय बागी जी! आपने मुझ अबोध पर इतना विश्वास जताया हृदय गदगद है। किन्तु आपकी अपेक्षा पर मैं खरा नहीं उतर पाया इसके लिये दुखी हूँ।क्षमाप्रार्थना।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 11, 2013 at 4:50pm
आदरणीय सौरभ सर जी! वास्तव में मैं स्वयं रचना के कथ्य से असंतुष्ट था इसीलिये मैंने आपके पास संदेश- पत्र भेजकर रचना में आवश्यक संशोधन हेतु सुझाव मांगा था। और रचना तो 10 /जून को ही प्रकाशित हो गयी थी।
आपके मेरे इसे कृत्य से क्षोभ हुआ, शिष्य क्षमाप्रार्थी व दुखी है।
आपका सुझाव व आदेश शिरोधार्य है।

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