For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम सभी ईश्वर के बारे में बात करते हैं। बहुत से ईश्वर में विश्वास भी करते हैं। किन्तु क्या कभी भी हम इस बात पर विचार करते हैं की ईश्वर से हमारा क्या सम्बन्ध है। हममें से बहुतों के लिए ईश्वर उस परम शक्ति का नाम है जिसने इस संसार की रचना की है। जो ऊपर कहीं आसमान में रहती है और हमारा पालन करती है। हमें जब भी किसी वास्तु की आवश्यकता होती है हम उसे पाने के लिए ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। किसी मुसीबत में होने पर मदद के लिए उसे पुकारते हैं। हमारे लिए ईश्वर हमसे पृथक एक सत्ता का नाम है।

वास्तव में ईश्वर हमारा सबसे अन्तरंग मित्र है। जिस पर हम पूर्ण विश्वास कर सकते है। वह हमारा परम हितैषी है जो हमें सही मार्ग दिखाता है। वो हमसे पृथक नहीं है वरन वह हमारे ह्रदय में रहता है और वहीँ से हमें उचित एवं अनुचित का ज्ञान कराता है। वह हमारी अंतरात्मा की आवाज़ के द्वारा हमसे वार्तालाप करता है। किन्तु यह सब वह चुपचाप करता है। वह कभी भी हमारे कार्यों में दखल नहीं देता है।

ईश्वर हमारे भीतर है किन्तु हम उसे बाहर खोजते हैं। ईश्वर से हमारा सम्बन्ध केवल हमारी आवश्यकताओं तक ही सीमित है। जब हमें किसी वास्तु की आवश्यकता होती है या जब हम किसी कठिनाई में होते हैं तभी हम ईश्वर को याद करते हैं। इस स्तिथि में हम अपनी फ़रियाद लेकर मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे या गिरिजाघर में ईश्वर की तलाश करते हैं। हम प्रतिमाओं, धार्मिक चिन्हों अथवा धर्म ग्रंथों में उसकी छवि तलाशते हैं। किन्तु उसे अपने भीतर नहीं खोजते हैं। यह हमारा स्वार्थ है की हम ईश्वर को केवल हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली सत्ता के रूप में ही देखते हैं। अतः उसे केवल बाहरी वस्तुओं में ही खोजते हैं। जबकि ईश्वर हमारे भीतर है।

"भगवान मूर्तियों में नहीं है.आपकी अनुभूति आपका इश्वर है.आत्मा आपका मंदिर है." [चाणक्य]

ईश्वर हमारे अन्दर एक मूक द्रष्टा बनकर रहता है. वह कभी भी हमारे कार्यों में दखल नहीं देता है। वह केवल हमें उचित का एहसास कराता है। जब हम अपने स्वार्थों से ऊपर उठ कर केवल ईश्वर के लिए ईश्वर को खोजते हैं तब हम उसे अपने भीतर पाते हैं। तब हमारी ईश्वर की तलाश हमारे भीतर आकर ख़त्म हो जाती है और हम परम आनंद को प्राप्त करते हैं।

ईश्वर कभी भी हमसे दूर नहीं है। वह सदैव हमारे साथ है। हम ही स्वयं को उससे दूर रखते हैं। जब हम अपने स्वार्थ को त्याग कर उसकी ओर कदम बढाते हैं तब उसे अपने नज़दीक पाते हैं।

Views: 1445

Replies to This Discussion

adarneey ASHISH KUMAAR TRIVEDI g apake vichaar katthya bahot hi uttam hai........

"भगवान मूर्तियों में नहीं है.आपकी अनुभूति आपका इश्वर है.आत्मा आपका मंदिर है." [चाणक्य] param satya hai 

धन्यवाद

श्री आशिष कुमार जी,

आपके उच्च विचार और मंथन से उभरे यह शब्द एक नई दिशा की ओर ले जाते हैं हमें !

बहुत सराहनीय लेखन है आपका और खुशी हुई हमें यहाँ आकर...

धन्यवाद

- पंकज त्रिवेदी

धन्यवाद

बहुत महत्तवपूर्ण विन्दु पर आपने प्रकाश डाला है श्री आशीष महोदय।
हम सब हैं तो ईश्वर के अंश ही फिर भी पता नहीं क्यों हम सारा जीवन कर्मकाण्ड मे जीवन व्यतीत कर डालते हैं परन्तु यह वास्तविकता आत्मसात नही कर पातें हैं कि ईश्वर तो घट-घट का वासी है। क्या विडम्बना है!
इतने महत्तपूर्ण लेखन के लिए सादर बधाई!

धन्यवाद

सही बताया आपने श्री आशीष कुमार त्रिवेदी जी -

इश्वर को को स्वार्थ से ऊपर उठकर,  स्वयं में ही खोजना होगा 

स्वार्थ से ऊपर उठकर खोजेंगे, तो उसे हम अपने भीतर ही पाएंगे |

मूर्तिया तो साधन मात्र है, प्रारंभ में अपने मन में भाव जगाने को,

गर भाव जगा तो अपने भीतर ही पाकर परमान्द प्राप्त कर पायेंगे | - तभ तो गाते है -

मेरे मन मदिर में भगवान्,बना मंदिर आलिशान 

ऐसे आध्यामिक चिंतन के लेख द्वारा चेतना लाने के महती कार्य के लिए हार्दिक धन्यवाद 

THANK YOU

बहुत सुंदर आलेख मुझे बहुत पसंद आया क्योंकि मैं भी यही विचार रखती हूँ मैं मूर्ति पूजा आदि पाखंड या अंधविश्वास को नहीं मानती अच्छे कर्म करना बुरे वक्त में दूसरों कि मदद करना किसी का दिल ना दुखाना सबसे बड़ी पूजा है ईश्वर ख़ुद हमारे अन्दर है ,यदि मैं किसी मन्दिर में जाती हूँ तो सच मानिये मैं वहां की मूर्तियों के पीछॆ के कलाकार की मेहनत और मूर्ति की खूबसूरती को देखती हूँ और सराहती हूँ बहुत बहुत आभार इस आलेख को पढ़वाने  हेतु|

THANK YOU

आदरणीय आशीष जी! ये दुनिया गोल है, ब्रह्माण्ड अन्नत है। ईश्वर क्या है? यह अब भी रहस्य है। वह बाहर है या भीतर, कण-कण में है या कहीं आसमान में ऊपर बैठा हुआ है।क्या सत्य है? यह समझ से परे है।वास्तव में ईश्वर तत्व की विवेचना इतना आसान नहीं,जितना हम समझते हैं,और नहीं उतना कठिन है,जितना हम मानते।आपकी एक उक्ति ईश्वर अनुभूति है।
1-हाँ ईश्वर केवल अनुभूति है,इसके सिवा वह कुछ नहीं।ईश्वर केवल मानव मस्तिष्क की उपज है।
2-इंसान और भगवान की सरहद कुछ यूं है-जहाँ तक मनुष्य का भरसक बस चलता है,वहाँ तक किसी भगवान की सीमा नहीं है,लेकिन जहाँ मनुष्य की कोशिशें सफल नहीं होतीं वहीं से ईश्वर की सत्ता शुरू होती है।
3-सच मानिये ईश्वर बीजूका जैसा है।जो न तो उसके हाथ पैर, आंख, कान, नाक, मुह है और न ही वह कुछ कर सकने में समर्थ है,उसका अस्तीत्व भी संदेह के दायरे में है।लेकिन जैसे पशु बीजूका से डरते हैं,उसे सर्वशक्तिमान मान कर ठीक हम भी ईश्वर को कुछ ऐसा ही मानते हैं।
4-वेद,शास्त्र,पुराण,गीता,कुरान,बाइबिल आदि सभी ग्रंथों में जब कुल मिलाकर ईश्वर तत्व का सम्यक विवेचन नहीं किया जा सका,हम आज उन पर भी उंगली उठाते हैं।तो यह नहीं कहा जा सकता है,वर्तमान में किसी भी रूप में ईश्वर तत्व की विवेचना उसके सम्यक स्वरूप की विवेचना है।
अर्थात! वह अब भी रहस्य ही है।मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, मूर्ति तथा चित्र आदि अनुभूति का ही दूसरा रूप है।इन्हें भी इतनी आसानी से खारिज नहीं कर सकते।लेकिन यह भी नहीं कह सकते,यही सम्यक रूप है।शेष गुरुजन ही कह सकते हैं।

धन्यवाद

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
13 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय, बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, एक साँस में पढ़ने लायक़ उम्दा ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद। सभी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service