For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोरा कागज़
अगर तू चाहती तो कभी भी
कोरे कागज़ पर मुझको
अँगूठा लगाने को कह सकती थी
और जानती हो, मैं..
मैं ‘न’ न कहता ।

उस कोरे कागज़ पर फिर
तुम कुछ भी लिख सकती थी।


तुमने मेरे नाम पर मुझसे
अधिकार माँगा
मैंने वह आँखें मूँद के दे दिया,
पर जब "तुम्हारे" अपने नाम पर तुमने
मुझसे अधिकार माँगा,
मेरे ओंठों पर हर पल नाम तुम्हारा था,
अत: यह अधिकार मैं तुम्हें दे न सका ।


मेरे धुँधँले-धुँधले सुलगते वजूद ने
नीदों में मेरी तुम्हारा नाम सुना,
सपनों ने सपनों में तुम्हें कई बार बुलाया ।


दर्द भरे अन्धेरों में मैंने
तुम्हें भुलाने के प्रबल प्रयास में,
नींदों के कान बंद कर दिए,
सपनों के ओंठ भी सी दिए,
पर जीते-जागते ख़यालों के गुबार
प्रतिदिन प्रतिरात
तुम्हें सुनते रहे, बुलाते रहे
कि जैसे पल भर को भी भुला न सके ।


तुम तो शूरू से ही शायद
मेरी इस कोमल कमज़ोरी से वाकिफ़ थी,
तभी तो कोरे कागज़ पर तुमने उस दिन
मेरा अँगूठा नहीं माँगा था ।


विजय निकोर
vijay2@comcast.net
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 573

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 24, 2014 at 7:49am

//वाह वाह !! क्या सुन्दर अभिव्यक्ति है //

रचना आपको अच्छी लगी, मेरा लिखना सार्थक हुआ, आदरणीय भाई योगराज जी। हार्दिक धन्यवाद।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 15, 2014 at 1:09pm

//अगर तू चाहती तो कभी भी
कोरे कागज़ पर मुझको
अँगूठा लगाने को कह सकती थी
और जानती हो, मैं..//

वाह वाह !! क्या सुन्दर अभिव्यक्ति है.

Comment by vijay nikore on February 14, 2013 at 3:20pm

अतिशय धन्यवाद, नादिर भाई।

विजय निकोर

Comment by नादिर ख़ान on February 14, 2013 at 1:04pm

सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय विजय जी 

विश्वास के रस में  डूबे हुये शब्दों की मिठास  .... 

Comment by vijay nikore on February 2, 2013 at 2:32pm

आदरणीय अशोक कुमार जी:

सराहना के लिए आपका शत-शत आभार!

विजय निकोर

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 31, 2013 at 10:46pm

सुन्दर रचना आदरणीय विजय निकोर साहब सादर.

Comment by vijay nikore on January 31, 2013 at 1:27am

आदरणीय सौरभ भाई:

"अलग तरह की सोच" ... आपने सही कहा है।

कविता में ख़याल कुछ ऐसा था ...  वह जानती है कि वह मुझसे उसको भूल जाने का वायदा ले भी ले तो भी मैं उसको भूल न पाऊँगा ... कहीं ऐसा न हो कि मुझको वायदा तोड़ने की पीड़ा हो, वह मेरी पीड़ा को नहीं सह सकती, इसीलिए वह मुझसे वायदा लेती ही नहीं।

सादर और धन्यवाद।

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2013 at 10:04pm

एक शाश्वत किन्तु अलग तरह की सोच को अभिव्यक्ति मिली है.

सादर

Comment by vijay nikore on January 30, 2013 at 8:09pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी:

आपकी सराहना से मेरी रचना सार्थक हुई,

आपका शत-शत धन्यवाद।

सादर,

विजय निकोर

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2013 at 8:02pm

प्रेम को किसी शर्त या अधिकार की परिधि में बाँधने की आवश्यकता नहीं होती शब्दों का मोहताज भी नहीं होता प्रेम ,बहुत सुन्दर गहन भाव से सजी रचना हेतु हार्दिक बधाई विजय निकोर जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
21 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service