For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोस्तो, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार आप सभी के स्नेह के लिए सदा अभारी है | पिछले दिनों "OBO लाइव ऑनलाइन तरही मुशायरों" को मिली अपार सफलता से हम सब अभिभूत हैं | परन्तु हमने देखा कि हमारे कई दोस्त ग़ज़ल के अलावा भी बहुत कुछ लिखते हैं | ओपन बुक्स ऑनलाइन साहित्यकारों का एक प्रसिद्ध मंच है तथा यहाँ हर विधा के फनकार विराजमान हैं, तो हमने सोचा क्यूँ न एक इवेंट आयोजित किया जाए, जिसमें सभी मित्र गण अपनी अपनी विधा में अपने अपने हिसाब से शिरकत कर सकें!

तो दोस्तों, प्रस्तुत है ओपन बुक्स ऑनलाइन का एक और धमाका "OBO लाइव महा इवेंट"

इस महा इवेंट की ख़ासियत यह है कि दिए गये विषय को लक्ष्य करते हुए आप सभी को अपनी अपनी रचनाएँ पोस्ट करनी हैं | वो रचना ग़ज़ल, गीत, कविता, छंद, मुक्तक, लघुकथा, पद, रसिया, व्यंग्य या कुछ और भी हो सकती है | सभी से निवेदन है की सर्व ज्ञात अनुशासन बनाए रखते हुए अपनी अपनी कला से दूसरों को रु-ब-रु होने का मौका दें |

इस बार के "OBO लाइव महा इवेंट" का विषय है "दीपावली"

ये इवेंट शुरू होगा दिनांक ०१.११.२०१० को और समाप्त होगा १०.११.२०१० को, रोचकता को बनाये रखने हेतु एडमिन जी से निवेदन है कि फिलहाल Reply Box को बंद कर दे तथा इसे दिनांक ०१.११.२०१० को खोल दे जिससे सभी फनकार सीधे अपनी रचना को पोस्ट कर सके |

आप सभी सम्मानित फनकार इस महा इवेंट मे सादर आमंत्रित है,जो फनकार अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य नहीं हैं तो अनुरोध है कि www.openbooksonline.com पर Login होकर Sign Up कर ले तथा "OBO लाइव महा इवेंट" मे शिरकत करें | आप सभी से सहयोग की अपेक्षा है |

आप सबका
नविन सी. चतुर्वेदी

Views: 12208

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

yah aap ki nahi sabki prarthana honi chaahiye. sundar kawya rachna ke liye badhai swikaar kare.
आदरणीय त्रिपाठी सर, दीपावली खुशियों का त्यौहार है, जिसमे सभी की भागीदारी होनी चाहिये, हां यह भी सत्य है कि कुछ लोग जितने का पटाखा फोड़ देते है उतने मे बहुत घरों मे नया कपड़ा संग दीपावली मन जायेगी, हम सबका दायित्व है कि उन वर्ग का भी ख्याल रखे, भले कुछ पटाखा कम ही जलानी पड़े,
आप कि कविता आम आदमी का प्रतिनिधित्व कर रही है, बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई इस खुबसूरत और सार्थक काव्य कृति पर |
दीनों की सुध ले सके, दीनबन्धु इंसान.
दीन बन्दुओं की सदा सुधि लेता भगवान..
आदरणीय शेषधर तिवारी जी, बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने ! खासकर पहली दो पंक्तियाँ मन को भा गईं !
//हे लक्ष्मी माँ अबकी बारी उनकी भी सुध लो
जिनके घर न दीपक बाती गोंद उन्हें तुम लो //
साधुवाद देता हूँ आपको !
बहुत सुन्दर नवीन भाई, वाकई अगर थोड़ी सी कोशिश की जाए तो आधुनिक कविता में लय कायम रखी जा सकती है। उदाहरण सहित दिखाने के लिए धन्यवाद।
फिर भी
ग्लास भरा आधा
कहना ही
ये
होगा हितकर
हम सबके लिए
bilkul sahi.
sundar gady kawita.
फिर भी
ग्लास भरा आधा
कहना ही
ये
होगा हितकर,

नविन भईया यह है सकरात्मक नजरिया, इस महा इवेंट मे इतने सारे रंग देखने को मिलेगा यह सोचा न था, साथ मे यह सीखने सिखाने का भी जरिया बन गया है, मैं समझता हूँ कि मंचीय प्रस्तुति से ज्यादा फायदा हमे इस तरह के आयोजन से हो रहा है, मंचीय आयोजन मे तो जो रचना एक बार पढ़ दी गई उस का दुबारा Review हम नहीं कर सकते किन्तु "OBO लाइव महा इवेंट" मे यह सुविधा हमारे पास है |
बहरहाल इस खुबसूरत प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करे |
उत्तम प्रस्तुति...
गीत भी, अगीत भी, मीत भी अमीत भी.
दीप देखता है सच, सुनीत भी अनीत भी..
अतुकान्त कविता में भी इतनी लय ? वाह वाह नवीन भाई, कविता के सुन्दर भावों के साथ साथ इस प्रकार की रवानी ला पाना शायद हरेक के बस की बात नहीं है ! दिल से बधाई देता हूँ आपको !
एक कविता:

दिया

संजीव 'सलिल'
*
सारी ज़िन्दगी
तिल-तिल कर जला.
फिर भर्र कभी
हाथों को नहीं मला.
होठों को नहीं सिला.
न किया शिकवा गिला.
आख़िरी साँस तक
अँधेरे को पिया
इसी लिये तो मरकर भी
अमर हुआ
मिट्टी का दिया.
*
उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद.
बहुत सुन्दर आचार्य जी, कविता की सारी ही विधाओं में आप पारंगत हैं। इसमें कोई संदेह नहीं।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय संजय शुक्ला जी "
10 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। "
18 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"जो दुआओं के गुहर जेब में भर कर निकलाबस वही शख़्स मुक़द्दर का सिकंदर निकला /1 इक न इक रोज़ जियूँगा…"
24 minutes ago
Euphonic Amit and अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी are now friends
7 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ग़ज़ल ~2122 1122 1122 22/112 तोड़ कर दर्द की दीवार वो बाहर निकला  दिल-ए-मुज़्तर से मिरे एक…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service