For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

थकन से चूर मुझसे एक दिन सप्ताह ने बोला

ज़माने को सरल सीधे , नहीं चेहरे सुहाते है 
हैं अब दर्पण वही जिनको , नहीं श्रृंगार भाते हैं 

 
कभी सौगंध पर इक , था चलन सौ बार मरने का 
मगर अब इक कसम निभती नहीं सौ बार खाते है 

वही अब शख्स है मशहूर हर महफ़िल में देखा है 
जिसे बस झूठ और साजिश के सब व्यौहार आते हैं 
 
उसे मंज़ूर कब होंगी फरेब और झूट की दौलत 
वो बन्दा है सच्चाई का , उसे इनकार आते हैं  
 
भला उम्मीद की अंगुली कभी मै छोड़ कैसे दूँ  
मै गिरता हूँ , उठाने को , तेरे ऐतबार आते है 
 
 
थकन से चूर मुझसे एक दिन सप्ताह ने बोला 
बड़ी किस्मत से जीवन में "अजय" इतवार आते हैं 
 
मौलिक & अप्रकाशित 
अजय कुमार शर्मा

 

Views: 421

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 4:04pm
क्या बात है वाह वाह 
और मक्ते ने तो लूट लिया साहब
ढेरों बधाई क़ुबूल करें 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 15, 2013 at 12:07pm

वाह अजय शर्मा जी क्या कहने इस ग़ज़ल के हर शेर जबरदस्त है जिसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो है --

कभी सौगंध पर इक , था चलन सौ बार मरने का 
मगर अब इक कसम निभती नहीं सौ बार खाते है.------वाह इस ग़ज़ल के लिए दाद कबूल कीजिये 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2013 at 11:30am

कभी सौगंध पर इक , था चलन सौ बार मरने का
मगर अब इक कसम निभती नहीं सौ बार खाते है... क्या बात है ! बहुत खूब !!

उसे मंज़ूर कब होंगी फरेब और झूट की दौलत 
वो बन्दा है सच्चाई का , उसे इनकार आते हैं  ......  सही बात-सही बात !  मगर झूट या झूठ ?
 
लेकिन जिस बंद ने मुतास्सिर किया वह इस ग़ज़ल का मतला है -
थकन से चूर मुझसे एक दिन सप्ताह ने बोला 
बड़ी किस्मत से जीवन में "अजय" इतवार आते हैं ... वाह भाई वाह !
 
अच्छी ग़ज़ल सुनाने के लिए आपको बधाई.
 
Comment by Ashok Kumar Raktale on January 14, 2013 at 11:15pm

वही अब शख्स है मशहूर हर महफ़िल में देखा है 
जिसे बस झूठ और साजिश के सब व्यौहार आते हैं..................सुन्दर,

बढ़िया गजल आदरणीय अजय जी बधाई स्वीकारें.

Comment by विवेक मिश्र on January 14, 2013 at 6:10pm

बेहतरीन मकता. हार्दिक बधाई.

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2013 at 5:36pm

बधाई इस प्रस्तुति पर ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 4:07pm

//

कभी सौगंध पर इक , था चलन सौ बार मरने का 

मगर अब इक कसम निभती नहीं सौ बार खाते है
//

बहुत खूब आदरणीय अजय जी, बेहतरीन शेर कहा है , सुन्दर कहन ।

//थकन से चूर मुझसे एक दिन सप्ताह ने बोला 

बड़ी किस्मत से जीवन में "अजय" इतवार आते हैं //
क्या कहने , बिल्कुल नया ख्याल , उम्दा मकता , अच्छी ग़ज़ल कही है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service