For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब तेरी यादों की दरिया में उतर जाता हूँ मैं

जब तेरी यादों की दरिया में उतर जाता हूँ मैं॥
कागज़ी कश्ती की तरहा फिर बिखर जाता हूँ मैं॥

कैसी वहशत है जुनूँ है और है दीवानपन,
तू ही तू हरसू नज़र आया जिधर जाता हूँ मैं॥

सारे मंज़र, तेरी यादें सब जुदा हो जाएंगी,
सोचकर तनहाई में अक्सर सिहर जाता हूँ मैं॥

किसकी नज़रों ने दुआ दी है, के तेरी बज़्म में,
बेहुनर हूँ जाने कैसे बाहुनर जाता हूँ मैं॥

तेरी यादों का ये जंगल मंज़िले ना रास्ते,
जिस्म अपना छोडकर जाने किधर जाता हूँ मैं॥

दर्द-ओ-ग़म के बोझ से जब टूटते हैं हौसले,
तेरी आँखों के इशारे से संवर जाता हूँ मैं॥

जिस शज़र पे हमने मिलकर नाम लिखा था कभी,
बेख़याली और उदासी में उधर जाता हूँ मैं॥

हमसफ़र “सूरज” के है यादों का तेरी सिलसिला,
मुश्किलों की राह से हँस कर गुजर जाता हूँ मैं॥

  • डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

Views: 1141

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 8:34pm

कमाल करते है भाई, जब भी ग़ज़ल कहते हैं कमाल करते हैं, सभी अशआर दिल को छू रहें हैं, बहुत ही प्यारी ग़ज़ल कही हैं , बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर |

Comment by MAHIMA SHREE on December 11, 2012 at 1:15pm

जब तेरी यादों की दरिया में उतर जाता हूँ मैं॥

कागज़ी कश्ती की तरहा फिर बिखर जाता हूँ मैं॥

जिस शज़र पे हमने मिलकर नाम लिखा था कभी,

बेख़याली और उदासी में उधर जाता हूँ मैं॥

नमस्कार आदरणीय डॉ साहब ..

बहुत खूब !! दिल को छु लेने वाली प्रस्तुति .. हमेशा की तरह .. बधाई स्वीकार करें

Comment by राज लाली बटाला on December 11, 2012 at 12:41am

जब तेरी यादों के दरिया में उतर जाता हूँ मैं॥ !!

Comment by Abhinav Arun on December 4, 2012 at 7:48pm

गहरे भाव और सुघड़ अदायगी के लिए हार्दिक बधाई डॉ बाली साहब !!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:14pm

सारे मंज़र, तेरी यादें सब जुदा हो जाएंगी,

सोचकर तनहाई में अक्सर सिहर जाता हूँ मैं॥

आदरणीय सूरज जी, सादर 

सच 

बधाई 

Comment by वीनस केसरी on November 16, 2012 at 12:54am

// जब तेरी यादों की दरिया में उतर जाता हूँ मैं॥...
कागज़ी कश्ती की तरहा फिर बिखर जाता हूँ मैं॥..... //

शब्द 'दर्या' पुल्लिंग है इसलिए "की दरिया" लिखना गलत है

तरहा २२ वज्न गलत है इसे आप १२ अथवा २१ पर ही बाँध सकते हैं
मैंने कश्ती को डूबते सुना है बिखरते नहीं सुना और टूट कर बिखरने की बात भी है तो कागज़ की कश्ती कैसे टूटेगी ???

// कैसी वहशत है जुनूँ है और है दीवानपन,....
तू ही तू हरसू नज़र आया जिधर जाता हूँ मैं॥..... //

दीवानापन को गिराने पर भी दीवानापन लिखा जायेगा

जाता हूँ मैं से स्पष्ट है कि क्रिया का समाप्त होना स्पष्ट नहीं है,, आया को आए करिये तो शेअर निर्दोष हो जाये,  
वैसे अच्छा शेअर है 


आगे के अशआर पर कुछ कहने से बेहतर है कि अपने ख्यालात इन शब्दों में स्पष्ट कह दू ...
यह ग़ज़ल एक उम्दा ग़ज़ल का कच्चा माल है,,,,,
जैसे एक हीरा हो
जिसे अभी तराशा जाना बाकी है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 15, 2012 at 10:53pm

किसकी नज़रों ने दुआ दी है, के तेरी बज़्म में,

बेहुनर हूँ जाने कैसे बाहुनर जाता हूँ मैं॥

 

तेरी यादों का ये जंगल मंज़िले ना रास्ते,

जिस्म अपना छोडकर जाने किधर जाता हूँ मैं॥

 बहुत शानदार  ग़ज़ल कही है  डॉ .सूर्य बाली जी ये शेर बहुत ज्यादा पसंद आये दाद कबूल करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 15, 2012 at 10:47pm

किसकी नज़रों ने दुआ दी है, के तेरी बज़्म में,
बेहुनर हूँ जाने कैसे बाहुनर जाता हूँ मैं॥

जिस शज़र पे हमने मिलकर नाम लिखा था कभी,
बेख़याली और उदासी में उधर जाता हूँ मैं॥

ग़ज़ल पर हुए प्रयास पर बहुत-बहुत बधाई, डॉक्टर साहब. उपरोक्त शेर विशेष पसंद आये.

शुभेच्छाएँ.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 15, 2012 at 9:35pm

दर्द-ओ-ग़म के बोझ से जब टूटते हैं हौसले,

तेरी आँखों के इशारे से संवर जाता हूँ मैं॥ -- क्या बात है डॉ सूर्या बलि सूरज जी ! उम्दा गजल के लिए बधाई स्वीकारे 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on November 15, 2012 at 7:59pm

जिस शज़र पे हमने मिलकर नाम लिखा था कभी,

बेख़याली और उदासी में उधर जाता हूँ मैं

आदरणीय डॉ. साहब क्या ख़ूबसूरत ग़ज़ल पेश की आपने! उपर्लिखित विशेष रूप से पसंद आया! वाह क्या कहने! सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service