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भाई-भाई बैरी बना, रोटियों में खून सना,
छा गया अँधेरा घना, देख आँख रो पड़ी |

भूल गए सब नाते, दूर से ही फरियाते,
काम देख बतियाते, कैसी आ गई घड़ी |

जहाँ कोई मिल जाए, नोंच-नोंच कर खाए,
देख गिद्ध शरमाए, बात नहीं ये बड़ी |

होश नहीं इश्क जगे, चाहे भले जाए ठगे,
गैर लगे सारे सगे, सोच कैसी है सड़ी ||

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 5, 2012 at 7:43am

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर.......उत्साहवर्धन के लिए आपका दिल से आभार........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 3, 2012 at 11:05pm

जहाँ कोई मिल जाए, नोंच-नोंच कर खाए,
देख गिद्ध शरमाए, बात नहीं ये बड़ी |

भाई अजीतेन्दु जी, वाह वाह वाह !!.. .  बहुत ही प्रभावी रचना.. बहुत-बहुत बधाई !!.. .

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 3, 2012 at 10:59pm

आदरणीय रक्ताले सर.......आपका हार्दिक आभार......आपका स्नेह सदा उत्साहवर्धन करता है.......

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 30, 2012 at 8:01pm

भाई-भाई बैरी बना, रोटियों में खून सना,
छा गया अँधेरा घना, देख आँख रो पड़ी |

सुन्दर घनाक्षरी गौरव जी बधाई स्वीकार करें.

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