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मैंने पूछा था
तट की गीली रेत से
जीवन क्या है
और क्या है
तेरी नियति ?
कुचली जाती पैरों से
क्या हुआ विलुप्त
दर्द की
अनुभूति !!!?

उसने हँसकर
कहा-
जीवन क्या
और मरण क्या
नश्वरता का है
प्रहशन ,
कूल**
परिवर्तन
ही बंधन है
मध्य है
जीवन की
निर्बाध गति ।
~शशि रंजन मिश्र

** कूल= किनारा

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 11, 2010 at 8:48pm
बहुत बढ़िया शशि भाई, बहुत ही सुंदर रचना,
कूल परिवर्तन ही बंधन है , मध्य है जीवन की निर्बाध गति, बहुत बढ़िया,

कृपया ध्यान दे...

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