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मौत !

तिमिर की गहराईयों सी
भयानक
जीवन को निगलने को
तत्पर
जीवन पर्यंत
लक्षित यह अंत

मौत !!
शारीरिक शक्ति का ह्रास
पोषक तत्वों का विनाश
या
काया का परिवर्तन
पुरातन से नूतन

मौत !!!
आती है चुपके-चुपके
प्राण को निगलने के लिए
मिट्टी को मिट्टी में
मिलाने के लिए

मौत !!!!
नहीं... नहीं... !
मौत नहीं मोक्ष
कष्टों से मुक्ति का
जीवन का अंतिम लक्ष्य

~शशि

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Comment by आशीष यादव on October 28, 2010 at 1:14pm
मौत !!!
आती है चुपके-चुपके
प्राण को निगलने के लिए
मिट्टी को मिट्टी में
मिलाने के लिए
maut ki hakikat hi yahi hai|

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 28, 2010 at 11:11am
इस विवेचना में कठोपनिषद व्याप गया.. गीता के अध्याय समो गए.. एक ऐसे विस्तार का निरूपण.. जो पुनः संकुचित होने के क्रम में सापेक्ष कल्लोल करे.. जीवन का सत्य.. मृत्यु का अर्थ.. बहुमुखी अबूझ को दर्पण दिखाने का प्रयास. शशि भाई ..वाह-वाह..!!

भाई, आपने पवित्र गंग-धार में डुबकी लगाई है.. और पवित्र हो उभरे.. साधु-साधु.

इस अबूझ के एक अन्य आयाम को साझा कर रहा हूँ जहाँ मैंने इस सत्य की प्रतीक्षा में लिखा है -
रहे मौन अधर, कुछ किन्तु कहूँगा..
प्रभात की शुभ, नव वेला तक
सुन तेरी मैं राह तकूँगा..
यह चटक चाँदनी मद्धिम हो
और रात्रि-दशा सुन अंतिम हो
निद्रा-फेरी पलछिन हो..
नव स्मित-सी बन मोहक तुम
नव रश्मियों पर चढ़ आना..
मैं हेरूँगा.. रे.. टेरूँगा.. जगती के अंतिम रेला तक..
सुन तेरी मैं राह तकूँगा.. सुन तेरी मैं राह तकूँगा..
Comment by Satyendra Kumar Upadhyay on October 27, 2010 at 11:57am
Wah bhai, kya baat hai
Comment by Pooja Singh on October 26, 2010 at 2:19pm
शशी जी ,
नमस्कार बिलकुल सही अभिव्यक्ति की है आपने अपने कविता के माध्यम से की { मौत !!!
आती है चुपके-चुपके
प्राण को निगलने के लिए
मिट्टी को मिट्टी में
मिलाने के लिए} यह पुरातन सत्य है की इस मृत्यु लोक में बस केवल दो ही सचाई जीवन तथा मृत्यु बाकि सब मिथ्या है | साधुवाद स्वीकार करे इस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए | धन्यवाद

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2010 at 12:32pm
मौत !!!
जीवन का अंतिम लक्ष्य,
जीवन का यही एक सत्य,
शशि भाई बहुत ही सुंदर रचना है यह, इस तरह की रचनाये कभी कभार ही पढने को मिलती हैं, आपको दिल से बधाई है |
Comment by Shashi Ranjan Mishra on October 25, 2010 at 7:45pm
नविन जी, राणाप्रताप जी, शेषधर तिवारी जी, अजित जी,मुमताज जी, प्रीतम भाई और डॉ० ब्रिजेश जी, आपको मेरी रचना पसंद आई | उत्साह दूना हो गया |
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 25, 2010 at 7:10am
vigyanik tathyon ko ujagar kati aur mrityu ke dar ko kam karti sundartam rachna ...
badhai ho
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 24, 2010 at 10:36pm
bahut hi shaandar rachna hai shashi bhai..,,.maut ki vivechna karti ye rachna sach me shaandar hai....
aisehi likhte rahe....
Dhanyabaad
Comment by Mumtaz Aziz Naza on October 24, 2010 at 8:42pm
Kya kehne Shashi ji, sachchai bayaan kar di
Comment by Ajit kumar sinha on October 24, 2010 at 8:09pm
bahut sundar rachna hai aacha prayas hai aati sundar keep it up

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