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Shashi Ranjan Mishra's Blog (7)

मेरा कुत्ता मुझपर ही भौंकता है...

मेरा कुत्ता मुझपर ही भौंकता है

मेरे हर आहट पर चौंकता है

कटकटाता है, गुर्गुराता है

जबड़े को भींच, लाल आँखें दिखाता है

उसके सफ़ेद नुकीले दांतों में मैं अपने 

मांस का टुकड़े देखता हूँ

अपनी अंतड़ियों को काट-काट

उसकी ओर फेंकता हूँ

मेरे आस्तित्व को मिटाने के लिए

अपनी सारी उर्जा झोंकता है

मेरा कुत्ता ही अब मेरा मालिक है

मुझ पर भौंकता है

 

लेकिन जब अहम की भूख

सांझ…

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Added by Shashi Ranjan Mishra on November 30, 2011 at 9:00am — 5 Comments

मेरी पहचान



 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अन्वेषण स्वयं का 

जैसे 

अनंत शून्य में भटकना 

क्या सत्य है मेरा ,

या कोई मिथ्या 

अंतरद्वंद या छलावा 

मैं बुद्ध नहीं 

महावीर भी नहीं हूँ 

जो संसार के कष्टों से भाग चलूँ |

नहीं बैठ सकता कंदराओं में…

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Added by Shashi Ranjan Mishra on April 21, 2011 at 6:39pm — 10 Comments

कुत्ते हैं आवाम का...

(आज देश की हालत ये है कि हर नुक्कड़ पर के आवारा दोपाये अपने आपको नेता समझ बैठे हैं, देश के शीर्ष भवन  में बैठ ये विभिन्न सुरों में भौंकते हैं |  इस तस्वीर को देश समझें और टूटते झोपडी को देश का संसद...

इस कविता/व्यंग्य का भाव दोपायों के लिए है | चौपायों से क्षमाप्रार्थी हूँ उनकी इस…
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Added by Shashi Ranjan Mishra on February 24, 2011 at 8:50am — No Comments

लंगड़े कुत्ते का भाषण

बड़े-बड़े दरबारों में दुम हिलाया है

मालिकों के मलाईदार जूठे को खाया है

भौंक-भौंक कर किया कपालभाति

कभी लेट कर किया वज्रासन…

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Added by Shashi Ranjan Mishra on February 22, 2011 at 8:00am — 9 Comments

मौत...

मौत !

तिमिर की गहराईयों सी
भयानक
जीवन को निगलने को
तत्पर
जीवन पर्यंत
लक्षित यह अंत

मौत !!
शारीरिक शक्ति का ह्रास
पोषक तत्वों का विनाश
या
काया का परिवर्तन
पुरातन से नूतन

मौत !!!
आती है चुपके-चुपके
प्राण को निगलने के लिए
मिट्टी को मिट्टी में
मिलाने के लिए

मौत !!!!
नहीं... नहीं... !
मौत नहीं मोक्ष
कष्टों से मुक्ति का
जीवन का अंतिम लक्ष्य

~शशि

Added by Shashi Ranjan Mishra on October 21, 2010 at 8:28pm — 11 Comments

निर्बाध प्रहशन



मैंने पूछा था

तट की गीली रेत से

जीवन क्या है

और क्या है

तेरी नियति ?

कुचली जाती पैरों से

क्या हुआ विलुप्त

दर्द की

अनुभूति !!!?



उसने हँसकर

कहा-

जीवन क्या

और मरण क्या

नश्वरता का है

प्रहशन ,

कूल**

परिवर्तन

ही बंधन है

मध्य है

जीवन की

निर्बाध गति ।

~शशि रंजन मिश्र



** कूल=… Continue

Added by Shashi Ranjan Mishra on October 11, 2010 at 7:00pm — 1 Comment

दीया

एक दिन बिजली के जाने पर

ढूंढ रहा था

प्रकाश का साधन

करने को

तमस निस्तारण

तभी हाथों से

कोई चीज टकराई

देखा

पुराना दीया

जिस पर हरा काला

मैल बैठा हुआ

झंकृत कर गया मुझे

याद मेरे बचपन का

इसी दीये तले

पाया ज्ञान का प्रकाश

मैं क्या

मुझसे भी पहले

औरों ने भी इसी दीये

के आँचल तले

आँखों को काले धुँए में

झोंकते हुए

पाया अपने लक्ष्य को

वही दीया न… Continue

Added by Shashi Ranjan Mishra on October 7, 2010 at 4:35pm — 7 Comments

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"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
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