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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - २२

परम आत्मीय स्वजन

अप्रैल माह का मिसरा -ए- तरह मुग़ल काल के अंतिम दौर के शायर मोमिन खान 'मोमिन' की गज़ल से लिया गया है| मोमिन इश्क और मुहब्बत के शायर थे| उनकी ग़ज़लों का माधुर्य और नाज़ुकी उनके अशआर पढ़ने से सहज ही महसूस की जा सकती है| कहते हैं उनके एक शेर पर ग़ालिब ने अपना पूरा दीवान उनके नाम करने की घोषणा कर दी थी| इस बार का तरही मुशायरा ऐसे अज़ीम शायर को ओ बी ओ की तरफ से श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित है| मिसरा है:-


 

"तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं "

बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ

(इसी बह्र पर ओ बी लाइव तरही मुशायरा -१९ भी आयोजित हो चुका है जिसे य...

ते/२/रा/२/ही/१      जी/२/न/१/चा/२/हे/१    तो/१/बा/२/तें/२/ह/१    जा/२/र/१/हैं/२

(तख्तीय करते समय जहाँ हर्फ़ गिराकर पढ़े गए हैं उसे लाल रंग से दर्शाया गया है)


रदीफ: हैं 

काफिया: आर (हज़ार, बेकरार, खाकसार, इन्तिज़ार, करार आदि)


विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिककर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें|

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 अप्रैल 2012 दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 30 अप्रैल 2012 दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २१ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  28 अप्रैल 2012 दिन शनिवार  लगते ही खोल दिया जायेगा )

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//जब तक गरीब देश के भूखे लाचार हैं ,

नारे भगत  शहीद के हम पर उधार हैं |//

जवाब नहीं इस मतले का, पूरी ग़ज़ल बहुत ही सुन्दर भावों से सजी हुई है. बधाई स्वीकार करें आदरणीय अरुण भाई जी.  

हार्दिक आभार आदरणीय संपादक महोदय !!

आपके स्नेह पूर्ण आशीर्वाद से मन प्रसन्न हुआ !

इन दोनों ग़ज़लों पर आदरणीय श्री वीनस जी से परामर्श मिला उनका भी विशेष आभार !!

 Arun Kumar Pandey 'Abhinav' जी बहुत सुंदर भाव..बधाई आपको..

भाई श्री अरुण जी, आपके शेरों से ये मंच गुलजार हो गया. उम्दा शेरो के लिए हार्दिक बधाइयाँ.

लोटे घडी की चश्मे की नीलामी होती है ,

बापू तुम्हारे खून ने पाए बाज़ार हैं |...........

सामयिक , खूबसूरत

//जब तक गरीब देश के भूखे लाचार हैं ,

नारे भगत  शहीद के हम पर उधार हैं |

हाँ अब भी खुल तो सकती है तकदीर मुल्क की,

तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं |//

भाई 'अभिनव' जी एक नए अंदाज़ में नए तेवर के साथ कही गयी इस गज़ल के लिए दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें !

कथ्य शिल्प भाव शेर धारदार हैं।
लग रहा शे'र सब शेर पे सवार हैं॥
किसी एक का नाम लूं ये ठीक है नहीं।
आपके हर शे'र पे हम जांनिसार हैं॥

अच्छा प्रयास .. बधाई स्वीकारें

हाँ अब भी खुल तो सकती है तकदीर मुल्क की,

तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं |

वाह, बेहतरीन शेर. पूरी की पूरी गज़ल खूबसूरत है, गज़ल अपना संदेश पहुँचाने में सफल रही है. आज की सामाजिक विवशताओं, विषमताओं को शेरों के जरिये सुंदरता से चित्रित किया है.

अरुण जी ! अच्छा प्रयास है.

बहुत खूब अरुण जी, गिरह का शेर बहुत पसंद पड़ा |

लोटे घडी की चश्मे की नीलामी होती है ,

इस पक्ति में बात नहीं बन रही .......

इसे अगर ऐसे कहे तो ..

लोटे घडी व् चश्मे की नीलामी होती है ,

कुल मिलाकर आनंद आ गया , बधाई अभिनव जी |

भाई गणेश जी की बात से मैं सहमत हूँ - इस शे'र में थोड़ी कमी रह गयी है अच्छा प्रयास है  - सुरिन्दर रत्ती - मुंबई 

 

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