आदरणीय साथियो,
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माँ ......
"पापा"।
"हाँ बेटे, राहुल "।
"पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है । मम्मी को बेहोशी का फिट आ गया । अब नाश्ता वहीं कर लूँगा ।"
"राहुल तुम जाओ बेटा, मैं तेरी माँ को देख लूँगा ।" पिता ने कहा ।
"राहुल, राहुल , नाश्ता किए बिना घर से मत जाना ।अचानक माँ थोड़ा कराहते हुए अर्द्ध बेहोशी की हालत में बोली ।
माँ चारपाई से अर्द्ध बेहोशी की हालत में उठी ।जैसे- तैसे चाय नाश्ता बनाया और फिर बेहोश हो गई ।
राहुल ने माँ को देखा और दुखी मन से नाश्ता किया । फिर न चाहते हुए भी मजबूर मन से कोर्ट के लिए चल दिया ।
"राहुल राहुल, अरे भाई कहाँ खोए हो ? कोर्ट का टाईम हो गया है । जल्दी करो । देर हो जाएगी ।" वकील ने राहुल को झिंझोड़ते हुए कहा ।
राहुल एकदम चौंक कर अपने बीते वक्त से वर्तमान में लौट आया ।
आज, वर्षों बाद फिर वही हालात थे । पत्नी नौकरी पर जा चुकी थी । राहुल, माँ की तस्वीर के आगे बैठा
शायद फिर माँ के आने का इंतजार कर रहा था ।
सच है जिन्दगी में हालातों की उछल पटक में अगर कोई इन्सान का साथ देता है तो वो उसकी माँ होती है चाहे वो यहाँ हो या हो वहाँ ।
31-1-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम वाक्य लेखकीय अभिव्यक्ति है। इस वाक्य की आवश्यकता नहीं लगती। इसका भाव कथनोपकथन में ही पिरोया जा सकता है मेरे विचार से। मॉं का कोई विकल्प नहीं। मॉं को खोने का दर्द असीम होता है। यादों में मॉं की हर बात किसी न किसी पल अचानक यूं आ जाती है।
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