For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-162

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 162 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा जनाब 'शकील' बदायूनी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'दिल है कि सोगवार-ए-महब्बत है आज कल'

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 212

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़

रदीफ़ --है आज कल

क़ाफ़िया:-(अत की तुक) क़यामत, इनायत,वहशत,शुहरत,इजाज़त आदि...

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 28 दिसंबर दिन गुरुवार को हो जाएगी और दिनांक 29 दिसंबर दिन शुक्रवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 दिसम्बर दिन गुरुवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2739

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी नमस्कार। अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए बधाई स्वीकार करें।

जनाब धामी जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I 

गुणीजन से सहमत हूँ I 

आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें।

प्रिय लक्ष्मण भाई, बहुत ही उम्दा प्रयास तरही ग़ज़ल पर हुआ है। गुनीजनों कि राय महत्वपूर्ण है। गौर कीजिएगा

आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिये

गुणीजनों की बातें क़ाबिले ग़ौर हैं

सादर

तारी अजीब ज़ह्न प वहशत है आजकल
दिल को किसी भी तौर न राहत है आजकल

मिलता नहीं है चैन किसी भी तरह हमें
"दिल है कि सोगवार-ए- मुहब्बत है आजकल"

हालात ऐसे हैं कि महब्बत के नाम पर
होती हर एक सम्त तिजारत है आजकल

हम जाँ को दाँव पर हैं लगाए हुए मगर
उनके लिए तो खेल महब्बत है आजकल

आ कर जो थम गई है मरासिम में बे दिली
फ़िक्र-ए- मआश की ही बदौलत है आजकल

पूछूँ भी कैसे उनसे कोई राह तो खुले
क्या जाने किस प चश्म-ए- इनायत है आजकल

'रे शीन' को नहीं है सुकून-ओ-क़रार कुछ
उसके लिए अज़ाब ये फुरक़त है आजकल

मौलिक एवं अप्रकाशित

रे शीन ( रवि शुक्ल)

आदरणीय Ravi Shukla जी आदाब,

अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।

तारी अजीब ज़िह्न   प  वहशत है आजकल

दिल को किसी भी तौर न राहत है आजकल

  मिलता नहीं है चैन किसी भी तरह हमें

"दिल है कि सोगवार-ए-महब्बत है आजकल"

हालात ऐसे हैं कि महब्बत के नाम पर

होती हर एक सम्त तिजारत है आजकल

ग़ज़ल की रदीफ़ है - "है आज कल" मतलब वो सब कुछ जो आज कल

हो रहा है किन्तु महब्बत के नाम पर तिजारत तो पहले भी होती रही है

यह सिर्फ़ आजकल नहीं हो रहा पहले से ही चला आ रहा है।

अर्पण फ़िल्म का गीत जो 1983 में आया वो भी यही बात कह रहा है कि

" महब्बत अब तिजारत बन गई है

  तिजारत अब महब्बत बन गई है"

  मतलब यह बात काफ़ी पुरानी है।

रदीफ़ तब निभेगी जब वो बात की जाए

जो पहले नहीं होती थी मगर अब हो रही है आदरणीय।

आ कर  जो  थम गई है  मरासिम  में बे दिली

फ़िक्र-ए-मआश की वो  बदौलत है आजकल

( सानी को मुहलत या फ़ुर्सत क़ाफिए के साथ कहने का प्रयास करें।

कि रिश्ते इसलिए ख़राब हो रहे हैं क्योंकि काम से फुर्सत नहीं मिल रही आजकल )

                           // शुभकामनाएँ //

आदरणीय अमित जी ग़ज़ल पर आआपकी उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी का स्वागत है । रदीफ़ के मआनी स्पष्ट हैं मेरे लिए । जिस महब्बत की बात मैं शेर में कहना चाहता हूँ वो बहुत पहले की है जहां केवल समर्पण और प्रेम ही था 1983 के फिल्मी गीत के उदाहरण से बात  सीमित हो जाएगी । प्रेम बहूत ही विस्तृत है । इसलिए आपकी टिप्पणी का स्वागत है और सुझावों का भी। इन पर अपने कथ्य के अनुसार विचार करूंगा। सादर 

आदरणीय रवि शुक्ला जी आदाब, शानदार गिरह के साथ उम्दा ग़ज़ल कही है आपने, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय

आदरणीय रवि शुक्ल जी, क्या खूब मुरस्सा ग़ज़ल हुई है,  मेरी ओर से दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।

आदरणीय शिज्जु भाई आपकी हौसला अफजाई का बहुत शुक्रिया।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बेहद ममनून हूँ।"
36 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"लोग क़ाबिज  अजीब हरक़त में वो दबाते  है   आँख    लानत में जो शऊर इक…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, प्रोत्सयाहन के लिए हार्दिक आभार।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय निलेश नूर जी, आपकी हर ग़ज़ल मुझे पसंद आती है हालांकि आपके शब्दकोश के कई शब्दों का अर्थ मैं…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करेंं। कुछ मिसरे तो अति सुंदर है।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करेंं।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करेंं।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करेंं।ग़ज़ल का मतला वैसे तो अच्छा है पर यह…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"रचना सार्वजनिक होने के बाद शायर की कहाँ रही.. आपकी हो गयी...आप जैसा चाहिए..सादर "
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service