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जीवन ....दोहे 

झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का  संघर्ष ।
जरा अवस्था देखती, मुड़ कर बीते वर्ष ।।

क्या पाया क्या खो दिया, कब समझा इंसान ।
जले चिता के साथ ही, जीवन के  अरमान ।।

कब टलता है जीव का, जीवन से अवसान ।
जीव देखता रह गया, जब फिसला अभिमान ।।

देर हुई अब उम्र की, आयी अन्तिम शाम ।
साथ न आया काम कुछ ,बीती उम्र तमाम ।।

जीवन लगता चित्र सा, दूर खड़े सब साथ ।
संचित सब छूटा यहाँ, खाली दोनों  हाथ ।।

सुशील सरना / 17-10-23
 मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on November 17, 2023 at 7:42pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 17, 2023 at 2:45pm

प्रस्तुत हुए पाँचों दोहों ंमें प्रथम और अंतिम दोहे तो निस्संदेह अव्वल दर्जे के बन पडे हैं। हार्दिक बधाई, आ० सुशील सरनाजी

Comment by Sushil Sarna on November 8, 2023 at 9:31pm
आदरणीय विजय शंकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी
Comment by Dr. Vijai Shanker on November 8, 2023 at 8:08pm

जीवन लगता चित्र सा, दूर खड़े सब साथ ।
संचित सब छूटा यहाँ, खाली दोनों हाथ ।।
आदरणीय सुशील सरना जी , बहुत ही गंभीर और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के लिए ह्रदय से बधाई, सादर ,

Comment by Sushil Sarna on November 7, 2023 at 8:47pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 5, 2023 at 11:05pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।

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