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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-155

विषय : "मेरा जीवन"

आयोजन अवधि- 16 सितंबर 2023, दिन शनिवार से 17 सितंबर 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 16 सितंबर 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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स्वागतम

जय-जय

मेरा जीवन....गीत

जिसको हम-तुम कहते मेरा जीवन
मात-पिता का ऋण इस पर पहला है

आँख हमारी गुरु खोलता जग सखा
यही वजह सुन गुरु है, हार नौलखा
प्रथम पूज्य गुरु है मेरे जीवन में,

पिता स्वरूप मगर वह रहा बाल सखा

ढाला मिट्टी के लोंदे को मूरत
जो हर हालत नहले पर दहला है

जिसको हम-तुम कहते मेरा जीवन
मात-पिता का ऋण इस पर पहला है !
.
देश की माटी मेरी धाय पन्ना
मिटा खुदी को है लिखा नया पन्ना
और जिसे यह नाम उसने दिया है
कि पिता जरूर है बच्चों का अन्ना

हस्ताक्षर रहा जिम्मेदारी का
गलत कोई हो, पितृ-दोष पहला है

जिसको हम-तुम कहते मेरा जीवन
मात-पिता का ऋण इस पर पहला है !

कर्ज मातृ भाषा का बहुत बड़ा है

हिन्दी का जरूर यह असर पड़ा है
सीधी सच्ची बातें कहना सीखा,
यद्यपि खतरा वो सामने खड़ा है

भारती-शत्रु को सदैव ललकारा
माना कभी-कभी यह दिल दहला है

जिसको हम-तुम कहते मेरा जीवन
मात-पिता का ऋण इस पर पहला है !

करुणा, सहिष्णुता दरियादिल होना
संस्कार ईश समर्पण का बोना
माँ भारती यही सदा गुण रहा है
आत्म- निरीक्षण कर निश्चिन्त सोना

जो भी यहाँ अतिथि आया रहता है
सबका स्वागत यह ढंग निराला है

जिसको हम-तुम कहते मेरा जीवन
मात-पिता का ऋण इस पर पहला है !

उत्तर में वो उत्तुंग हिमालय है

बना स्वयं जो शाश्वत शिवालय है
और देवता साथ यहाँ बसते हैं
सभी श्रद्धालुओं हेतु महालय है

मेरा प्रेरणा स्रोत सदा रहा है
साथी, शत्रु देश सदैव दहला है

जिसको हम-तुम कहते मेरा जीवन
मात-पिता का ऋण इस पर पहला है !

मौलिक व अप्रकाशित

उत्तम शब्दों और भावों से सजा अच्छा गीत हुआ है आदरणीय। बहुत ख़ूब

आ. अजय गुप्ता अजेय जी गीत की संस्तुति हेतु आपका अशेष आभार !

बढ़िया गीत |

उत्तर में वो उत्तुंग हिमालय है

बना स्वयं जो शाश्वत शिवालय है
और देवता साथ यहाँ बसते हैं
सभी श्रद्धालुओं हेतु महालय है

बहुत खूब | आदरणीय चेतन प्रकाश जी| बधाई स्वीकारें| 

आ. कल्पना भट्ट रौनक जी गीत आपको अच्छा लगा, इस हेतु आपको अगणित धन्यवाद, सु श्री

गज़ल
मापनी — 22 22 22 22 22 22 22

जीवन मेरा ऐसा जैसे, नदिया की इक धारा,
सुख दुख की लहरों में बीता, अपना जीवन सारा।

कुछ बातों से सुख मिलता है, कुछ घाव करे गहरे।
एक चुभन हरदम रहती है, मिला न कोई प्यारा।

चोट लगी है दिल पर ऐसी, दर्द न भूला जाये।
धन वालो को सब पूछे है, धन बिन जीवन खारा।

एक कला है जीवन जीना, सीख नहीं पाये हम।
सच की राह चले हम जग में, सब कहते बेचारा।

हमने चाहा प्यार मिले पर, मिला न सच्चा साथी।
नहीं कमाया धन ‘मेठानी’, धन के कारण हारा।
- दयाराम मेठानी

अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय दयाराम मेथानी जी। बहुत अच्छे भाव।

आदरणीय अजय गुप्ता जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय दयाराम मेठानी जी | बधाई स्वीकारें| 

आदरणीय कल्पना भट्ट जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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