For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आलेख - माँ की देखभाल औलाद की नैतिक जिम्मेदारी

माँ की देखभाल औलाद की नैतिक जिम्मेदारी

गाज़ियाबाद। इंदिरा चौधरी ने 85 साल की उम्र में जिस इकलौते बेटे की पैरवी करके जमानत कराई, उसे उन्होंने अकेले पाँच वर्ष की उम्र से पाला था। वह जब जेल से बाहर आया तो मां को साथ रखने के बजाय वृद्धाश्रम में छोड़ गया। वह बताती हैं कि वह वाराणसी में बेटे-बहू के साथ ही रह रही थीं। एक दिन अचानक बेटा बहू और पोते को लेकर लापता हो गया। पता चला कि वह जिस कंपनी में काम करता था, वहीं गबन कर गया। कंपनी के केस दर्ज कराने के बाद पुलिस ने उसे तिहाड़ जेल में बंद कर दिया। बहू पोते को लेकर मायके चली गई । इंदिरा चौधरी उसे छुड़ाने दिल्ली आ गईं। कहीं रहने का ठिकाना न मिलने पर दुहाई (गाज़ियाबाद) के वृद्धाश्रम में आ गईं। यहीं से वकील ढूंढा, बेटे से मिलने जेल गईं और पूरा मामला समझा। पैरवी के लिए रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए। हर तारीख पर कोर्ट गई। अंत में बेटे को जमानत मिल गई और वह जेल से बाहर आ गया। इंदिरा कहती हैं कि बेटे की नौकरी जा चुकी थी।उन्होंने आश्रम की संचालिका इंदु श्रीवास्तव से दरखास्त करके बेटे को दो महीने तक आश्रम में ही रखा, क्योंकि उसे नौकरी नहीं मिल रही थी। जब इंदौर में नौकरी मिली तो वह बहू और बेटे के साथ उन्हें भी ले गया। परंतु एक महीने बाद ही बेटा यह कह कर कि "मां... तुम वहीं रहो, वृद्धाश्रम में" वापिस छोड़ गया।

उसी बेटे को याद करके आज भी इंदिरा की आंखें नम हो जाती हैं। वृद्धाश्रम में रहकर भी बेटे के लिए उसके मुंह से दुआ निकलती है। बेटा इतना निष्ठुर है कि मिलने भी नहीं आता।

      आए दिन ऐसे समाचार अखबार में पढ़ने को मिलते रहते हैं समझ में नहीं आता कि आखिर बच्चे उस माँ के प्रति कैसे निष्ठुर हो जाते हैं जिस मां की तुलना ही अतुलनीय है?

         कहते हैं कि ईश्वर को भी पृथ्वी पर आने के लिए एक स्त्री के गर्भ से आना पड़ता है।जो जन्म देने के साथ ही कई रूप धर के एक कवच की भांति उसके अंग संग रहती है। निस्वार्थ सहृदय निर्मल आत्मा लिए माँ रूपी महिला अपने जीवन की हर अभिलाषा को छोड़कर जिस बच्चे को प्राथमिकता देती है। 

वही उसे जब चाहे दूध से मक्खी की तरह निकाल कर अलग कर देता है ।

        देखा जाए तो माँ की उपमा विश्व के साहित्यकारों ने अलग-अलग रूप में की है किसी ने उन्हें देवी कहा किसी ने धरती , किसी ने समुद्र की उपमा दी है फिर भी अपनों के हाथों वो अपमानित होती रहती है आखिर क्यों?

एक माँ का क़र्ज़ कोई नहीं उतार सकता क्योंकि उसकी तपस्या उसी क्षण से शुरू हो जाती है जिस दिन एक पिंड उसकी कोख में आता है। उसी दिन से वह अपना आराम, अपनी इच्छाएँ उस पिंड के नाम कर देती है ,जिसे उसने देखा तक नहीं होता।अपने जीवन की परवाह किए बिना नौ महीनों तक अपने रक्त से सींच कर धीरे-धीरे उस बिन देखे पिंड को एक बालक का स्वरूप देकर जन्म देती है। इस अतुलनीय कार्य को ईश्वर भी माँ के बिना संपूर्ण नहीं कर सकते।

      जो माँ बचपन में उसे दोस्त लगती है बिना कहे ही उसकी हर जरूरत समझ जाती है जिस पर वह खुद से भी अधिक भरोसा करता है जिसकी खुशबू मात्र से अपने आप को सुरक्षित समझता है,उसी माँ से बड़े होने के बाद वह दूर होने लगता है।

        क्यों नहीं बच्चे समझते कि जहाँ माँ उन्हें न केवल दुनिया के थपेड़ों से बचाती है,उनकी एक सिसकी पर अपने दिन का चैन और रात की नींद न्यौछावर कर देती है वहीं उनकी एक किलकारी पूरी दुनिया बन जाती है। वह हमेशा बच्चे के स्वास्थ्य, शिक्षा, भविष्य और अजनबियों से सुरक्षा के बारे में सतर्क रहती है।

       अपने ऊपर असंख्य आक्षेप सहने वाली स्त्री मां बनते ही अपने बच्चे की ढाल बन जाती है । जो काली, चंडी का रूप धारण करने में भी नहीं हिचकिचाती।उसकी दुआएँ न केवल बच्चे की सुख समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती हैं वरन् उसके हाथों की रेखाएं बदलने की क्षमता भी रखती है।आप ही बताइए उसी को दर दर की ठोकरें खाने को छोड़ देना कहाँ तक सही है?

 यह भी तो कटु सत्य ही है कि जिस माँ पर वह अपना हक समझता है उसके प्रति अपने कर्तव्य को पूरी तरह भूल जाता है यहाँ तक कि समाज के सामने उसका तिरस्कार करने में भी नहीं हिचकिचाता..और उसे भी एक माँ बचपना कहकर क्षमा करती जाती है। उसे आगे बढ़ने का मार्ग देकर खुद वहीं खड़ी रह जाती है। अपने बच्चे की अच्छी या बुरी गतिविधि को भलीभांति समझते हुए भी वह बेवकूफ या भोली बनी रहती है ।

एक समुद्र में पानी कम हो सकता है परंतु मां के हृदय में प्रेम कम नहीं हो सकता बल्कि दिन प्रतिदिन क्षण प्रति क्षण उसका प्रेम बढ़ता जाता है। कहते हैं समुद्र का खारापन भी उन आँसुओं के कारण होता है जिसे वह अपनी उपेक्षा होते देख कर भी बहाती नहीं पी लेती है ।

जो माँ जिस पिंड को अपने रक्त से बड़ा करती हो, जिसने अपने बच्चों को हमेशा देना ही सीखा हो वक्त की तपती धूप में अपने सर के आँचल से उसको छाँव दी हो, अपनी गोद का बिछौना और बाहों का झूला दिया हो उस माँ का हम कभी भी ऋण नहीं उतार सकते।

  कितनी अजीब बात है कि जिस बच्चे को धार्मिक नैतिक औरऐतिहासिक कहानियाँ सुना कर अच्छे बुरे का ज्ञान देते हुए उसके जीवन को सही दिशा की ओर ले जाती है, एक अक्षम बच्चा मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से मजबूत इंसान बनाती है। 

वही इतना मौकापरस्त हो जाता है कि अपनी मां को अनजान लोगों के बीच मरने के लिए छोड़ देता है।

       अंत में केवल इतना ही कि चाहे माँ दो अक्षरों से बना छोटा सा शब्द है, परन्तु इसमें प्रेम भाव, स्नेह, अभिलाषा और इतनी शक्ति है कि इसे करोड़ों शब्दों से भी परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि जिसका प्यार मरते दम तक नहीं बदलता उसे मां कहते हैं।इसलिए उसे थोड़ा वक्त और प्यार दीजिए। वरना सब कुछ पा कर भी आप अधूरे रह जाएँगे।

समय रहते अगर आज की पीढ़ी नहीं सुधरती तो हमारे संविधान को चाहिए कि उसमें बदलाव करें और ऐसे बच्चों का हुक्का पानी बंद कर दे जो सक्षम होने के बाद अपनी जन्म दात्री को अक्षम कर देते हैं।

मौलिक व अप्रकाशित 

रचना निर्मल

दिल्ली 

Views: 305

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 31, 2023 at 12:03pm

इस भावपूर्ण लेख के लिए अनंत आभार आदरणीया...

Comment by Rachna Bhatia on March 23, 2023 at 8:10pm

आदरणीय नाथ सोनांचली जी हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by Rachna Bhatia on March 23, 2023 at 8:09pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर भैया नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2023 at 9:16pm

आ. रचना बहन सादर अभिवादन। सुंदर समसामयिक और शिक्षाप्रद लेख हुआ है। हार्दिक बधाई।

Comment by नाथ सोनांचली on March 22, 2023 at 12:01pm

आद0 रचना निर्मल जी सादर अभिवादन। भावुक करने वाला लेख है। क्या कहूँ। निशब्द हूँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
21 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
yesterday
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service