For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं रोना चाहता हूँ

मैं रोना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ
अपने आँखों को आँसुओं से
खूब भींगोना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

पता नहीं कब क्यूँ और कैसे
आँसू मेरे सुख गए
दर्द मिला है इतना के अब
दर्द के नाले सुख गए
बस रोकर उनको फिर से मैं
गीला करना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

याद पड़ा जब छोटा था
बात-बात पर रोता था
थक जाता जब रो-रो कर
माँ के गोद में सोता था
फिर एक बार मैं
उस गोद में सोना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

किंतु अब मुझको माँ का दर्द भी
जरा भी विचलित नहीं करता
चाहे ज़ोर लगा लूँ जितना
मन भारी नहीं होता
चोट लगाकर खुद को फिर
मैं मन भारी करना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

मैंने देखा हैं माँ को रोते
बड़े भाई की अर्थी पर
बाप वहीं पर बिलख रहा था
मझले भाई की छाती पर
लेकिन मेरा दिल ना पिघला
मैं उसको पिघलाना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

लगा मुझे मैं रो दूंगा
पर आँसू ना आए मुझे
बहनो का विलाप भी देखो
मुरझा नहीं पाए मुझे
उन बहनो का दु:ख
मिलकर बाटना चाहता हू
बस एक बार रोना चाहता हूँ

जब मेरा दिल टूटा था
प्यार मेरा जब छूटा था
तब भी मेरी आँख भरी ना
एक बूंद भी ना फूटा था
मैं उस दर्द को खुद में
महसूस करना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

जब यारों ने छोड़ दिया
अपनी राहों को मोड़ लिया
मैं तब भी चुप रहा हमेशा
एक आँसू ना रोया था
यारो को याद करके
फिर मैं सुकून खोना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

बीवी ने कड़वी बात कही
एक नहीं सौ बार कही
पर उसकी कड़वी बातों से भी
आँखें मेरी भरी नहीं
मैं उसकी कड़वी बातों को
दिल से लगाना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

कोई पत्थर लग जाए
कोई चोट लगा के जाए
कोई घाव हरा कर दे
पर आँसू तो निकल आए
मै उन घावों को फिर खुद हीं
कुरेदना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

कोई दिल तोड़ दे
या कोई मुंह मोड़ ले
रोता हुए मुझे फिर अकेला छोड़ दे
मैं उसे गले लगाकर
विलाप करना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

कोई धोखा मिला जाए
या अपना कोई गुम जाए
कोई लौट के आ जाए
और आँसू भी ले आए
मैं उसकी याद में उसे ढूँढना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

कोई इज्जत उतार दे
या ताने हज़ार दे
कोई कोसे कई दफा पर
रुला कर छोड़ दे
मैं उन बदजूबानी को
कई बार सुनना चाहता हूँ
अब एक बार रोना चाहता हूँ

कोई दर्द ना सुने
मेरी बात ना करे
सामने रहूँ मैं मुझको नकार दे
मैं उनके इस कर्म पर फिर
खूब पछताना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

कोई डंक मर दे
गाली बार बार दे
मेरे सामने ही मेरी दुनिया उजाड़ दे
मैं उसके संग मिलके सब देखना चाहता हूँ
बस एक बार रोना चाहता हूँ

"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा

Views: 244

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AMAN SINHA on March 23, 2023 at 9:59am

आदरणीय नाथ सोनांचली साहब, 

आपकी सराहना के लिये धन्यवाद । 

Comment by नाथ सोनांचली on March 22, 2023 at 12:04pm

आद0 अमन सिन्हा जी सादर अभिवादन। कविता के दो या तीन भाग करके भी प्रस्तुत किया जा सकता है। बहरहाल कविता संवेदनाओं की गहरी थाती है। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by AMAN SINHA on March 9, 2023 at 11:42am
आदरणीय रचना भाटिया जी,
आपके सराहना के लिए असंख्य धन्यवाद| मुझे लगा था कि कोई इसे मेरे नज़रिए से देख नहीं पायेगा, मगर आपने देख लिया|

मैं अवश्य हीं टंकण सुधार करूँगा|
धन्यवाद, सादर||
Comment by Rachna Bhatia on March 9, 2023 at 10:26am

आदरणीय अमन सिन्हा जी,आज का आदमी मजबूरियों को सहते सहते किस प्रकार असंवेदनशील होता जा रहा है।आपकी कविता से स्पष्ट हो रहा है। बधाई स्वीकारें। कुछ टंकण त्रुटियाँ हो गई है। ठीक कर लें। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई ग़ज़ल की उम्दा पेशकश के लिये आपको मुबारक बाद  पेश करता हूँ । ग़ज़ल पर आाई…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय अमीरूद्दीन जी उम्दा ग़ज़ल आपने पेश की है शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करे । हालांकि आस्तीन…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय बृजेश जी ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें ! मुझे रदीफ का रब्त इस ग़ज़ल मे…"
4 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह वाह आदरणीय  नीलेश जी उम्दा अशआर कहें मुबारक बाद कुबूल करें । हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा…"
4 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय  गिरिराज भाई जी आपकी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास पसंद आया बधाई  तुम रहे कुछ ठीक, कुछ…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. गिरिराज जी मैं आपकी ग़ज़ल के कई शेर समझ नहीं पा रहा हूँ.. ये समंदर ठीक है, खारा सही ताल नदिया…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अजय जी "
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service