For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महाभारत का घटनाचक्र एक बार फिर से दोहराया गया ! लेकिन इस बार जुआ युधिष्ठिर नहीं बल्कि द्रौपदी खेल रही थी! देखते ही देखते वह भी शकुनी के चंगुल में फँसकर अपना सब कुछ हार बैठी ! सब कुछ गंवाने के बाद द्रौपदी जब उठ खडी हुई तो कौरव दल में से किसी ने पूछा:
"क्या हुआ पांचाली, उठ क्यों गईं?"
"अब मेरे पास दाँव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा " द्रौपदी ने जवाब दिया !
तो उधर से एक और आवाज़ आई:
"अभी तो तुम्हारे पाँचों पति मौजूद है, इनको दाँव पर क्यों नहीं लगा देती ?"
द्रौपदी ने शर्म से सर झुकाए बैठे पांडवों की तरफ हिकारत भरी दृष्टि डालते हुए जवाब दिया:
"मैं इतनी बेग़ैरत नही कि अपने जीवन साथी को ही दाँव पर लगा दूँ!"

Views: 1003

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Gurpreet Singh jammu on February 23, 2023 at 4:45pm
आदरणीय योगराज प्रभाकर सर , OBO पर आपकी पुरानी रचनाएं पढ़ते हुए आज आपकी यह लघु कथा पढ़ी. समझ में नहीं आ रहा इस पर क्या कहूं. बस इस झंझोड़ कर रख देने वाली लघु कथा के लिए बहुत बाउट बधाई आपको।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 11:52pm
लगभग सवा सौ शब्दों में, लगभग दस वाक्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व घटनाक्रम पर अनूठे प्रयोग के साथ बेहतरीन संदेश सम्प्रेषित करती कालजयी कृति।

__शेख़ शहज़ाद उस्मानी
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 11:41pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर जी की टिप्पणियों और सारगर्भित शे'र से सहमत हूँ। उपरोक्त उत्कृष्ट सारगर्भित लघुकथा व संबंधित टिप्पणियों को बार-बार पढ़कर बहुत कुछ जानने, समझने व सीखने का मौका मिला।
यहाँ मैं कुछ हटकर एक बात महसूस करते हुए कहना चाहता हूँ कि जहाँ संदर्भ महाभारत और उसके महत्वपूर्ण पात्रों व महत्वपूर्ण घटनाक्रम का हो, वहाँ हिन्दी साहित्य के भारी भरकम शब्द और क्लिष्ट भाषा में संवादों का प्रयोग किया जा सकता था, लेकिन लघुकथा के सम्प्रेषण संबंधी प्रमुख गुण भी लिए हुए इस रचना में बहुत ही सरल व सहज भाषा का प्रयोग किया गया है। दूसरी बात यह ग़ौर करने लायक है कि कथानक व कथ्य के संदर्भ में जहाँ रचना में सरल हिन्दी शब्दों का प्रयोग किया गया है, वहीं गहरे भाव समेटे हुए आम बोलचाल के उर्दू शब्दों 'हिकारत' व 'बेग़ैरत' का प्रयोग करके मंझे हुए वरिष्ठ लघुकथाकार महोदय ने न केवल कथ्य को बेहतरीन उभार दिया है, वरन अपने भाषायी कौशल का यहाँ भरपूर उपयोग भी किया है। वरना इन दो शब्दों के स्थान पर अन्य बढ़िया शब्दों का प्रयोग भी किया जा सकता था।

सही कहा गया है कि यह लघुकथा 'गागर में सागर' है, कालजयी है। हम अपने समाज में भी नारी का ऐसा रूप कहीं न कहीं, कभी न कभी देख पाते हैं अंतिम पंचपंक्ति जैसे नारी-संवाद के साथ।
आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर जी को इस बेहतरीन लघुकथा सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार हमें सबक़ इस माध्यम से देने के लिए।

__शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.
(8-4-2017)
Comment by Archana Tripathi on April 8, 2017 at 3:54pm
उम्दा कथा हैं जिसके लिए क्या कहने आ.योगराज प्रभाकर जी,मुझे तो साथ ही आ.वरिष्ठ मित्रों के कमेंट पढ़ने थे जिन्हें आपने लिंक देकर सहज कर दिया आपका हार्दिक धन्यवाद।आ. सौरभ पाण्डेय जी की राय से पूर्णतः सहमत हूँ की कथा के साथ साथ टिप्पणियाँ भी बहुत कुछ सीखा जाती हैं।आपका हार्दिक धन्यवाद
Comment by kanta roy on June 17, 2015 at 4:07pm
एक स्त्री और पुरूष के सोच के अंतर को बहुत खूब दर्शाया है आपने । नमन सर जी आपको
Comment by Hari Prakash Dubey on January 4, 2015 at 3:58pm

आदरणीय योगराज सर आपकी इस लघुकथा  ने तो इतिहास मैं जा कर  पूरा विस्तृत महाभारत पलट दिया ! बहुत सुन्दर रचना ,एवम् इसका शिल्प अपने आप में लघुकथा की पाठशाला है , हार्दिक बधाई ,सादर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2015 at 3:37pm

सादर आभार आदरणीय


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 4, 2015 at 3:02pm

आपका यह सारगर्भित शेअर बिलकुल मेरे उसी अक़ीदे की तर्जुमानी कर रहा है जोकि मेरी लघुकथा "बेगैरत" का सार है आ० सौरभ पाण्डेय भाई जी ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2015 at 2:51pm

एक अरसे बाद इस प्रस्तुति पर बना संवाद रोचक लगा आदरणीय योगराजभाईसाहब..
आपकी इस कथा की तासीर देखिये कि २०१० की लघुकथा और २०१४ के आखिरी महीने में मेरा एक शेर --

अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर
अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई

आदरणीय, देखिये कैसे विचार कभी अप्रासंगिक नहीं होते, बल्कि अपने आयाम बदल कर 'मनस' को प्रभावित करते हैं !

इस प्रस्तुति को पुनः चर्चा में लाने के लिए आदरणीय मिथिलेश भाई को धन्यवाद.

परन्तु, एक मिथिलेश ही क्यों, सभी नये सदस्यों को पोस्ट हुई रचनाओं का अध्ययन करना चाहिये.. यह मैं बार-बार कहता रहा हूँ. प्रस्तुतियों पर हुई तबकी टिप्पणियाँ नये हस्ताक्षरों को आवश्यक सोच और समझ के लिए आवश्यक दृष्टि दे सकती हैं. तब हम सब भी नये थे और सीखने का एक अद्भुत माहौल बना हुआ था.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 4, 2015 at 1:27pm

लघुकथा को समय एवं मान देने के लिए हार्दिक आभार भाई भास्कर अग्रवाल जी, आ० अम्ब्रीश श्रीवास्तव जी, भाई पीयूष जी, कामरेड शमशाद  एवं भाई मिथिलेश वामनकर जी। आदरणीय सौरभ भाई जी आपकी इस मुक्तकंठ से की गई प्रशंसा हेतु दिल से आभार व्यक्त करता हूँ, साथ ही देर से जवाब देने के लिए क्षमाप्रार्थी भी हूँ। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service