आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़तीसवाँ आयोजन है.
इस बार का छंद है - गीतिका छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
22 अक्टूबर 2022 दिन शनिवार से
23 अक्टूबर 2022 दिन रविवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
गीतिका छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
********************************************************
आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो
22 अक्टूबर 2022 दिन शनिवार से 23 अक्टूबर 2022 दिन रविवार तक, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
चित्र अंर्तजाल के माध्यम से
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
विशेष : यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
Tags:
Replies are closed for this discussion.
स्वागतम्.. सुधीजनों !
सादर अभिवादन।
गीतिका छंद
***************
दीप का ज्यों कर्म केवल जल तमस को मेटना।
त्यों मनुज को चाहिए जग में बिखेरे ज्योत्स्ना।।
झूठ मद व्यभिचार लालच पाप की हर कामना।
ज्ञान के जब दीप जलते कर न सकते सामना।।
***
जब अमा की भर जगत में आन बैठी हो घड़ी।
या निशा तम को समेटे द्वार पर नित हो खड़ी।।
दिन विवश होकर किरण की तोड़ देता हो कड़ी।
तब मनुज बन जा स्वयं दीपावली की इक झड़ी।।
**
नित्य सूरज भोर से ही जब सवालों में घिरे।
या निशा सम्मुख दिवस का मान कौड़ी सा गिरे।।
चाँद की कोशिश कहीं भी चढ़ न पाये जब सिरे।
दीप को तब चाहिए जग में उजाला ले फिरे।।
***
आज भी मानव तमस के बोझ से देखो लदा।
किन्तु होगा पास उसके भर उजाला भी कदा।।
हर किसी दीपक तले नित है भले ही तम बदा।
किन्तु वो लड़ना सिखाते डट अँधेरों से सदा।।
***
कामना है हर तमस की दीप सम्मुख मात हो।
मानसों में हो उजाला घोर जितनी रात हो।।
दीप को देना निमंत्रण जब तमस की बात हो।
घोर तम को यूँ मिटाते हर नवल शुरुआत हो।।
***
मौलिक/अप्रकाशित
वाह..
वाह, वाह वाह !
सधी, सहज, सुगढ़, प्रभावी, अर्थवान पंक्तियों से सुसज्जित रचना के लिए हार्दिक बधाइयाँ.
इस छंद पर विशेष बधाइयाँ -
नित्य सूरज भोर से ही जब सवालों में घिरे।
या निशा सम्मुख दिवस का मान कौड़ी सा गिरे।।
चाँद की कोशिश कहीं भी चढ़ न पाये जब सिरे।
दीप को तब चाहिए जग में उजाला ले फिरे।।
शुभातिशुभ
आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। छन्दों पर आपकी उपस्थिति, स्नेह और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया लेखन सफल हुआ। इससे भी आस्वस्ति भी हुई कि लेखन में गलतियाँ कमतर हुई हैं । स्नेह के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी अति सुंदर सृजन के लिए बधाई।
आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। छन्दों की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण भाई
दीपावली के शुभ अवसर पर सुंदर है आपकी यह प्रस्तुति हार्दिक बधाई एवं दीपोत्सव की शुभकामना।
जल तमस को स्पष्ट करेंगे ।
मानसों ... किस अर्थ में है ... यह मानसरोवर या मन का बहुवचन है ?
आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
मानसों , मानस का ही बहुवचन है । सादर..
गीतिका छंदावली
दीप.. खुशियों के जलाएँ घर सभी जगमग करें ।
हम.. अँधेरे ..को भगायें दर ब दर उस को करें ।।
दीप... की ...लड़ियाँ ..बनायें हम मुँडेरों पर धरें ।
हम ..पड़ौसी ..को बुलायें और स्वागत घर करें ।।
छोड़.. देवें स्वार्थपरता पीर दुखियों की हरें ।
देखकर दुख दूसरों का आँख से आँसू झरें ।।
प्रार्थना प्रभु राम से हो राज्य जग पर वह करें ।
दिपदिपाये जग अभी तो ईश वन्दन हम करें ।।
तीसरा अब युद्ध हो ना वेदना जग जल मरे ।
रूस.. भी ..यूक्रेन छोड़े पेट नफरत का भरे।।
भूल... जायें ....चौधराहट शक्तियाँ इस विश्व की ।
काश ललचायें नहीं वो अतिरिक्त सत्ता विश्व की ।।
मौलिक व अप्रकाशित
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्तचित्रानुरूप उत्तम छन्द रचे हैं। हार्दिक बधाई।
आदरणीय चेतन प्रकाश जी सुंदर सृजन के लिए बधाई।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |