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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-141

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 141वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब हसरत मोहानी

 साहब की गजल से लिया गया है|

"दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना"

  2122           1122        1122            22

फ़ाइलातुन    फ़इलातुन   फ़इलातुन   फ़इलुन/फ़ेलुन

बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ

रदीफ़ :-  करना

काफिया :- आ(भरोसा, इरादा, पर्दा, तमाशा, रुसवा, पैदा आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 25 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

नादिर जी शुक्रिया

आदरणीय अमित जी, नमस्कार

ख़ूब ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार कीजिए

सादर

रिचा जी नमस्कार

गजल पसंद करने के लिए शुक्रिया आपका

जनाब स्वप्निल जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ।

मतले के शिल्प पर ग़ौर कीजियेगा।

"छोड़ना मत कभी इंसान इरादा करना."           कैसा इरादा? -  " छोड़ देना न भलाई का इरादा करना"  कैसा रहेगा? 

सादर। 

आदरणीय अमीर जी नमस्कार

ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया

मतले पर आपकी आपत्ति काबिले गौर है।

यकीनन कहन में कमी होगी। 

मेरी मुराद इरादा "करने" एफर्ट लगाने से थी।

आ. भाई अमित जी, तरही मिसरे पर अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

गजल पसंद करने का शुक्रिया

भाई अमित स्वप्निल जी, आपके प्रयासों के लिए हार्दिक बधाई.

काम जिनका है फ़क़त खेल तमाशा करना

ऐसे लोगों पे मेरी जाँ न भरोसा करना ...1

 

आसुओं पर किया आहों पे गुज़ारा लेकिन 

ये गवारा न हुआ औरों से चर्चा करना

 

शर्म से अपना पड़े सर ये झुकाना तुमको

ऐसे हालात मेरे यार न पैदा करना ...3

 

जब भी कमज़ोर करें तुझको ये हालात तेरे

और मज़बूत मेरे यार इरादा करना ..4

 

अपनी खुद्दारी पे जो लोग यहाँ जीते हैं

ऐ ख़ुदा उनको न दुन्या में तू रुसवा करना...5

 

नेकियाँ हैं न कुबूल उनकी इबादत नादिर

जिनकी आदत है फ़क़त इनका दिखावा करना...6

 

गिरह

ऐ ख़ुदा ये तो गवारा ही नहीं है हमको

“दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना"

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

आदरणीय नादिर जी नमस्कार

बहुत ख़ूब हुई ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजिए

सादर

बहुत शुक्रिया रिचा जी

जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ।

मतले के शिल्प पर ग़ौर कीजियेगा - 

'आसुओं पर किया आहों पे गुज़ारा लेकिन

 ये गवारा न हुआ औरों से चर्चा करना'          इस शे'र को यूँ कहें तो? -

'अश्क-ओ-आहों पे किया यूँ तो गुज़ारा हमने 

 बस गवारा न हुआ औरों से चर्चा करना'         सादर।

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