For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२२१/२१२१/१२२१/२१२


तकरार करते करते ही सावन गुजर गया
मनुहार करते करते ही सावन गुजर गया।१।
*
बाधा मिलन में उनसे जो हालात थे उलट
अनुसार करते करते ही सावन गुजर गया।२।
*
हम खुद में व्यस्त  और  वो औरों में व्यस्त थे

व्यवहार करते  करते  ही  सावन  गुजर गया।३।

*
इस पार हम थे बैठे तो उस पार थे सजन
नद पार करते करते ही सावन गुजर गया।४।
*
उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन

तैय्यार करते  करते  ही  सावन  गुजर गया।५।
*
उस पर कहा सखी ने जो सजना सँवरना भी

शृंगार करते  करते   ही  सावन  गुजर  गया।६।

*
वो लोग खुशनसीब थे जिन का यूूँ रार बिन
बस प्यार करते करते  ही सावन गुजर गया।७।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 996

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2021 at 8:34pm

आ. भाई बृजेश कुमार जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 26, 2021 at 8:16pm

आदरणीय धामी जी बड़ी रदीफ़ पर बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है...सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2021 at 6:51pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2021 at 6:40pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर ।गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार। इंगित मिसरों के लिए सुझाए गये बदलाव बेहतरीन हैं । 

//श्रृंगार .. ये कौन सी अक्षरी है, भाई ?//

फोन में सेटिंग गड़बड़ होने से शृंगार शब्द टाइप 

नहीं हो पाता। पहले भी किसी रचनाकार की रचना पर इस बारे आपकी टिप्पणी ध्यान में है । पुनः सजग करने के लिए आभार..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2021 at 2:12pm

करते-करते ही सावन गुजर गया जैसे रदीफ पर ग़ज़ल कहना अच्छा लगा, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. 

हम खुद में व्यस्त और वो औरों में व्यस्त थे .. क्या कमाल का मिसरा है.  इसमें इतवार का होना कुछ जम नहीं रहा. 

हम तो ’व्यवहार करते-करते ही सावन के गुजर जाने की बात करते. शेर बनिस्पत अच्छा निकल जाता. 

उनसे मिलन की बात थी हमको मगर ये मन .........  उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन .. 
तैय्यार  करते  करते  ही  सावन  गुजर  गया 

श्रृंगार .. ये कौन सी अक्षरी है, भाई ?

इसे शृंगार लिखा करें, जो इस शब्द की शुद्ध अक्षरी है. नेट पर जो श्रृंगार  लिखा मिलता है, या हृदय की जगह ह्रदय लिखा मिलता है, ये सारी अशुद्ध अक्षरियाँ हैं जो लेखकों की लापरवाही के कारण, या ’चलता है’ की ओट में प्रचलित हो गयी हैं.  

शुभ-शुभ

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 10:34pm

आ. भाई समर जी, सादर आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 10:33pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।

Comment by Samar kabeer on August 17, 2021 at 2:03pm

आप मुतमइन हैं तो रहने दें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 17, 2021 at 12:57pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" जी। बेहतरीन ग़ज़ल।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 16, 2021 at 9:03pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थितिऔर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

//इतवार करते  करते  ही// को फुर्सत के पल निकालने के प्रयास के संदर्भ में लेते हुए लिखा है । यदि असंगत लग रहा हो और अनुचित हो तो बदलने का प्रयास करूँगा। मार्गदर्शन करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service