सनातन धर्म का गौरव सहज त्योहार है राखी
 समेटे प्यार का खुद में अजब संसार है राखी।१।
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हैं केवल रेशमी धागे  न  भूले से भी कह देना
 लिए भाई बहन के हित स्वयं में प्यार है राखी।२।
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 पुरोहित देवता भगवन सभी इस को मनाते हैं
पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी।३।
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 बुआ चाची ननद भाभी सखी मामी बहू बेटी
 सभी मजबूत रिश्तों का गहन आधार है राखी।४।
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 न जाने कितने ही रिश्ते इसी दिन आन मिलते हैं
 कहें तो सब कुटुम्बों के मिलन का द्वार है राखी।५।
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 सजाती है बहन थाली जो राखी और रोली से
 लिए आशीष लम्बी उम्र का उपहार है राखी।६।
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 बड़ी हो उम्र भाई  की  रहे  भगिनी सुरक्षा में
 दिलों की भावनाओं का सही में सार है राखी।७।
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 बिछड़ती है बहन भाई से गर ससुराल जाकर तो
 कठिन बरसात के मौसम मिलन विस्तार है राखी।८।
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 कठिन हालात दूरी  बन  भले ही राह रोकें पर
 किसी भी हाल में आना सहज मनुहार है राखी।९।
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गरीबी, दूरियों के दुख हैं लाते रिश्तों में सूखा
पड़ी खुशियों की सावन में कहें बौछार है राखी।१०।
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 मगर बाजार की संगत हुई है जब से इसकी तो
 बहन भाई के कन्धों पर कसम से भार है राखी।११।
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मौलिक.अप्रकाशित
 लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई अशोक कुमार जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व सुझाव देने के लिए धन्यवाद। भाई सौरभ जी ने उत्तम बदलाव सुझाए । उन्हें स्वीकारते हुए संशोधन कर लिया है। देखिएगा। आपकी टिप्पणी पर देर से उपस्थिति के लिए क्षमा करें। सादर..
आदरणीय भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर उपस्थिति और भरपूर प्रशंसा केलिए हार्दिक धन्यवाद। गजल पर शंकाओं के समाधान की महत्वपूर्ण पहल व बेहतरीन सुझावों के लिए हार्दिक आभार।
 आपके कथनानुसार बदलाव कर लिए हैं देखिएगा। सादर..
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी इस ग़ज़ल के माध्यम से रक्षाबन्धन के आलोक में भारतीय संस्कार और परिपाटियों पर सार्थक उद्गार अभिव्यक्त हुआ है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें.
जहाँ तक ग़ज़ल के कतिपय मिसरों पर चर्चा का प्रश्न है, मैं अपने अभिमत प्रस्तुत कर रहा हूँ :
// //'पुरातन सभ्यता का इक बनी आसार है राखी'// 
इस मिसरे में "बनी" क्रिया का सम्बंध राखी से है न कि आसार से, जिसे विशेषण के तौर पर किया है। मेरे सीमित ज्ञान के अनुसार सही है । फिर भी व्याकरणविदों से निराकरण के बाद बदलाव का प्रयास करूंगा. // 
आपका कहना उचित है, आदरणीय.
लेकिन आसार शब्द बहुवचन है. दूसरे, इस मिसरे के माध्यम से जो अर्थ निस्सृत होना चाहिए, या जो अपेक्षा है, उसके अनुसार ’आसार’ शब्द का होना ही उचित नहीं है. आप आधार का प्रयोग करें तो बात वही निस्सृत होगी जो इस मिसरे के माध्यम से आप चाहते हैं.
फिर तो, इसे परिवर्तित कर मिसरे को पुनः विन्यासित करें - पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी.
// //'गरीबी दूरियों का दुख है लाता रिश्तों में सूखा'//
इस मिसरे में भी "लाता" क्रिया दुख से सम्बद्ध है न कि गरीबी से //
इस संदर्भ में, मुझे आदरणीय अशोक भाईजी की व्याख्या सर्वथा उचित जान पड़ी.
वैसे दोनों संज्ञाएँ भिन्न लिंगों की हैं तथा एक को तो विवेचित भी किया गया है. इसकारण, क्रिया को लेकर दुविधा बनी है. वस्तुतः, ऐसे में क्रिया बहुवचन की होती है.
अतः, इस मिसरे को कुछ यों कहना समीचीन होगा - गरीबी, दूरियों के दुख हैं लाते रिश्तों में सूखा
आशा है, शंका-समाधान की पहल में मेरा कहना तनिक सार्थक तथा स्वीकार्य होगा.
शुभ-शुभ
बंधु आपका हार्दिक स्वागत है।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। वस्तुतः मैने यहाँ आसार को "चिह्न " के अर्थ में ही प्रयोग किया है। पर कहन को सही रूप नहीं दे पाया। आपने बेहतरीन सुझाव देकर मेरी उलझन सुलझा दी ।इसके लिए दिल से आभार..
//लगता है इस मिसरे जो कहना चाह रहा था वह स्पष्ट नहीं हो पाया।अतः इसे बदलना ही सही है//
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी, लुग़ात में तलाश करने पर 'आसार' शब्द के कुछ और अर्थ भी मिले हैं जैसे कि : निशानात, अलामात, नींव, बुनियाद, दीवार या बुनियाद की चौड़ाई, क़ब्र, मक़बरा, यादगार और दीवार या नींव का पाया वगै़रह। तो मेरे ख़याल में आपको ये मिसरा हटाने की ज़रूरत नहीं है बल्कि मामूली बदलाव से ही काम बन जायेगा, और ये वाला 'आसार' एकवचन ही है। मुनासिब लगे तो मिसरा यूँ कर सकते हैं :
"पुरातन सभ्यता की नींव का आसार है राखी" सादर।
आ. भाई चेतन जी, आपकी बात से सहमत हूँ । सादर
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवाद। पुनः उपस्थिति के लिए आभार । अरबी का शब्द आसार , असर का ही बहुवचन कहा जाता है । इसमें दो राय नहीं।
लगता है इस मिसरे जो कहना चाह रहा था वह स्पष्ट नहीं हो पाया।
अतः इसे बदलना ही सही है इसे इस प्रकार देखें
--- पुरातन सभ्यता से ही मिला आचार है राखी
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, रक्षा-बंधन पर्व के अवसर पर खूबसूरत गज़ल हुई है आपकी. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. एक-मिसरों पर खूब अच्छी चर्चा भी हुई है.
'पुरातन सभ्यता का इक बनी आसार है राखी'......इस मिसरे में 'आसार' शब्द बहु वचन है इसलिए यह मिसरा 'पुरातन सभ्यता के.... ' से आगे बढेगा और उसी अनुरूप आगे बदलाव भी करने होंगे और तब 'इक' शब्द का प्रयोग भी सम्भव नहीं हो सकेगा.
'गरीबी दूरियाँ का दुख है लाता रिश्तों में सूखा'...यह मिसरा एक से अधिक तरह पढ़ने में आ रहा है इसकारण पाठक के मन में शंकाएं भी अधिक हैं. गरीबी, दूरियों का दुख है, लाता/लाती रिश्तों में सूखा,.....यदि इस तरह गरीबी को परिभाषित करते हुए पढ़ा जाएगा तो लाता के स्थान पर 'लाती' करना होगा. यदि इसे गरीबी और दूरियों.....दो बातों के कारण सूखा कहा गया है तब इसे ' गरीबी, दूरियों के दुख हैं लाते रिश्तों में सूखा' .. करना पडेगा. आपने शायद इस मिसरे ' गरीबी-दूरियाँ का, दुख है, लाता रिश्तों में सुखा'...कुछ इस तरह चिन्हों का प्रयोग किया है. इसी कारण सभी विद्वत जन आशंकित हैं. सादर
आदरणीय भाई, लक्ष्मण सिंह 'मुसाफ़िर साहब, पुन: नमस्कार! बंधु वर, महर्षि पाणिनि की व्याकरण विश्व की सर्वश्रेष्ठ व्याकरण मानी जाती है! और, उनकी व्याकरण के अनुसार वाक्य में किसी शब्द की पहचान कारक से की जाती है, कर्ता की पहचान वाक्य में ' कौन, किसने अथवा वाक्य किसके समबन्ध में है, से की जाती है! वाक्य में क्रिया का आरोपण (application of verb) जिस संज्ञा पर होता है, कर्म ( object ) कहलाती है, जिसका निश्चय उक्त वाक्य में किसका, किसे लगाकर होता है! अत: ' पुरानी सभ्यता का इक बनी आसार है राखी' सो, ' का' 'की' 'के' से कर्म वाच्य शुरू हो जाता है जो 'राखी' पर समाप्त हो रहा है, अत : 'राखी' निश्चय ही कर्म ( object) है, चूंकि वाक्य में क्रिया ( बनी )कर्ता को समर्पित है, 'राखी' कर्म ( object) से सम्बद्ध नहीं है, जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूँ! 'आसार' असर (संज्ञा) से बना विशषण है, जो ' पुरानी सभ्यता का इक बनी आसार है राखी' से स्पष्ट है!
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