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अहसास

यूँ तो अपना था वो कहने को

पर वो अपना हो ऐसा एहसास कहाँ,
उनके दिल में उतर कर देखा जो ख़ुद को
तो जाना उनके दिल में अपना ठौर कहाँ,
ख़ुद तजुर्बा ये मैने है पाया
इस दुनिया में वफ़ा का मोल कहाँ,
झूठे वादों पर चलती है दुनिया
सच का तो अब है मौन यहाँ,

यूँ तो अपना था वो कहने को
पर वो भी अपना हो ऐसा एहसास कहा,

मौलिक/ अप्रकाशित

रोहित डोबरियाल "मल्हार"

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Comment by Chetan Prakash on August 6, 2021 at 3:19am

रोहित डोबरियाल साहब,  काव्य रचना है तो काव्यानुशासन अनिवार्य है, बंधुवर  !

Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on August 5, 2021 at 10:48pm

Chetan prakash ji  मैं आपका कहना समझ रहा हूँ किंतु ये बस भावनाएं हैं जो लिखी है ....अन्यथा न लें

Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on August 5, 2021 at 10:47pm

Chetan prakash साहब भावनाएं विधा में ही लिखी जाएं ये जरूरी तो नही है

Comment by Chetan Prakash on August 5, 2021 at 10:35pm

जी, आदाब, आदरणीय, आप बेहतर  समझते हैं, नज़्म  कहन में निरन्तरता  के होते  ही बोधगम्य होती है , शुभ  रात्रि  !

Comment by Samar kabeer on August 5, 2021 at 10:06pm

//यूँ तो अपना  था वो कहने को" पहली पंक्ति से शुरू होकर तीसरी  पंक्ति  " उनके  दिल  में उतर कर देखा जो खुद  को//

भाई चेतन जी, आप शायद ये कहना चाहते हैं कि या तो पहली पंक्ति यूँ होना चाहिये--'यूँ तो अपने थे वो कहने को'

या पहली ज्यूँ की त्यूँ रहने दें तो तीसरी पंक्ति यूँ होना चाहिये 'उसके दिल में उतर कर देखा जो ख़ुद को'?

Comment by Chetan Prakash on August 5, 2021 at 9:47pm

मैंने पंक्तियां उद्धृत की हैं, जनाब, फिर समझने को क्या रह जाता है, सिवाय आपके विधा को समने के! 

Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on August 5, 2021 at 9:18am

Chetan prakash ji आप एक बार पंक्तियों को समझें, वैसे सुझाव के लिए शुक्रिया

Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on August 5, 2021 at 9:17am

अमीरुद्दीन अमीर साहब शुक्रिया

Comment by Chetan Prakash on August 5, 2021 at 7:37am

आदाब, रोहित  डोबरियाल साहब,  कविता, और  वो  भी, मुक्त  छंद  में अभिव्यक्त  अन्तर सम्बन्धों  पर , चाहे  संक्षिप्त ही क्यों  न हो, सावधानी  चाहिए!  " यूँ तो अपना  था वो कहने को" पहली पंक्ति से शुरू होकर तीसरी  पंक्ति  " उनके  दिल  में उतर कर देखा जो खुद  को" मे स्वयं  देखें  भटकाव  की शिकार  है ! सादर 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 4, 2021 at 8:48am

जनाब रोहित डोबरियाल 'मल्हार' जी आदाब, अच्छी रचना हुई बधाई स्वीकार करें।

'उनके दिल में उतर कर देखा जो ख़ुद को'  इस पंक्ति में टंकण त्रुटि हो गई है 'उतर' को 'उतार' कर लें।  सादर। 

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