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जो किसी का नहीं अब वही है मेरा ....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

212 212 212 212

आज दिल उसके दुख से दुखी है मेरा
जो किसी का नहीं अब वही है मेरा (1)

मौत मुझको बुलाती है हर पल मगर
ज़िंदगी रास्ता रोकती है मेरा  (2)

लिख न पाऊँगा मैं आज क्या हो गया
मौत से सामना आज भी है मेरा  (3)

डगमगाते हैं जब भी क़दम ये मिरे
यार मंज़िल पता पूछती है मेरा   (4)

रख दिया है मुझे आग के सामने
जानता है बदन काग़ज़ी है मेरा  (5)

रोक सकता नहीं रथ के पहिए कोई
अब ख़ुदा जंग में सारथी है मेरा  (6)

ज़िंदगी मेरी सुनती नहीं आजकल
मौत भी कब कहा मानती है मेरा  (7)

जानता ही नहीं वो मुझे आज तक
यार 'सालिक' वही अजनबी है मेरा  (8)

* मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 17, 2020 at 8:02pm

बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय...

Comment by सालिक गणवीर on November 5, 2020 at 1:02pm

उस्ताद -ए -मुहतरम समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.आपकी क़ीमती इस्लाह पर तामील हो गई है जनाब। शुक्रिय :

Comment by Samar kabeer on November 4, 2020 at 6:49pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'मौत हर दम बुलाती रही है मुझे
ज़िंदगी रास्ता रोकती है मेरा'

उचित लगे तो ऊला यूँ कर लें:-

'मौत मुझको बुलाती है हर पल मगर' 

 'मंज़िलें रास्ता पूछती है मेरा'

इस मिसरे में 'मंज़िलें' बहुवचन है इस कारण रदीफ़ 'है मेरा' की जगह "हैं मेरा" हो रही है, इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-

'यार मंज़िल पता पूछती है मेरा' 

Comment by सालिक गणवीर on November 4, 2020 at 4:13pm

मुहतरमा अंजलि गुप्ता जी.
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.

उस्ताद जी से इस्लाह के बाद मतला यूँ पढ़ा जाए...

आज दिल उसके दुख से दुखी है मेरा
जो  किसी  का  नहीं अब वही है मेरा

Comment by सालिक गणवीर on November 4, 2020 at 4:08pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी.
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.

आपने सहीह फरमाया मुहतरम. मतला यूँ पढ़ा जाए...।

आज दिल उसके दुख से दुखी है मेरा
जो  किसी  का  नहीं अब वही है मेरा

Comment by सालिक गणवीर on November 4, 2020 at 4:04pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.

Comment by anjali gupta on November 3, 2020 at 11:44pm
  • आदरणीय सालिक गणवीर जी सातवाँ शेर ख़ास पसन्द आया। मतले का सानी अस्पष्ट लगा। अच्छी ग़ज़ल हुई। सादर 
Comment by Chetan Prakash on November 3, 2020 at 7:46pm

बह्रे मुतदारिक मुसम्मन सालिम मे कही हुई अच्छी ग़ज़ल ! बंधुवर सालिक गणवीर जी बधाई स्वीकार करें । मतला कानों को थोड़ा खटकता है, मुआफ करें, मगर मुझे लगा सानी मिसरे का प्रवाह कहीं बाधित है।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 3, 2020 at 7:38am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

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