For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो बीता हुआ बचपन

  • वो बीता हुआ बचपन , कहां से लाऊं? ना आज की चिन्ता , ना कल की फिकर, हरदम हरपल बस खुल के मुस्कुराऊं।। खेलूं कूदूं और जी भर के खाऊं। बीमारी के डर को, मैं भूल जाऊं।। स्कूल से घर और घर से स्कूल। के रास्ते भर दोस्तों से, जी भर बतियाऊं।। कभी रूठूं ,कभी मटकूं , नाज नखरे दिखाऊं। मम्मी से हर जिद, अपनी मनवाऊं।। वो ममता के आंचल में, जाकर छुप जाऊं। जिम्मेदारियों से कुछ पल, निजात मैं पाऊं।। नीता तायल मौलिक और अप्रकाशित

Views: 592

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2020 at 7:50am

आ. नीता जी, अभिवादन। अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Neeta Tayal on September 15, 2020 at 1:56pm

आदरणीय सर जी आपके प्रोत्साहित शब्दों के लिए आपका भौत बहुत शुक्रिया

Comment by Harash Mahajan on September 15, 2020 at 11:44am

वाह नीता तयाल जी बेहद सुंदर सृजन । आदरणीय समर कबीर जी ने तफ़सील जो बता दिया है  ।

सादर ।

Comment by Neeta Tayal on September 14, 2020 at 3:00pm
आदरणीय सर जी , त्रुटियां बताने के लिए शुक्रिया,ऐसे ही आप बताते रहिएगा,क्योंकि जब तक हमें कोई गलती नहीं बतायेगा तब तक हम वो दोहराते रहेंगे।बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Comment by Samar kabeer on September 14, 2020 at 12:17pm

मुहतरमा नीता तायल जी आदाब, अच्छी रचना लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।

'वो ममता के आंचल में, जाकर छुप जाऊं'

इस पंक्ति में 'वो' की जगह "फिर" शब्द उचित होगा,विचार करें ।

इसके इलावा रचना में कुछ टंकण त्रुटियाँ देखें,जैसे:-

कहां--कहाँ

लाऊं--लाऊँ

मुस्कुराऊं--मुस्कुराऊँ

खेलूं-कूदूं--खेलूँ-कूदूँ

खाऊं--खाऊँ

जाऊं---जाऊँ

बातिआऊं--बतियाऊँ

आदि ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
20 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service