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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-120

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 120वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  जलील मानिकपुरी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"तुझ से मिलने की आरज़ू है वही "

2122     1212     22/112

फाइलातुन        मुफ़ाइलुन        फेलुन/फइलुन

(बह्र: खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :- है वही।
काफिया :- ऊ( आरज़ू, गुफ़्तगू, तू, बू, लहू आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 जून दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 जून दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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जिस का था ख़्वाब रू-ब-रू है वही

जैसा सोचा था हू-ब-हू है वही
_
क्यों ज़माना नहीं बदल पाया
इश्क़ का आज तक अदू है वही
_
चाक दिल की मरम्मतें क्या हैं?
हश्रे-जामा-ए-बा-रफ़ू है वही
_
मौन मानव हुआ, सुना सबने
कोयलों की कुहू-कुहू है वही
_
अपनी नजरों को इतना समझाओ 
पैरहन जो हो आबरू है वही
_
है वही यार का पता जब तक
मेरी आवारगी की सू है वही
_
एक चाहत है मन में, तू ये कहे
जिंदा जिस के लिए हैं तू है वही
_
हर घड़ी सामने है तू फिर भी 
तुझसे मिलने की आरज़ू है वही**
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

जनाब अजय गुप्ता जी आदाब, 'देर आयद,दुरुस्त आयद', तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें ।

'अपनी नजरों को इतना समझाओ 
पैरहन जो हो आबरू है वही'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ,देखियेगा ।

शुक्रिया समर साहब। आपकी प्रेरणा से नव सृजन को शक्ति मिलती है।

इंगित शेर में यह कहने का प्रयास है कि कपड़े जैसे भी पहने हों, इज़्ज़त समान रूप से देनी चाहिये। किसी के कपड़े देख कर उसे बुरी नज़र से देखना गलत है।

कृपया सुझाव दें कि इसे कैसे बेहतर किया जा सकता है

'है वही' रदीफ़ के साथ आपके भाव को इस शैर में लाना मुश्किल है,हर ज़मीन की अपनी मुश्किलें होती हैं ।

जनाब अजय गुप्ता जी, तरही मिसरे पर बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए। सादर। 

बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

जनाब अजय गुप्ता जी  ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है  बधाई स्वीकार करें

आदरणीय अजय गुप्ता साहिब, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर दाद और बधाई स्वीकार करें!

"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-120 को सफल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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