For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़रा  सोचें  अगर इंसान सब लोहा-बदन  होते(७५ )

(1222 1222 1222 1222 )

ज़रा  सोचें  अगर इंसान सब लोहा-बदन  होते

यक़ीनन फिर क़ज़ा आने पे पत्थर के क़फ़न होते

**

निज़ामत ग़ौर करती  गर ग़रीबों की तरक़्क़ी पर

वतन में अब तलक भी लोग क्या नंगे बदन होते ?

**

फ़िरंगी की अगर हम नक़्ल से परहेज़ कर लेते 

नई पीढ़ी के फ़रसूदा भला क्या पैरहन होते ?

**

जूँ  लुटती आज है लुटती इसी मानन्द  गर   क़ुदरत

तो क्या दरिया शजर बचते कहीं पर कोई बन होते ?

**

अगर इन्सां न  मज़हब और फिरकों में बँटा होता

बरहमन मोमिनों को क्या  लड़ाने के जतन होते ?

**

बशर के  बूँद अमरित की नसीबों में अगर होती

जहाँ से ख़त्म फिर हर हाल में सब  गोरकन होते

**

ज़रा से ज़र की ख़ातिर छोड़ डाला है वतन जिसने

वही अब  चाहता  है पास में फिर  हमवतन होते

**

पराये  दर्द सहना दूर करना शग्ल  है जिसका

ख़ुदा क्यों देखता उसको बुराई में  मगन होते ?

**

'तुरंत' इक है  तमन्ना काश भारत में कभी  देखें

अजानें मंदिरों में और मस्जिद में भजन होते

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी

**

शब्दार्थ -- फ़रसूदा= फटे हुए ,पैरहन=वस्त्र ,बन =वन/जंगल ,

बरहमन=ब्राम्हण ,गोरकन=एक जंतु जो कब्र खोदकर

 मुर्दे खाता है, शग्ल=रुचि 

 (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 330

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on March 28, 2020 at 8:32pm

जी,मैं जानता हूँ,लेकिन मैं जो भी जानकारी आपको या मंच को देता हूँ वो 100% सहीह होती है,जो लोग भाषा के जानकार नहीं वो कुछ भी इस्तेमाल कर सकते हैं,लेकिन 'शायर' शब्द 'पत्थर'ख़ंजर' के क़वाफ़ी के साथ किसी तरह नहीं चल सकता,लेकिन इसे भी चलाने वाले चला ही लेते हैं,आप जब 'जान एलिया' जैसे भाषा के जानकार शाइर को सुनेंगे तो उन्हें "मानन्द" ही इस्तेमाल करते पाएँगे ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 28, 2020 at 5:13pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर नमन |  आपके निःस्वार्थ मार्गदर्शन के लिए आपका ऋणी हूँ | आवश्यक संशोधन कर दिए हैं | हालाँकि मानन्द शब्द उर्दू में प्रचलित नहीं है , हर शाइर के कलाम में मानिंद ही देखा है अब तक , इसमें कुछ असमंजस अवश्य है | ऐसा देखा गया है , उर्दू में स्वरों को एक दुसरे के स्थान पर परिवर्तित कर शब्द बना लिए गए हैं और उनके दोनों रूप मान्यता प्राप्त कर चुके हैं | "य " की ध्वनि भी "स्वर " की ध्वनि मान ली गई है | जैसे मोहब्बत /महब्बत , शाइर /शायर , जाइज /जायज , आयेगा /आएगा , अयादत /इयादत / एहसास /अहसास , इख़्तियार /अख़्तियार जैसे कई शब्द प्रयोग में होते रहते हैं और उर्दू से नावाक़िफ़ लोगों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं | 

Comment by Samar kabeer on March 28, 2020 at 4:27pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।

'फ़िरंगी की नक़ल गर हिन्द की नस्लें नहीं करती'

इस मिसरे में 'नक़ल' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "नक़्ल"21 देखियेगा ।

'जूँ  लुटती आज है लुटती इसी मानिंद गर   क़ुदरत'

इस मिसरे में 'मानिंद' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "मानन्द",देखियेगा ।

'ज़रा सी ज़र की ख़ातिर छोड़ डाला है वतन जिसने'

इस मिसरे में 'ज़रा सी' की जगह "ज़रा से" कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service