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आम की गुठली (लघुकथा)

"चलो चलो!जल्दी तैयार हो जाओ सब लोग यहाँ पंक्ति में खड़े हो जाओ।" सफ़ेद कुर्ते वाला चिल्ला रहा था। गाँव के चौपाल पर महिलाओं को इक्कठा किया जा रहा था। महिलाएं सजी -धजी पंक्ति में खड़ी होती जा रही थी। चौपाल पर कुछ नव-युवक और कुछ बुज़ुर्ग वर्ग बैठे हुए थे। बुज़ुर्गों के लिए तो जैसे यह आम बात थी। चौपाल पर भारतीय प्रजातंत्र की बातें हो रही थी। नव-युवक बुज़ुर्गों की बातें ध्यान से सुन रहे थे। किसी ने पूछा,"ये महिलाएं कहाँ जा रही हैं? इनको यह कुर्ते वाला क्यों लेने आया है? यह कौन है?" तरह- तरह की बातें हो रही थीं। किसीने उत्तर दिया,"करीब के शहर में रैली का आयोजन है। सो आस-पास के गाँव से महिलाओ को इक्कठे किया जा रहा है।और यह कुर्ते वाला उसी नेता के लिए काम करता हैं।" किसीने पूछा," किस बात के लिए रैली होने वाली है? मेरे बापू बोले अम्मा को जाने दो।" करीब बैठे हुए एक बुज़ुर्ग ने उसकी तरफ देखते हुए कहा,"क्यों रे लल्ला! तेरे घर से कौन जा रहा है?" "मेरी माँ और पत्नी......।" "तो क्या सच में तुझे पता नहीं ....?" "क्या पता नही! दादू ..." "ये महिलाएं उस सफ़ेद कुर्ते वाले के साथ आज शहर जाएँगी।इनके हाँथो में कुछ लाल-नीले अक्षरो से लिखे हुए गत्ते पकड़ा दिए जायेंगे.....।" "अरे!... पर क्यों..... उससे क्या होगा?"उस नव-युवक ने उत्सुकता-वश पूछा। "हाहा हाहा! आज के प्रजातन्त्र में कब कुछ हुआ है........हाहा हाहा! कल के अख़बार में यह खबर आ जायेगी...फलां-फलां के लिए महिलाओं की रैली नीक्ली, जो अमका-तमका नेता के नेतृत्व में संपन्न हुई। और इसकी सफलता इसमें शामिल भीड़ को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं।" "मैं कुछ समझा नहीं....."उस नव-युवक ने कहा। "बेटा! ज्यादा न सोचो, शायद तुम पहली बार ऐसा देख रहे हो।" "जाओ बेटा घर जाओ, देखो घर जाकर आज तुम्हारी माँ ने पकवान बनाया होगा।" "हाँ! बनाया तो है। पर पकवान से रैली का क्या मतलब?" "बेटे!ये प्रजातंत्र हैं, यहाँ आये दिन रैलियां निकलती रहेंगी, और भीड़ बढ़ाने के लिए इसी तरह से पैसे देकर लोगों को ले जाया जायेगा।" कुछ पल रुक कर उन्होंने उस नव-युवक के चहरे पर के उतार-चढ़ाव देखने के बाद कहा,"तुम आम खाओ गुठलियों के बारे में न सोचो।" मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 13, 2018 at 6:44pm

सादर धन्यवाद आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब , आदरणीय सतविंद्र भैया, आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 13, 2018 at 6:43pm

सादर धन्यवाद आदरणीय विजय सर |

Comment by vijay nikore on February 13, 2018 at 6:38pm

आज आपकी प्रभावशाली लघु कथा पुन: पढ़ी.... बधाई

Comment by vijay nikore on January 25, 2018 at 1:19pm

बहुत ही प्रभावशाली लघु कथा । हार्दिक बधाई, आदरणीया कल्पना जी।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 25, 2018 at 8:26am

आम की गुठली (लघुकथा)

"चलो चलो!जल्दी तैयार हो जाओ सब लोग यहाँ पंक्ति में खड़े हो जाओ।" सफ़ेद कुर्ते वाला चिल्ला रहा था।
गाँव के चौपाल पर महिलाओं को इक्कठा किया जा रहा था। महिलाएं सजी -धजी पंक्ति में खड़ी होती जा रही थीं।
चौपाल पर कुछ नव-युवक और कुछ बुज़ुर्ग बैठे हुए थें। बुज़ुर्गों के लिए तो जैसे यह आम बात थी। चौपाल पर भारतीय प्रजातन्त्र की बातें हो रही थी ,नव-युवक बुज़ुर्गों की बातों को ध्यान से सुन रहे थें।
किसी ने पूछा,"ये महिलाएं कहाँ जा रही हैं? इनको यह कुर्ते वाला क्यों लेने आया है? यह कौन है?"
तरह- तरह की बातें हो रही थीं।
किसीने उत्तर दिया," शहर में रैली का आयोजन है। सो आस-पास के गाँव से महिलाओ को इक्कठा किया जा रहा हैं।और यह कुर्ते वाला इन सबको शहर ले जायेगा और रैली में पहुँचायेगा।
किसीने पूछा," किस बात के लिए रैली होने वाली है? मेरे बापू ने कहा,"अम्मा को जाने दो।"
करीब बैठे हुए एक बुज़ुर्ग ने उसकी तरफ देखते हुए कहा,"क्यों रे लल्ला! तेरे घर से कौन जा रहा है?"
"मेरी माँ और पत्नी......।"
"तो क्या सच में तुझे पता नहीं ....?"
"मुझे क्या नहीं पता?दादू ..."
"ये महिलाएं उस सफ़ेद कुर्ते वाले के साथ आज शहर जाएँगी।इनके हाँथो में कुछ लाल-नीले अक्षरो से लिखे हुए गत्ते पकड़ा दिए जायेंगे.....।"
"अरे!... पर क्यों..... ऐसा करने से क्या होगा?"उस नव-युवक ने उत्सुकता-वश पूछा।
"हाहा हाहा! आज के प्रजातन्त्र में कब कुछ होता है
......हाहा हाहा! कल के अख़बार में यह खबर आ जायेगी...फलां-फलां के लिए महिलाओं की रैली निकाली गई , जो अमका-तमका नेता के नेतृत्व में संपन्न हुई। और इसकी सफलता इसमें शामिल भीड़ को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं।"
"मैं कुछ समझा नहीं....."उस नव-युवक ने कहा।
"बेटा! ज्यादा न सोचो, शायद तुम पहली बार ऐसा देख रहे हो।"
"जाओ बेटा घर जाओ, देखो घर जाकर, आज तुम्हारी माँ ने पकवान बनाया होगा।"
"हाँ! बनाया तो है। पर पकवान से रैली का क्या मतलब?"
"बेटे!यह प्रजातन्त्र हैं, यहाँ आये दिन रैलियां निकलती रहेंगी, और भीड़ बढ़ाने के लिए इसी तरह से पैसे देकर लोगों को ले जाया जायेगा।" कुछ पल रुक कर उन्होंने उस नव-युवक के चेहरे पर के उतार-चढ़ाव देखने के बाद कहा,"तुम आम खाओ गुठलियों के बारे में न सोचो।"

Comment by Mohammed Arif on January 25, 2018 at 8:07am

आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,

                                   हमारे भारतीय प्रजातंत्र का स्वरूप ही भीड़तंत्र रह गया है । भाड़ैती भीड़ इकट्ठा की जाती है । जनता भी आज बड़ी सयानी हो गई है । वह बग़ैर पैसे के कहीं जाती नहीं है और ताली बजाती नहीं है । यह सब प्रजातंत्र के दगातार गिरते स्तर को दर्शाता है । अच्छा कटाक्ष किया आपने । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियों को दूर किया जा सकता है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 24, 2018 at 9:09pm

हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना दीदी,इस प्रस्तुति के लिए। कुछ शब्द गलत  टाइप हो गए लगते हैं। सादर

Comment by surender insan on January 24, 2018 at 1:51pm

सच्चाई जाहिर करती बहुत सार्थक रचना के लिए बधाई हो जी ।सादर नमन जी।

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