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बदल रहा है बचपन(लघुकथा)

सड़क पर एक बच्चा हाथों में पत्थर लिए चल रहा था| मासूम हाथों में पत्थर देख एक राहगीर ने पूछा,' कहाँ जा रहे हो बेटा?" 
उस मासूम ने जवाब दिया,' उनको मारने?'
" किसको!" उस राहगीर ने आश्चर्यचकित हो पूछा|
' जिन्होंने हम पर हमला किया है|'
'किसने हमला किया है बच्चे?'
'उन लोगों ने|' 
'तुम आखिर क्या करोगे उनका?'
'मार दूंगा|'
'पर क्यों?'
'क्योंकि वे हमें मार रहे हैं|"
'तुम यहाँ क्यों आये हो?किसके साथ आये हो?'
'मैं यहाँ बापू के दर्शन करने आया हूँ,मेरे बाबा के साथ आया हूँ|'
'बापू को तुम जानते हो?'
'हाँ, बाबा ने बताया है वे अपने राष्ट्रपिता है|'
'क्या तुम्हें पता है वे अहिंसा के पुजारी थे|'
'अहिंसा!'
'हाँ, बेटा अहिंसा| क्या तुम्हारे बाबा ने नहीं बताया?'
'जी बताया तो था,मैंने अपनी इतिहास की किताब में पढ़ा भी था|'
'फिर भी तुम पत्थर लिए घूम रहे हो? मारने की बात कर रहे हो|'
'बाबा ने कहा है समय बदल रहा हैं|' 
और वह बच्चा वहां से चला गया| राहगीर के पीछे एक और व्यक्ति चल रहा था,जो अब तक चुप था,दोनों की बातें सुन रहा था, वह अनायास बोल पड़ा,'सही तो कह रहा है बच्चा,अब देखने वालों को भी देखना होगा कि बचपन भी बदल रहा है|'
बदलते समाज का बदलता बचपन अपने नन्हें हाथो में पत्थर लिए अहिंसा के पुजारी से मिलने जा चूका था|
मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Nita Kasar on January 5, 2018 at 3:14pm

वक्त बदल रहा है,बचपन बदल रहा है,वरना पढने लिखने की उम्र में हाथ में पत्थर ना होते ।वर्तमान के हालात से रूबरू कराती कथा के लिये बधाई आद० कल्पना बहना ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 2:05pm

आद0 कल्पना भट्ट जी सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा का प्रयास आपका। मैं भी उस्मानी साहब से सहमत हूँ। इस प्रस्तुति पर आपको बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2018 at 9:37am

वाह। नये वर्ष की ज़ोरदार धमक बतौर तीखी लघुकथा। बापूजी को समकालीन बाप से जोड़ते हुए बहुत ही तीखा विचारोत्तेजक कटाक्ष। हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना भट्ट जी। मेरे विचार से अंतिम पंक्ति की आवश्यकता नहीं है। कुछ वाक्यांशों का शिल्प निखारा जा सकता है। सादर। नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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