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उसी का तसव्वुर पढ़ा जा रहा है

एक लंबी ग़ज़ल 30 शेर के साथ

122 122 122 122
अगर आप में कुछ सलीका बचा है ।
तो फिर आप से भी मेरी इल्तिजा है ।।

रकीबों की महफ़िल में क्या क्या हुआ है ।
सुना आपका ही तो जलवा रहा है ।।

यूँ रुख़ को पलट कर चले जाने वाले ।
बता दीजिए क्या मुहब्बत ख़ता है ।।

हया को खुदा की अमानत जो समझे ।
उन्हें ही सुनाई गई क्यों सजा है ।।

अगर दिल में आये तो रहना भी सीखो ।
मेरी तिश्नगी का यही मशबरा है ।।

मुख़ालिफ़ हुई ये हवाएं चमन में ।
उड़ाना हमें भी कोई चाहता है ।।

है तिरछी निगाहें , निशाना ग़ज़ब का।
उसे कत्ल का इक नशा चढ़ रहा है ।।

हैं खामोश नज़रें है सहमी शरारत।
हमें भी मुहब्बत में धक्का लगा है ।।

पढ़ाई के बावत कहाँ रोजियाँ हैं ।
कहा मत करो वो निकम्मा हुआ है ।।

उसे रूठने की जरूरत नहीं थी ।
उसे क्या पता दिल हमारा बड़ा है ।।

बिठाकर दिलों में नज़र से गिराना ।
तुम्हारे शहर का यही फ़लसफ़ा है ।।

नहीं आ रही वो बुलाने पे देखो ।
हुई किस कदर मौत मुझसे ख़फ़ा है ।।

हुआ जब से रुख़सत वो मेरे हरम से ।
फिजाओं का मंजर भी सूना पड़ा है ।

कहाँ बाँट लेता है कोई भी गम को ।
मुसीबत को सर पे ही ढोना पड़ा है ।।

है मतलब परस्ती का ऐसा ज़माना ।
वो इंसान की शक्ल में सिरफिरा है ।।

उन्हें वाह वाही की दरकार अक्सर ।
कहाँ शायरी से उन्हें लस्तगा है ।।

निगाहें झुकीं और लिए लब पे जुम्बिश।
मेरे इश्क़ का वो पता पूछता है ।।

बड़ी साफ़गोई से वो पूँछते हैं ।
तुम्हारा भी दिल क्या मचलने लगा है ।।

सितारों से कह दो तसल्ली रखें कुछ ।
नया चाँद है कुछ सँवरने लगा है ।।

वोआया है फिर दिल जलाया भी होगा।
धुँआ देखिए घर से उठने लगा है ।।

अजब ख्वाहिशें हैं समंदर की देखो।
वो दरिया से मिलकर उछलने लगा है ।।

खज़ाना मुकम्मल मिलेगा यहीं पर ।
फकीरों का शायद यहीं मकबरा है ।।

असर कर गई है मुहब्बत हमारी ।
उसे मुस्कुराने का ढंग आ गया है।।

उसे देख कर तो खुदा याद आया ।
बड़ी फुरसतों में तराशा गया है ।।

दिए जिसके ख़ंजर ने यह ज़ख्म मुझको ।
वही हाले दिल भी मेरा पूछता है ।।

अक़ीदत में जिसने कबूला था मुझको ।
उसी का तसव्वुर पढा जा रहा है ।।

गुज़र जाएंगे ये जवानी के लम्हे ।
कहाँ मुझको अब तक सुना जा रहा है ।।

वहां जुगनुओं कीहै कीमत नहीं कुछ ।
वहाँ चाँद रोशन जहाँ कर गया है ।।

वफ़ाएँ ही करता रहा उम्र भर जो ।
उसे ही ज़माना बुरा कह रहा है ।।

यहां नजनीनों की बस्ती है प्यारे ।
यहां मुफ़्लिशों का कहाँ आसरा है ।।

---- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ajay Tiwari on October 18, 2017 at 6:30am

आदरणीय नवीन जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं.

सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 18, 2017 at 12:03am
आ0 कबीर सर कोटि कोटि आभार इस दुर्लभ इस्लाह हेतु ।
Comment by Samar kabeer on October 16, 2017 at 5:56pm
'यूँ रुख़ को पलट कर चले जाने वाले
बता दीजिये क्या मुहब्बत ख़ता है'
इस शैर में शुतरगुर्बा का दोष है,सानी मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'बता दे हमें,क्या महब्बत ख़ता है'

चौथे शैर के ऊला में 'समझे' को "समझें" कर लें ।
छटे शैर के ऊला में 'हुई' को "हुईं" करें ।
सातवें शैर के ऊला में 'है' को "हैं",और सानी में 'इक' को"फिर"कर लें ।
'तुम्हारे शहर का यही फ़लसफ़ा है'
इस मिसरे में 'शहर'का वज़्न आपने 12 लिया है,जबकि सही वज़्न 21 है, मिसरा यूँ कर सकते हैं :-
'तेरे शह्र का क्या यही फ़लसफ़ा है'
'वो इंसान की शक्ल में सिरफिरा है'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,सानी मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'यहाँ कौन इंसां किसी का हुआ है'
'कहाँ शाइरी से उन्हें लस्तगा है'
इस मिसरे में 'लस्तगा'की जगह "वास्ता" कर लें ।
'निगाहें झुकीं और लिए लब पे जुम्बिश'
इस मिसरे में व्याकरण दोष है,मिसरा यूँ कर सकते हैं'
'निगाहें झुकीं और लबों में है जुम्बिश'
'फकीरों का शायद यहीं मक़बरा है'
इस मिसरे में 'फकीरों'बहुवचन और 'मक़बरा'एक वचन है,इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'फ़क़ीर-ए; महब्बत का ये मक़बरा है'
आख़री शैर में 'मुफ्लिशों' को "मुफ़लिसों" कर लें ।
बाक़ी शुभ शुभ
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 16, 2017 at 12:28pm
आपकी हर बात मुझे स्वीकार है आ0 कबीर सर ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 16, 2017 at 11:44am
जी हां सर साहित्य में "तुमको मुझको गाज़ी कहना मैं तुमको हाजी कहूंगा" यह प्रथा वाकई अब खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है ।
Comment by Samar kabeer on October 16, 2017 at 10:34am
भाई जब तक कोई ख़ुद ओबीओ से जुड़ना न चाहे हम उसे कैसे जोड़ सकते हैं,सिर्फ़ प्रयास कर सकते हैं जो हम बराबर ओबीओ का प्रचार करते नहीं थकते ।
रही मुशायरों की बात तो ये इसी तरह हो रहे हैं कि तुम हमें बुलाओ हम तुम्हें बुला लेंगे,इस कारण से अच्छे शायरों को कोई नहीं बुलाता,स्तर गिरने का सबसे बड़ा कारण यही है ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 15, 2017 at 11:35pm
कबीर सर अफसोस यह हुआ कि अदब की महफ़िल में कैसे अधकचरे ज्ञान वाले शायर पैसा देकर बुलाते हैं । मेरे ख्याल से आयजोकों को भी आप ओ बी ओ से जोड़े जिससे उन्हें चुनाव करने में आसानी हो ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 15, 2017 at 11:32pm
आ0 कबीर सर आप जैसा गुरु मिलना दुर्लभ है आज कानपुर में एक मुशायरे में शायरों को सुन रहा था तो आधे शायरों में बह्र और काफ़िया की गलती पकड़ने की कूबत आ गई । सब आपकी कृपा है ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 15, 2017 at 11:29pm
आ0 सालीम रजा साहब विशेष आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 15, 2017 at 11:28pm
आ0 शेख शहजाद उस्मानी साहब तहे दिल से शुक्रिया ।

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