For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती ।

आखिर वे लोग आ पहुंचे तो बकरे की अम्मा रोने लगी “देखिये आराम से … ज़्यादा तकलीफ़ तो नहीं होगी न … बड़े प्यार से पाला है …”

“आप चिंता न करें हमारे कसाई हाई स्किल्ड हैं …” वे बोले ।

“फ़िर भी …” वह विनती करने लगी ।

“देखिये ! हम किसी पर अत्याचार नहीं करते । हमारी व्यवस्था भी लोकतांत्रिक है । हम हर एक बकरे को वोट का अधिकार देते हैं । हमारे बकरे अपना कसाई खुद चुनते हैं …”

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 795

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 15, 2018 at 3:43am

अधोलिखित सभी उपयोगी व मार्गदर्शक टिपप्णियां पढ़कर मेरे मन में आज जो सूझा, उसे सांझा कर आप  सुधी पाठकगण की राय और इस्लाह चाहता हूँ :

  1. संवाद // “देखिये ! हम किसी पर अत्याचार नहीं करते । हमारी व्यवस्था भी लोकतांत्रिक है । हम हर एक बकरे को वोट का अधिकार देते हैं । हमारे बकरे अपना कसाई खुद चुनते हैं …”// के स्थान पर यदि ऐसा कुछ कहें, तो ? - //“देखिये ! हम किसी पर अत्याचार नहीं करते । हमारी व्यवस्था भी लोकतांत्रिक है । लेकिन हर बकरा अपने संवैधानिक अधिकारों के सही इस्तेमाल के बारे में  'स्किल्ड' नहीं है ना, सो हमारे बकरे अपना कसाई ही खुद चुन पाते हैं …”//
Comment by Mirza Hafiz Baig on November 25, 2016 at 7:16am

आदरणीय भाई सौरभ पांडे जी, मै आपका और भाई मिथिलेश वामनकर जी का विशेष आभारी हूं । आप दोनो की चिंता आपके लगाव को दर्शाती है । आप लोग सच ही कह रहे है, और आपने तो इसे और स्पष्ट किया है । मै इस विषय पर कुछ और प्रबुद्धजनो की कीमती राय जानना चाहता हूं । हकीकत तो यह है कि यह पूरा का पूरा वाक्य थोपा हुआ है । पहले इसका समापन यूं था-- //हमारी व्यवस्था भी लोकतांत्रिक है । हमारे बकरे अपना कसाई खुद चुनते हैं …”// फ़िर लगा कि बात स्पष्ट नही हो रही है तो एक वाक्य जोड़ा-- 'हम हर एक को मताधिकार देते हैं।' फ़िर लगा कि 'मत' शब्द कुछ प्रबुद्धजनो के बीच सिमट कर रह गया है और 'वोट' शब्द लोगों को अधिक उद्वेलित करता है, अत: मताधिकार की जगह 'वोट का अधिकार' जोड़ा । फ़िर लगा इसे और स्पष्ट करना चाहिये तो 'हर एक को' के बीच मे बकरे शब्द को डाला । इस तरह यह पूरा वाक्य थोपा गया । बहरहाल… आप लोगों की चिंताओं के लिये धन्यवाद ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 24, 2016 at 1:44pm

आदरणीय मिर्ज़ा हाफ़िज़ बेग़ साहब, आपकी प्रस्तुति ने बाँध लिया. वाह्, आदरणीय, वाह ! हार्दिक शुभकामनाएँ ! 

आदरणीय मिथिलेश जी के सुझाव तथा आपकी प्रतिक्रिया से गुजरना अच्छा लगा. किन्तु, सही कहिए तो आदरणीय मिथिलेश जी के कहे से मैं भी सहमत हूँ. आपका कहना सही है. लेकिन देखिये ! हम किसी पर अत्याचार नहीं करते । हमारी व्यवस्था भी लोकतांत्रिक है । हम हर एक बकरे को अधिकार देते हैं । हमारे बकरे अपना कसाई खुद चुनते हैं …” जैसा कथन बेहतरीन कटाक्ष के साथ सामने आ रहा है. ’वोट’ शब्द के कारण उस कटाक्ष की तीव्रता में वह सहजपन नहीं रह पा रहा जो बिना इसके ’लोकतंत्र’ और ’खुद चुनने’ जैसे इंगितों से तारी होता है.

यह मेरी समझ भर है. संभवतः मैं एक लेखक के नज़रिये को न पकड़ पा रहा होऊँ. यों, आपकी प्रस्तुति अत्यंत प्रभावी बन पड़ी है.

शुभ-शुभ

Comment by Mirza Hafiz Baig on November 23, 2016 at 1:54pm

भाई मिथिलेश वामनकर जी, इस बेबाक राय का हर्दिक अभिनन्दन ! इसके लिये आपका आभारी हूं; लेकिन अर्ज़ करना चाहता हूं कि मेरा उद्देश्य इस विडम्बना की तरफ़ ध्यानाकर्षण करना था कि लोक की भूमिका वोट तक सीमित कर शासक वर्ग आमजन को बकरा तो नही बना रहा ? लोक तंत्र मे लोक की भूमिका वोट से ज़्यादह नही होनी चाहिये ? बेशक हर एक का जवाब अलग-अलग हो सकता है । लेकिन प्रश्न तो उठना चाहिये न…  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 23, 2016 at 12:19am

आदरणीय मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग जी, बहुत ही शानदार प्रस्तुति. हार्दिक बधाई. एक विचार आया मन में, सोचा साझा करता चलूँ-

//हम हर एक बकरे को वोट का अधिकार देते हैं //

इसमें वोट शब्द के बिना भी कथ्य के सम्प्रेषण में कोई दिक्कत नहीं हो रही है. ये बकरे की कथा में 'वोट' शब्द थोपा हुआ लग रहा है. यदि इसे सीधा कहा जाये तो? यथा 

देखिये ! हम किसी पर अत्याचार नहीं करते । हमारी व्यवस्था भी लोकतांत्रिक है । हम हर एक बकरे को अधिकार देते हैं । हमारे बकरे अपना कसाई खुद चुनते हैं …

Comment by नाथ सोनांचली on November 21, 2016 at 6:05am
जनाब मिर्जा हाफिज बैग जी बढियाँ कटाक्ष, दिल खोल कर बधाई स्वीकार करें।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 20, 2016 at 2:05pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग जी।बेहद शानदार प्रस्तुति।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 20, 2016 at 7:12am
बहुत बढ़िया! गागर में सागर। प्रतीकों में गंभीर लेखन कर्म की मिसाल। सब कुछ बाख़ूबी सम्प्रेषित व परिभाषित करती हुई रचना के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरम जनाब मिर्ज़ा हाफ़िज़ बेग़ साहब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service