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“तुम ऐसा नहीं कर सकते आकाश, तुम इस तरह मुझे धोखा नहीं दे सकते I”

“परी मैं तुम्हें धोखा नहीं दे रहा हूँ मैं तो उल्टे तुम्हें सच बता रहा हूँ I अगर मैं चाहता तो दोनों रिलेशंस बनाये रखकर तुम्हें आसानी से चीट कर सकता था पर मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि मैं झूठ में विश्वास नहीं करता I जब हमारे रिश्ते में कुछ बचा ही नहीं है तो  फिर इसे घिसटने का कोई मतलब नहीं है कम से कम अब तुम मुझसे आज़ाद होकर अपने जीवन की नयी शुरुआत तो कर सकती हो वैसे भी अगर यह सब हमारी शादी के बाद होता तो तुम्हें अधिक दुख पहुँचता I”

“हमारे रिश्ते में अगर कुछ नहीं बचा है तो वह है तुम्हारा प्यार , वरना मैंने इस रिश्ते को निभाने में कभी कोई कमी नहीं रखी I तुम्हें  मेरे दुख का अहसास तब होगा जब कोई तुम्हारी बहन के भी  साथ ऐसा ही करेगा I”

"खबरदार परी  ! अगर आइन्दा मेरी बहन के बारे में इस तरह से बात की तो... मैं भूल जाऊँगा कि मेरा कभी तुमसे कोई रिश्ता था और तुम्हें क्या लगता है मैं उस इंसान को छोड़ दूँगा उसका खून न कर दिया तो मैं भी अपने बाप की औलाद नहीं...."

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Tanuja Upreti on September 5, 2015 at 9:41pm

धन्यवाद ओमप्रकाश जी ,धन्यवाद सौरभ जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2015 at 12:22am

बहन को लेकर यह नपुंसक आक्रोश कापुरुषों का गुण है.  

आदरणीया तनुजाजी, आपने भी रोचक ताना-बाना बुना है. वैसे यह विषयवस्तु अब बहुत नया नहीं रह गया है.  इस प्रस्तुति केलिए शुभकामनाएँ. 

Comment by Omprakash Kshatriya on September 3, 2015 at 9:10pm
आ तनुजा जी बहुत ही कटु बात कही है । बधाई ।
Comment by Tanuja Upreti on September 3, 2015 at 6:02pm

प्रोतसाहन हेतु आभार. मिटहिलेश जी ,आभार तेज वीर जी,आभार जितेंद्र जी ,आभार सीमा जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 5:53pm

आदरणीया तनूजा जी, एक कटु सत्य को उद्घाटित करती लघुकथा की प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by TEJ VEER SINGH on September 3, 2015 at 2:29pm

हार्दिक बधाई  आदरणीय  तनूजा उप्रेती जी!वर्तमान में समाज में इस तरह के प्यार की हवा खूब बह रही है!जब जी चाहे अपना रास्ता बदल लो!मेरे विचार से आज के माहौल में लडकियों को विशेष रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है!बहुत सुन्दर लघुकथा!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 2, 2015 at 9:24pm

सुंदर लघुकथा ,आदरणीया तनूजा जी. यह एक कटु सच्चाई है और इंसानी फितरत भी. प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by Seema Singh on September 2, 2015 at 9:15pm

वाह रे मर्द... दूसरे के सपने तार तार कर दिए और अपनी कल्पना मात्र से ये तेवर.... बहुत खूब ! शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनायें.. 

Comment by Tanuja Upreti on September 2, 2015 at 9:11pm

आप सभी का आभार

Comment by Ravi Prabhakar on September 2, 2015 at 6:36pm

अच्‍छा !  जब अपने पे बात आई तो ऐसी तिलमिलाहट । बहुत खूबसूरत ताना बाना बुना है आपने आदरणीय तनुजा जी । सादर शुभकामनाएं

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