For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी तुम चीन जाओगे कभी जापान जाओगे ।।
नया रुतबा दिखाने को कभी ईरान जाओगे ।।(1)

गिरानी के तले दबकर मरे जनता तुम्हारा क्या,
विदेशों में मियाँ खाने मिलें पकवान जाओगे ।।(2)

पड़े ओले किसानों के मुक़द्दर में बनीं पर्ची,
जताने तुम रहम-खोरी चले खलिहान जाओगे ।।(3)

मिलेंगे कब हमें अच्छे दिनों की आस है भाई,
विदेशी नोट लाने को कभी हनुमान जाओगे ।।(4)

हमारी बेवशी को तुम न समझोगे बड़े साहब,
ज़रा ख़ुद डूब कर देखो,हमें पहचान जाओगे ।।(5)

कहा था 'राज' नें हमसे मगर मानी नहीं हमनें,
इरादा भाँपते हैं हम दिखाकर टाँन जाओगे ।।(6)

"राज बुन्देली"

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 684

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 4, 2015 at 1:44pm

आदरणीय राज बुन्देली जी ..कमाल का कटाक्ष करती शानदार ग़ज़ल पर तो ढेर सारी बधाई लाजमी है स्वीकार करें सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 3, 2015 at 4:01pm

व्यंग ग़जब का है ....

विदेशी नोट लाने को कभी हनुमान जाओगे ...कभी को "बन" भी लिख सकते थे अगर १२३४ १२३४ कानून ठीक हो (sorry ग़ज़ल की मुझे समझ नहीं है )...सादर 

Comment by Samar kabeer on April 3, 2015 at 3:37pm
जनाब राज बुन्देली साहिब,आदाब,सुन्दर ग़ज़ल के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 2:21pm

आदरनीय राज भाई , गज़ल के लिये बधाई आपको ॥

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 12:46pm

अच्छा व्यंग्य है. ग़ज़ल का फोर्मेट है लेकिन ग़ज़लियत की कमी है.
कुछ एक जगह मंतव्य स्पष्ट है क्यूँ कि विषय सार्वजानिक है लेकिन शेर अपने आप में उस बात को कह नहीं पा रहा है.
कुल मिलकर अच्छा प्रयास है .
बधाई

आ. डॉ श्रीवास्तव साहब इसे "राष्ट्रकवि" :) डॉ. कुमार विश्वास की कालजाई रचना :) -कोई दीवाना कहता है कि तर्ज़ पर पढ़ें. १२२२ X ४ इस पद्धति से क्रम है.
सादर   

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 12:21pm

आ० राज साहेब

गजलका वजन लिख दिया करे तो हम नौसि. खियोंको मदद मिलेगी . आपका काफ़िया आन है तो टान होना चाहिए टाँन नहीं .इस शब्द का अर्थ भी समझ में नहीं आया .  कभी हनुमान जाओगे भी अस्पष्ट है . पर आप्का प्रयास बेहतर है . सुन्दर .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2015 at 11:51am

आओ भाई राज बुंदेली जी , आपकी पहली ग़ज़ल से गुजरते हुए अत्यधिक आत्मीयता का अनुभव हुआ . हार्दिक धन्यवाद .

Comment by somesh kumar on April 2, 2015 at 11:20am

लाजवाब व्यंग्य ,बधाई रचना के इस कटाक्ष -भाव पर

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2015 at 10:17am
इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 2, 2015 at 9:58am
व्यंग अच्छा है। यह टाँन क्या है , शायद मैं समझ नहीं पाया।
बधाई, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service