For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गोधूली में
बहुत ही कोमल स्वर में
दर्द से भरे हुए,
सूरज जब डूब रहा होता है
मैं जानती हूँ ज़िंदगी!
तुम मेरे लिये गाती हो.
छत से सूखे कपड़े उठाती हुई
बेचैन
मैं ठिठक जाती हूँ.
कुछ पल, कुछ अनबूझे सवाल
मंडराते हैं मेरे आस पास
चिड़ियों की तरह
जो दाना चुगकर, गाना गाकर
लौट जाते हैं अपने घोंसले में.

सांझ
रह जाती है कुँवारी
रात घिर आती है ज़मीं पर
गगन से उतरता है एक चाहत भरा धुंध
और-
पसर जाता है सरसों के खेत में.

आधी रात
फिर लहराता है हवा के साथ
तुम्हारा दर्द भरा गान
सुबह की बेला में कुनमुनाती है जूही
ओस से भीगा गुलाब
खिलने को आतुर
छुप जाती है छुई मुई बाग के कोने में.

दिन
एक तितली उड़ती है
लेती है ज़िंदगी कई करवटें
आते हैं कितने आंधी और तूफ़ान
अक्सर होती है बिन बादल बरसात
घरेलू कामों से फ़ुरसत पाकर
आती हूँ आंगन में
बटोरती हूँ कल के लिये
जीवन के कुछ सामान
दूर बज उठती हैं
पशुओं के गले की घंटी
टुन-टुन करती
खुरों की टापों में मिल जाती है
तुम्हारी परिचित आवाज़
व्यस्त हो उठती हूँ
घर वापसी की बेला है.
तुम गाते हो अनवरत
मैं ढूँढ़ती रहती हूँ तुम्हें –
वक़्त की सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते
ज़िंदगी
रुकती है कब्र की दहलीज पर
सहसा
एक मौन वशीकरण लिए
तुम्हारा सुर मधुर हो उठता है
जीवन की गोधूली में.

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 2:49am

प्रतीक्षा के स्वरूप को कितने सुन्दर शब्द मिले हैं ! भावनाओं को कैसा सुन्दर विस्तार मिला है.

बधाई आदरणीया. 

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 10, 2014 at 11:52pm

रचना के लिये हार्दिक बधाई  सुन्दर प्रस्तुति,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by ram shiromani pathak on May 10, 2014 at 7:55pm

चिड़ियों की तरह
जो दाना चुगकर, गाना गाकर
लौट जाते हैं अपने घोंसले में.

सांझ
रह जाती है कुँवारी
रात घिर आती है ज़मीं पर
गगन से उतरता है एक चाहत भरा धुंध
और-
पसर जाता है सरसों के खेत में.

आधी रात
फिर लहराता है हवा के साथ
तुम्हारा दर्द भरा गान
सुबह की बेला में कुनमुनाती है जूही
ओस से भीगा गुलाब
खिलने को आतुर /////////////सुन्दर शब्द संचय। ......बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया कुन्ती दी,,,,,,,,,,,,,,   हार्दिक बधाई आपको 

Comment by MAHIMA SHREE on May 8, 2014 at 8:55pm

aadarniya di bahut hi sunder mugdh karti rachna bahut bahut badhai aapko, saadar

Comment by Meena Pathak on May 8, 2014 at 7:29pm

आदरणीया कुंती दी... लाजवाब रचना .. हिन्दी पर आप की जितनी पकड़ है हमारी नही | सादर बधाई स्वीकारें 

Comment by coontee mukerji on May 8, 2014 at 3:30pm

शुज्जु बहुत अच्छा लगा आपकी बातें सुनकर. इससे प्ररणा मिलती है. आपको हृदय से आभार प्रकट करती हूँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 7, 2014 at 10:18pm

आदरणीया कुन्ती जी लाजवाब अभिव्यक्ति है, एक बार आपने कहीं कहा था कि आप अहिंदी भाषी हैं ये आपके अंदर की ललक है, अपने आपको व्यक्त करने की आकांक्षा है जिसके चलते आपने हिन्दी भाषा सीखी,  वाकई शब्द विन्यास लाजवाब है अपने मन के भावों को बहुत ही खूबसूरती से आपने शब्दों में उकेरा है। बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on May 7, 2014 at 1:35am

सुशील जी व कल्पना जी आपको हार्दिक आभार.

Comment by kalpna mishra bajpai on May 5, 2014 at 6:22pm

मैं जानती हूँ ज़िंदगी!
तुम मेरे लिये गाती हो.............. कुंती जी मनोहर रचना बहुत बधाई आप को /सादर 

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2014 at 6:15pm

मैं ढूँढ़ती रहती हूँ तुम्हें –
वक़्त की सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते
ज़िंदगी
रुकती है कब्र की दहलीज पर
सहसा
एक मौन वशीकरण लिए
तुम्हारा सुर मधुर हो उठता है
जीवन की गोधूली में.……

अप्रतिम,अनुपम और भावों की गहनता लिये जीवन भावों को जीवंत करती इस रचना के लिये हार्दिक बधाई आदरणीया कुँती मुख़र्जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service