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एक ग़ज़ल 
 
बात मुझ से ये  कर  गया  पानी 
ये ना सोचो कि डर गया पानी
 
वो   हुनरमंद   है    ज़माने    में 
जिन की आँखों का मर गया पानी
 
हुई जो हक की बात महफ़िल में
जाने किस का उतर गया पानी
 
कल जो सैलाब था ज़माने पर 
अब समंदर के घर गया पानी
 
दौर  के  तौर  को  बदल  देगा 
जब भी सर से गुजर गया पानी
 
कैसी हमवार कर गया दुनिया 
अब तो जाने किधर गया पानी
 
कौन इस का हिसाब रखेगा 
राह होगी जिधर गया पानी    

Views: 392

Comment

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Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 15, 2011 at 2:37pm
dr datt aap ka abhaari hun
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 15, 2011 at 2:36pm
saahil sahab der se dekh paane ki maafi chahata hun shukriya
Comment by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 4:18pm
" वो   हुनरमंद   है    ज़माने    में
जिन की आँखों का मर गया पानी
हुई जो हक की बात महफ़िल में
जाने किस का उतर गया पानी "
बेहतरीन ख़याल .....मक़ामी शायरी के लिए मुबारक़बाद....
Comment by Saahil on March 31, 2011 at 12:14am
waah waah! sab sher umda hain.........behtareen ghazal
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 11:55pm
 

विवेक जी आभारी  हूँ
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 11:39pm
गणेश जी आभारी  हूँ 
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 11:36pm
आकर्षण जी आभार 
Comment by विवेक मिश्र on February 17, 2011 at 9:00am

एक मुश्किल रदीफ़ का खूबसूरती से निर्वाहन किया गया है. हार्दिक बधाई.

/कैसी हमवार कर गया दुनिया /
उपरोक्त मिसरा व्याकरण की दृष्टि से संदेहास्पद लगता है या शायद मेरे मन का भ्रम है. स्पष्ट कर देंगे तो संभवतः मेरे ज्ञान में भी थोड़ी वृद्धि होगी.
सादर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 13, 2011 at 8:40pm

बेहद संजीदा ग़ज़ल, रदीफ़ का प्रयोग बहुत ही उम्द्दा है , काफियाबंदी का निर्वहन खूबसूरती से किया गया है, 

दौर  के  तौर  को  बदल  देगा 
जब भी सर से गुजर गया पानी
बेहद खुबसूरत शे'र , मुहावरा का प्रयोग भी साथ साथ , पूरी ग़ज़ल मे अलंकार का प्रयोग , दाद कुबूल कीजिये अश्वनी जी ,
Comment by Aakarshan Kumar Giri on February 13, 2011 at 7:50pm
bahut barhiya... ek shaandaar ghazal ke liye badhai....

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