For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दामिनी तुम जिंदा हो

दामिनी तुम जिंदा हो

हर औरत का हौंसला बनकर

न्याय की आवाज़ बनकर

वक्त की ज़रूरत बनकर

आस्था की पुकार बनकर

एकता की मिसाल बनकर

तुम लाखों दिलों में जिंदा हो

न्याय की उम्मीद बनकर

तुम जीवित हो दामिनी

हम सब के अंदर विश्वास बनकर

 

दामिनी

हमें तुम पर नाज़ है 

व्यर्थ नहीं जाएगा

तुम्हारा बलिदान

यह इंसाफ़ की आवाज़ बनकर

सड़कों से सत्ता की गलियारों तक

फुटपाथ से लेकर महलों तक

दब चुकी

या दबा दी गई

जुबाँ का राज़ खोलेगा

हर दामिनी के आँसुओं की कीमत 

दर्द का इलाज़

खून के एक एक बूँद का हिसाब

और अधिकारों का जवाब मागेगा

 

तुमने जो सहा दामिनी 

उसे पूरे  देश ने महसूस किया

अब ये हमारा दायित्व है

तुम्हें इंसाफ़ मिले

तुम जैसी हर दामिनी को इंसाफ़ मिले

और सबक मिले

ऐसे लोगों को

जो कभी

सत्ता के नशे में

कभी शराब के नशे में

तो कभी

ताकत के ज़ोर पर  

अपनी मर्दानगी का रौब दिखाते हैं

उन्हें सबक मिलकर रहेगा

 

दामिनी बादल छंटने को हैं

नई सुबह आने को है

वो आकर रहेगी

हमारा संकल्प पक्का है 

वह डगमगाएगा नहीं

झुकेगा नहीं

हारेगा नहीं

 

दामिनी

तुम हमारी हिम्मत बनकर

अन्याय को ललकारती रहोगी

हम सबके बीच

अपने होने का एहसास कराओगी

तुमने हम सबको

पूरे देश को जोड़ दिया है

एक कर दिया है

अब लोग

छोटा-बड़ा, गरीब-अमीर

ऊँच-नीच, जाति धर्म भूलकर

एक हो चुके हैं

तुमने बता दिया                      

हमारी ज़रूरतें एक हैं

हमारा दर्द एक है

हमारे विचार एक है

हमारी आवाज़ें एक है

हमारा जज़्बा एक है

आँसुओं का सबब एक है

हमें इंसाफ़ भी एक चाहिए 

सिर्फ ओ सिर्फ एक

सजा ए मौत

Views: 477

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमि तेष on January 4, 2013 at 10:37am

दामिनी बादल छंटने को हैं

नई सुबह आने को है

वो आकर रहेगी

हमारा संकल्प पक्का है 

वह डगमगाएगा नहीं

झुकेगा नहीं

हारेगा नहीं

...सच ऐसा ही होना चाहिये ..

Comment by SUMAN MISHRA on January 4, 2013 at 1:12am

bilkul ,,,दामिनी निर्भया बनेगी अब और अपने संस्कारों से समाज की कुरीतियों में रचे बसे दरिंदों का दमन करेगी,,,,बहुत सुंदर कविता

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 3, 2013 at 10:10pm

दामिनी

तुम हमारी हिम्मत बनकर

अन्याय को ललकारती रहोगी

हम सबके बीच

अपने होने का एहसास कराओगी

तुमने हम सबको

पूरे देश को जोड़ दिया है

एक कर दिया है.................बिलकुल ठीक!

सुन्दर रचना आदरणीय नादिर खान साहब बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 2, 2013 at 4:56pm

हर जागृत संवेदनशील नागरिक के ह्रदय की आवाज को शब्द देने के लिए बधाई आदरणीय नादिर खान जी 

Comment by vijay nikore on January 2, 2013 at 4:23pm

जी हाँ, जिस प्रकार सारा देश आवाज़ में आवाज़ मिला रहा है, बलिदान नाकाम नहीं था।

रचना के लिए बधाई।

विजय निकोर

Comment by नादिर ख़ान on January 2, 2013 at 3:46pm

आदरणीय, सौरभ जी एवं सीमा जी बहुत शुक्रिया आप दोनों का आपने कविता के भावों को सराहा .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 2, 2013 at 3:36pm

आशाओं को तिल-तिल पगाती एक संवेनशील रचना.

वैसे उत्फुल्लता प्रदायी भोर इतनी शीघ्रता से होती तो क्या बात थी !  लेकिन बलिदान कोई हो कभी व्यर्थ नहीं जाता. कहते भी हैं, आशा ही जीवन है.

शुभ-शुभ

Comment by seema agrawal on January 2, 2013 at 11:21am

हमारी ज़रूरतें एक हैं

हमारा दर्द एक है

हमारे विचार एक है

हमारी आवाज़ें एक है

हमारा जज़्बा एक है

आँसुओं का सबब एक है.....सही कहा नादिर जी शायद किसी  भी क्रांतिकारी बदलाव के लिए जो मूलभूत ज़रुरत है वो है एक कंठ ...आज जिस बलिदान को सहने के बाद हम सब एक हुए हैं अब उसके उद्देश्य को पूरा करना ही है और निश्चित ही 

नई सुबह आने को है

वो आकर रहेगी

हमारा संकल्प पक्का है 

वह डगमगाएगा नहीं

झुकेगा नहीं

हारेगा नहीं....आमीन 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
10 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service