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"क्या यार?.........हमलोग एक घंटे से इस कैफे में बैठे हैं और वीकेंड का एक बढ़िया प्लान नहीं बना पा रहे........व्हाट इज दिस?" रितिका ने झल्लाते हुए कहा| साथ बैठा उसका क्लासमेट मोहित उसे उखड़ता देख के उसकी हँसी उड़ाते बोला - "मैडम जी.....मैं तो कब से प्लानों की लाइन लगा रहा हूँ, आपको जँचे तब तो"| रितिका थोड़ा और गुस्से में आ के बोली - "मोहित, जस्ट कीप योर माउथ शटअप.......तुम्हारे आइडियाज हमेशा बोरिंग होते हैं....तुम अपनी तो रहने दो बस"| मोहित को बात बुरी लग गई - "क्यों? तुम्हारे उस विभोर के आइडियाज तो बड़े मजेदार होते है न?"

"मोहित, डोंट क्रॉस योर लिमिट........अपनी हद में रहो" रितिका पूरा भड़क गई|

"ओफ्फो....ये क्या शुरू कर दिया तुमलोगों ने?" उनकी दोस्त नेहा उन्हें समझाते हुए बोली - हम यहाँ वीकेंड प्लान करने आये हैं, झगड़ने नहीं"| अभी तक चुप बैठा राज बात को फिर से मुद्दे पर लाते हुए बोला - "मेरे ख्याल से तो आउट ऑफ स्टेशन ही ठीक रहेगा"|

"क्या चल रहा है दोस्तों?" तभी एक आवाज ने उनका ध्यान अपनी ओर खींचा| उधर देखते ही सबके चेहरे खिल उठे - "अरे अर्णव, आओ यार...आओ......बैठो.....तुम्हारी ही जरूरत थी....चल बता वीकेंड पर कहाँ जाया जाये? शर्त ये है कि इसबार कुछ नया होना चाहिए"| अर्णव इनसब मामलों में बड़ा दिमाग लगाता था| थोड़ी देर सोचते हुए बोला - "जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे का अनशन चल रहा है| इसबार का वीकेंड वहीं पर|"

अनशन और अन्ना कि बात सुनते ही सब चौंके - "अबे अर्णव, तू पागल हो गया है? वो कोई जगह है छुट्टी मनाने की?"

अर्णव ने कहा - "अरे अब नये में तो वही जगह बची है.....और वहाँ जाकर हमें कौन सा अनशन या देशभक्ति करनी है.......खाने-पीने का पूरा इंतजाम है........थोड़ा चिल-थोड़ी मस्ती.....और फिर घर....फुल्टू वीकेंड.....बोलो क्या बोलते हो?"

सबने थोड़ी देर सोचा और एक स्वर में बोले - "डन......हा.....हा.......हा......"|

"तो फिर ठीक है" अर्णव उठते हुए बोला - "वीकेंड का प्रोग्राम पक्का....सब टाइम पर तैयार रहना.....और हाँ, थोड़े झंडे वगैरह भी ले लेना और वो मैं अन्ना हूँ और क्या-क्या हूँ लिखी हुई टोपियाँ भी.......ओके.......नारे-वारे लगाना तो सबको आता है न?"

"यस बॉस......." सब कहते हुए हँस पड़े और अर्णव मुस्कुराता हुआ बाहर निकल गया|

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 2, 2012 at 8:49am

आदरणीया प्राची दीदी........आपने बिलकुल सही कहा........युवाओं के तथाकथित "रोल मॉडल" इस परिस्थिति के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं.......जिस देश में स्वामी विवेकानंद को आदर्श माना जाना चाहिए था वहाँ युवाआदर्श के नाम पर भ्रष्टाचारियों का बोलबाला हो गया है........कहानी को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 2, 2012 at 8:49am

आदरणीय ज्येष्ठ भ्राता सुरेन्द्र जी.........सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार....... युवावर्ग जो आज अपनी जिम्मेदारियों को समझने में लापरवाही कर रहा है और मौज मस्ती में डूबा रहना चाहता है उसी को दिखाने का मेरा ये एक प्रयास है........आपने पसंद किया आपका हार्दिक आभार.......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 2, 2012 at 8:49am

आदरणीय लक्ष्मण सर.........कहानी के भावों की सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 2, 2012 at 8:49am

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर....आपकी कही हुई एक-एक बात से सहमत हूँ......कहानी में दिखाए गए माहौल के लिए किसी एक को जिम्मेदार ठहराना तो उचित नहीं ही होगा.....लगता है की एक मानसिकता है जो समाज में तेजी से अपना स्थान बना रही है.....कहानी को पसंद करने और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देने के लिए आपका दिल से आभार......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 2, 2012 at 8:48am

आदरणीया राजेश जी......युवाओं में बढती सामाजिक चेतनाहीनता को दर्शाने के मेरे प्रयास को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 31, 2012 at 11:22am

युवाओं में बढ़ती जा रही गैरजिम्मेदाराना सोच को सुन्दर अभिव्यक्ति मिली है इस कहानी में. यह दुखद है, परन्तु इसका कारण खोजना ज्यादा ज़रूरी है, आज के युवाओं के पास कौन हैं उनके लाईव रोल मॉडल ? 

इस सुन्दर सार्थक कहानी हेतु हार्दिक बधाई प्रिय कुमार गौरव जी 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 30, 2012 at 9:06pm

वहाँ जाकर हमें कौन सा अनशन या देशभक्ति करनी है.......खाने-पीने का पूरा इंतजाम है........थोड़ा चिल-थोड़ी मस्ती.....और फिर घर....फुल्टू वीकेंड.....बोलो क्या बोलते हो?"

सबने थोड़ी देर सोचा और एक स्वर में बोले - "डन......हा.....हा.......हा......"|

प्रिय अजीतेंदु जी चिंता का विषय है हमारे युवकों का दिग्भ्रमित होना ...लोग इसी सब बात के फायदे तो उठाते हैं जनता को बेवकूफ बनाये जाते हैं ...
सुन्दर लघु कथा सीख देती हुयी व्यंग्य वाण के साथ 
भ्रमर ५ 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2012 at 5:37pm

मौज शौक मनाने में मशगुल आज की पीढ़ी की सोच को बखूबी दर्शाती कहानी, हार्दिक बधाई कुमार गौरव अजितेंदु जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 30, 2012 at 1:58pm

कैजुअल हैं तो कैजुअली ही सोचेंगे न ! लेकिन इस कैजुअल वे ऑफ़ लाइफ़ का वाकई जिम्मेदार कौन है, खुद ये युवा.. ? .. सोचना पड़ेगा. पौधा अपने बीज की इंट्रिंसिक प्रोपर्टीज से अलग हो सकता है क्या !? .. . सूपर क्लास का क्लास, उस क्लास का सब-क्लास, सब-क्लास का सब-क्लास, उस सब-क्लास का भी सब-क्लास...  और आखिर में रिक्वायर्ड ऑब्जेक्ट. यही है न इन्स्टैन्शियेशन ऑफ़ क्लास ?! यानि, ऑब्जेक्ट के होने का अर्थ ! इस तरह के ऑब्जेक्ट्स यदि दुख देते हैं तो यह अवश्य है कि इस समाज का पानी अभी मरा नहीं है. वर्ना, हर ’सीरियसली’ कहे पर फटीचर-सी हँसी अब इसी समाज का परिचय हो गयी है.

भाई अजीतेन्दु, प्रस्तुत लघु-कथा के जरिये आपने उस पीढ़ी के विचारों और व्यवहार को साझा किया है जिसके हाथों में अधिक नहीं बस सात-आठ साल बाद परिवार और समाज की कमान आने वाली है. बहुत बढिया और रोचक ढंग से अपने कहे को साझा किया है आपने.  इस बहुत अच्छी लघु-कथा के लिये दिल से बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 30, 2012 at 12:54pm

आज के यूथ की देश के प्रति गैरजिम्मेदाराना असंवेदन शीलताओं का सजीव चित्रण है इस लघु कथा में यही इस कथा की विशेषता है बहुत बढ़िया प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई इस लघु कथा के लिए 

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