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मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||

लय, रस, भाव, शिल्प संग प्रीति |
वैचारिक सुप्रवाह की रीति ||
अलंकार से कथ्य चमकता |
उपमानों से शब्द दमकता ||
यगण-तगण जैसे पाशों से,
होता कोई साथ कहाँ है |
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||

अनियमित औ स्वच्छंद गति है |
भावानुसार प्रयुक्त यति है ||
अभिव्यक्ति ही प्रधान विषय है |
तनिक नहीं इसमें संशय है ||
ह्रदयचेतना से सिंचित ये,
ऐसा यातायात कहाँ है |
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||

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Comment

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 8, 2012 at 6:34pm

आदरणीया राजेश जी, कविता के भावों को संतुष्ट करती प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 8, 2012 at 6:34pm

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अरुण श्रीवास्तव जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 8, 2012 at 4:05pm

वाह वाह ---वैसे देखो तो जीवन में और बहुत नियम क़ानून हैं छंद बद्ध  होना जरूरी नहीं जीवन में वैसे ही गेयता बनी रहे वही  बहुत है बहुत बढ़िया लिखा कुमार अजितेंदु जी वैसे आजकल ये छंद ,अलंकार ,शिल्प गेयता ,यगण ,तगण  मेरे सपने में भी आने लगे  हाहाहा बुरा न मानो दीवाली है 

Comment by Arun Sri on November 8, 2012 at 11:53am

बहुत खूब लिखा आपने ! कम से कम मुझ जैसे अतुकां त लिखने वालों के लिए तो अच्छा उदाहरण ही है ! :-)) बहरहाल ! अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 7, 2012 at 8:01am
आदरणीय गुरुदेव...आपका हार्दिक आभार...आपकी प्रतिक्रिया सुखद लगी...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2012 at 6:39pm

बहकने का बढिया कारण निकाला है .. हा हा हा...

ख़ैर, मज़ाक नहीं, सुन्दर प्रयास हुआ है , अजीतेन्दुजी.  बधाई

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2012 at 7:00pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीया प्राची दीदी.......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2012 at 6:59pm

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण सर.......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2012 at 6:59pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय रविकर सर........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 5, 2012 at 5:13pm

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, 

मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||.............वाह !

हार्दिक बधाई इस रचना के लिए प्रिय कुमार गौरव जी 

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