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मिट्टी को रंग के लाल-हरे रंग दे दिये
लिख-लिख किताबें सोंचने के ढंग दे दिए
देनी थीं वुसअतें तो खुले आसमान सी
धर्मो ने दायरे बड़े ही तंग दे दिए


चन्दन गुल या इत्र की खुशबू,जिसको होना है हो जाए 
घूमे जंगल-जंगल ,महके उपवन-उपवन धूम मचाए 
पर ,ख़ुलूस से बढ़ कर कोई गंध नहीं है इस दुनिया में 
जो बिखरे इस दर इठलाकर उस दर की देहरी महकाए


ईमान अब संदेह का पर्याय हो गया 
इंसानियत का भाव नष्टप्राय हो गया 
कुअरान,बाइबिल या कि गीता पढ़ी तो क्या 
संकीर्ण ही जब आपका अभिप्राय हो गया

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Comment by PHOOL SINGH on September 1, 2012 at 12:25pm

सीमा जी प्रणाम

 

बहुत सुन्दर मुक्तक  बधाई

फूल सिंह

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 25, 2012 at 11:44pm

ईमान अब संदेह का पर्याय हो गया 
इंसानियत का भाव नष्टप्राय हो गया 
कुअरान,बाइबिल या कि गीता पढ़ी तो क्या 
संकीर्ण ही जब आपका अभिप्राय हो गया

बहुत सुन्दर मुक्तक सीमा जी बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2012 at 9:22am

ईमान अब संदेह का पर्याय हो गया 
इंसानियत का भाव नष्टप्राय हो गया ---वाह सीमा जी लाख टके की बात कह दी ---अतिसुन्दर तीनो मुक्तक एक से बढ़कर एक बहुत बधाई 

Comment by seema agrawal on August 25, 2012 at 12:07am

स्वागत है रेखा जी ...बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by seema agrawal on August 25, 2012 at 12:02am

आदरणीय योगराज जी आपने जिस स्नेह के साथ तीनो मुक्तकों पर अपनी प्रतिक्रिया दी है वो मेरे लिए किसी पारितोषिक से कम नहीं है

 दिल से शुक्रिया आपका ........

Comment by Rekha Joshi on August 24, 2012 at 8:40pm

ईमान अब संदेह का पर्याय हो गया 
इंसानियत का भाव नष्टप्राय हो गया 
कुअरान,बाइबिल या कि गीता पढ़ी तो क्या 
संकीर्ण ही जब आपका अभिप्राय हो गया,बहुत खूब सीमा जी बहुत बढ़िया ,हार्दिक बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 24, 2012 at 7:37pm

//मिट्टी को रंग के लाल-हरे रंग दे दिये
लिख-लिख किताबें सोंचने के ढंग दे दिए
देनी थीं वुसअतें तो खुले आसमान सी
धर्मो ने दायरे बड़े ही तंग दे दिए// 
वाह सीमा जी वाह, धर्मों द्वारा दायरे संकुचित करने का ख्याल बेहद सुन्दर लगा. 

//चन्दन गुल या इत्र की खुशबू,जिसको होना है हो जाए 
घूमे जंगल-जंगल ,महके उपवन-उपवन धूम मचाए 
पर ,ख़ुलूस से बढ़ कर कोई गंध नहीं है इस दुनिया में 
जो बिखरे इस दर इठलाकर उस दर की देहरी महकाए// 
 //ख़ुलूस से बढ़ कर कोई गंध नहीं है इस दुनिया में// बहुत  ही सच्ची और सुच्ची बात कही है - वाह.  

//ईमान अब संदेह का पर्याय हो गया 
इंसानियत का भाव नष्टप्राय हो गया 
कुअरान,बाइबिल या कि गीता पढ़ी तो क्या 
संकीर्ण ही जब आपका अभिप्राय हो गया// 
बहुत गहरी बातें कहीं हैं यहाँ भी. ईमान जब संदेह का पर्याय हो जाये तो एक संवेदनशील कलम इसी तरह क्रन्दन करती है. बधाई स्वीकारें. 

Comment by seema agrawal on August 24, 2012 at 7:20pm

धन्यवाद नवल किशोर जी 

Comment by seema agrawal on August 24, 2012 at 7:19pm

शुक्रिया अलबेला जी 

Comment by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 3:24pm

बहुत खूब .........बधाई  seema ji !

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