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घनाक्षरी और कुंडलिया छंद

श्याम  घन माला बिच दामिनी दमकती ज्यों,घनश्याम अंक गोरी राधिका समा रही 

बरखा की बूँद मानो टोली गोप-गोपियों की, नाच नाच नाच मुद् मंगल मना रही 

पवन की डोरियाँ डोलाय  रहीं झूलानिया  कृष्ण-कृष्णप्रिया द्वै को झूलनी झुला रही 

लख लख प्रकृति के रूप ये अनूप गूँज  ,राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण चहूँ दिसी  छा रहीं 

 

कुटिया कुटीर डूब रहे दृग सलिल मे,कब प्रिय मेघ मेरे अंगना पधारोगे 

जलती अवनि बिन जल प्यासी सूख रही,कब इन्द्र देव कृपा अपनी उतारोगे

पावस मे पावक से खेत-खेत जल रहा ,धान बाजरा की कब अरजी विचारोगे

ताप संग जल रहे स्वप्न कौल आस सभी , बोलो देवराज कैसे विनती स्वीकारोगे 

जब-जब होगी धर्म की ,हानि धरा पर नाथ l

आओगे तुम तारने ,चक्र थाम कर हाथ ll

चक्र थाम कर हाथ ,वचन जो दिया निभाओ 

धर्म ध्वजा झुक रही ,व्यस्तता तज झट आओ 

गर न लिया संज्ञान ,अभी भी तो सुन योगी ,

व्यंग करेंगे लोग बात यह जब जब होगी l

आतंकी साये तले ,आजादी की रीत ,

गाती बुलबुल कैद मे ,स्वतंत्रता के गीत 

स्वतंत्रता के गीत,यही है क्या  आजादी 

जनता पर प्रतिबन्ध ,खुले मे हैं उन्मादी 

पता नहीं किस ओर, अचानक बम फट जाये 

घूम रहे बेफिक्र , यहाँ  आतंकी   साये  

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Comment

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Comment by seema agrawal on August 13, 2012 at 8:08pm

शुक्रिया अम्बरीश जी 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 13, 2012 at 2:42pm

//कुटिया कुटीर डूब रहे दृग सलिल मे,कब प्रिय मेघ मेरे अंगना पधारोगे 

जलती अवनि बिन जल प्यासी सूख रही,कब इन्द्र देव कृपा अपनी उतारोगे

पावस मे पावक से खेत-खेत जल रहा ,धान बाजरा की कब अरजी विचारोगे

ताप संग जल रहे स्वप्न कौल आस सभी , बोलो देवराज कैसे विनती स्वीकारोगे//

आदरेया सीमा जी ! अत्यंत प्रवाहपूर्ण सामयिक घनाक्षरी रची है आपने ! पहली घनाक्षरी का भी कोई  जवाब नहीं !

//

आतंकी साये तले ,आजादी की रीत ,

गाती बुलबुल कैद मे ,स्वतंत्रता के गीत 

स्वतंत्रता के गीत,यही है क्या  आजादी 

जनता पर प्रतिबन्ध ,खुले मे हैं उन्मादी 

पता नहीं किस ओर, अचानक बम फट जाये 

घूम रहे बेफिक्र , यहाँ  आतंकी   साये//

क्या कहने ! समय की मांग को संतुष्ट करता हुए यह कुंडलिया बहुत अच्छा लगा ! बहुत-बहुत बधाई आपको .....

उपरोक्त चारों ही  छंद बेहतरीन है, ......पुनः हार्दिक बधाई .....सादर

कृपया ध्यान दे...

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