For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सब से हसीन ख्वाब का मंजर सँभालकर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221/2121/1221/212
****
सब से हसीन ख्वाब  का मंजर सँभालकर
नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।
*
उर्वर करेगा कोई  तो  फिर  से ये सोच बस
सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।
*
कीटों  के  प्रेत   नोच  के  हर  शब्द  ले  गये
रक्खा है खत का आज भी पैकर सँभालकर।३।
*
पुरखों से सीख पायी है इस से ही रखते हम
नफरत के  दौर  प्यार  के  तेवर  सँभालकर।४।
*
फूलों से उस को दूर ही रखना सनम सदा
जिस ने रखा है हाथ में पत्थर सँभालकर।५।
*
आयी बहार जब से  है  अपने भी गाँव में
यादों में रख दिया है ये पतझर सँभालकर।६।
*

(28-10-23)
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 205

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 30, 2023 at 10:54am

आदरणीय धामी जी...ग़ज़ल अच्छी लगी...सादर

Comment by SALIM RAZA REWA on November 7, 2023 at 8:23pm
भाई लक्ष्मण धामी जी,
ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़बूल करें,
आप इस मंच में बहुत पुराने क़लमकार है , नुक़्ते का हमेशा ख़्याल रखा करें, ग़ज़ल अच्छी है कुछ मशविरे हैं अगर पसंद आए .
,,,,,,,
सब से हसीन (ख़्वाब )का (मंज़र) सँभालकर

नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।

*
उर्वर करेगा कोई  तो  फिर  से ये सोच बस (मिसरा बदलें)
सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।

*
कीटों  के  प्रेत   नोच  के  हर  शब्द  ले  गये

रक्खा है (ख़त को आज भी दिलबर )सँभालकर।३।

।४। शेर को और अच्छा कहें 

ऐसा कर लें
(फूलों को उनसे दूर ही रखना है लाज़मी)

जिस ने रखा है हाथ में पत्थर सँभालकर।५।

*
आयी बहार जब से  है  अपने भी गाँव में xx
यादों में रख दिया है ये पतझर x सँभालकर।६।
सही लफ़्ज़ है (पतझड़) ऐसा कर लें

(जब से बहार आई है अपने ही गाँव में
ख़ुशियों का रख लिया है ये ज़ेवर सँभालकर)
Comment by Sushil Sarna on November 5, 2023 at 8:23pm
वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही खूबसूरत बनी है । हार्दिक बधाई सर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service