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लगभग दो महीने होने को आये थे इस भयानक त्रासदी को और राकेश इस पूरे समय में लोगों की मदद के लिए हर समय तैयार था. दिन हो या रात, सुबह हो या शाम, बस किसी भूखे या परेशान के बारे में पता चलते ही वह अपनी टीम या कभी कभी अकेले ही निकल पड़ता था.
"भाई, तुम तो हर तरफ छा गए हो, समाचार पात्र हो या लोकल टी वी, जिसे देखो वही तुम्हारी बात कर रहा है", दोस्त का फोन आया तो वह मुस्कुरा पड़ा.
"देखो यार, ऐसा मौका जीवन में जब भी आये, अपनी तरफ से सब कुछ झोंक देना चाहिए. आखिर हम कुछ लोगों की तो मदद करने में सक्षम हैं ही ", उसने शालीनता से जवाब दिया.
"मदद तो बहुत से लोग कर रहे हैं लेकिन राकेश तुमने तो अपने पास की सारी बचत ही लगा दी इसमें, इतना करने की हिम्मत सबमे नहीं होती", दोस्त ने जब यह कहा तो उसे सचमुच अच्छा लगा.
"जो भी हो, लोगों की मदद कर पा रहा हूँ, बस इसी की संतुष्टि है. अच्छा अब निकलना है, एक बस्ती से फोन आया था, वहां खाना पहुंचाने जा रहा हूँ, फिर बात करेंगे", उसने फोन रखा और खाने के पैकेट को बैग में रखने लगा.
स्कूटर पर चलते समय उसके दिमाग में पिछले कुछ हफ़्तों की बातें और दोस्त से अभी हुई बात घूम रही थी. थोड़ा आगे जाने पर एक सूनी गली में उसे एक फटा कपड़े पहने व्यक्ति दिखा तो उसने अपनी स्कूटर रोक दी. वह डिक्की में से खाने का एक पैकेट निकाल कर उसकी तरफ बढ़ रहा था तभी उसने देखा कि उस व्यक्ति ने अपने झोले से एक डब्बा निकाला. उस डब्बे में से उस व्यक्ति ने रोटी निकाली और खाने ही जा रहा था कि सामने एक कुत्ता आकर बैठ गया और उसने वह रोटी उस कुत्ते को बढ़ा दी. राकेश के कदम कुछ पल के लिए ठिठक गए, फिर उसने खाने का पैकेट उस फटेहाल व्यक्ति को इज्जत से पकड़ा दिया.
बस्ती की तरफ जाते समय उसके दिमाग में छन्न से कुछ टूटा और एक पर्त धीरे धीरे पिघल रही थी जो पिछले कुछ समय से समाचार पत्रों ने और लोगों की तारीफ़ ने चढ़ा दी थी.


मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on May 26, 2020 at 12:08pm

इस सकारात्मक और उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on May 26, 2020 at 12:07pm

इस सकारात्मक और उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी

Comment by विनय कुमार on May 26, 2020 at 12:07pm

इस सकारात्मक और उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by Samar kabeer on May 25, 2020 at 6:22am

जनाब विनय कुमार जी आदाब, अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 24, 2020 at 1:27pm

आ. भाई विनय जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 23, 2020 at 9:11am

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।बहुत सारगर्भित एवम समयानुकूल बेहतरीन लघुकथा।जो अपने मुँह का निवाला भी किसी को देने की हिम्मत रखता है। वही असली सेवा कर रहा है।

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