For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऊपर क्या है

सुनील आसमान I

तारक , सविता , हिमांशु

सभी  भासमान I

बीच में क्या है ?

अदृश्य ईथर

कल्पना हमारी I

क्योंकि

ध्वनि और प्रकाश

नहीं चलते  बिना माध्यम के

वैज्ञानिक सोच है सारी I 

नीचे क्या है ?

सर ,सरि, सरिता, समुद्र, जंगल, झरने

उपवन में है पंकज, पाटल ,प्रसून

आते है मिलिंद, मधु-कीट, बर्र

तितलियाँ रंग भरने I 

चारो ओर मैदान, पठार .पर्वत, प्रस्तर

घाटी, गह्वर, उपत्यिकाये

खेत-खलिहान, झाड़ी, वनस्पतियाँ, पेड़ –पौधे,

बालियां पवन-घात से लहराये I       

इधर घर-घरौंदे, मकान, झोपडी

खोली, बस्ती, नगर, महानगर

मेंड़, गली-गलियारा, पथ, डगर I

असंख्य जीव, घरेलू ,पालतू ,

काम में आनेवाले और हिंस्र जीव

सबसे अलग एक वह

मेधा से क्रियमाण ------

है कही कोई साम्य ?

विषमताओ से भरा है यह  

सम्पूर्ण जगत, समूचा ब्रह्माण्ड

तो क्या यह है वह पहला और शाश्वत कोलाज

जिसे ईश्वर ने बनाया  !

.

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 834

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 11:00pm

असंख्य जीव, घरेलू ,पालतू ,
काम में आनेवाले और हिंस्र जीव
सबसे अलग एक वह
मेधा से क्रियमाण ------
है कही कोई साम्य ?
विषमताओ से भरा है यह  
सम्पूर्ण जगत, समूचा ब्रह्माण्ड
तो क्या यह है वह पहला और शाश्वत कोलाज
जिसे ईश्वर ने बनाया  !

आपकी व्यापक सोच से इस कविता का कैनवास इतना विस्तृत हुआ है आदरणीय गोपालजी कि इस सर्वसमाही सृष्टि का अद्भुत स्वरूप उभर कर आया है.
हार्दिक बधाइयाँ इस भावप्रधान रचना के होने पर.
सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 16, 2014 at 8:44pm

प्रिय धामी जी

आपका सादर आभार i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2014 at 11:35am

आ0 भाई गोपाल नारायण जी, जिस तरह इश्वर ने ब्रहमांड में प्रथम कोलाज रचा उसी ततरह आपने उस कोलाज को  शब्दों का बेहतरीन कोलाज बनाकर मन मोह लिया । इसके लिए दिल से दाद कबूलें ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 16, 2014 at 11:21am

आदरणीय निकोर जी

आपने सत्य कहा है भी और नहीं भी  i प्रक्रति में आये दिन इतने व्यापक परिवर्तन होते है  कि उनका रूप बादलता भी है i बस बात दृष्टि की है i आपने स्पष्ट कर ही दिया है i इस पारखी  नजर को प्रणाम i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 16, 2014 at 11:17am

आदरनीय  विजय शंकर जी

आपका शत -शत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 16, 2014 at 11:16am

महनीया रामानी जी

आपने  अपने स्नेह का ऐसा  प्रदर्शन किया  i  चरण स्पर्श i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 16, 2014 at 11:13am

आदरणीय करुण जी

आपका आभार ह्रदय से प्रकट करता हूँ

Comment by vijay nikore on July 16, 2014 at 7:05am

यह शाश्वत कोलाज है और है भी नहीं...यदि है तो कब-कैसा दिखता है, हम उसे किस प्रकार अनुभव करते हैं... यह सब निर्भर है  हमारी दृष्टि पर, और यह निर्भर है समय पर और उस समय की हमारी प्रकृति पर। आपने एक बहुत ही अनोखे विषय पर यह अनुपम रचना लिखी है। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2014 at 12:52am
आदरणीय डॉ o गोपाल नरायन जी , इस सुन्दर कॉस्मिक कविता के लिए बहुत बहुत बधाई.
Comment by कल्पना रामानी on July 14, 2014 at 10:21pm

बहुत ही ज्ञान वर्धक सुंदर शब्दावली में रची हुई अनंत का सार बाँटती कविता अतुल्य है। आपकी लेखनी को नमन आदरणीय गोपाल नारायण जी॥ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service