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आँधियाँ ( लघु-कविता ) - डॉo विजय शंकर

ये कुदरत है ,
रुख , दाब हवा का संतुलन
बिगाड़िये मत , बना रहने दीजिये।
आँधियाँ किसी के बुलाये ,
लाये से , नहीं आतीं ,
और आ जाएँ तो
किसी के भगाये से नहीं जातीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on December 27, 2016 at 2:34pm

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी। आपने अपनी इस सूक्ष्म सी कविता में बहुत गहरी और गंभीर बात कह दी। पुनः बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 27, 2016 at 1:02pm

आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, बहुत बढ़िया वैचारिक प्रस्तुति. हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

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