For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रक्त से सारा मरुस्थल तरबतर करते हुए
प्राण तो त्यागे मगर खुद को अमर करते हुए

सब्र की सारी हदों से कोई आगे बढ़ गया
अग्निपथ पे तिशनगी को अग्रसर करते हुए

उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए

धीरे धीरे बोझ बुनियादों पे कम होता गया
वक़्त यूँ गुज़रा हवेली को खंडहर करते हुए

ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए

Views: 500

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by fauzan on June 7, 2010 at 9:48pm
Yogi bhai bahut shukria himmat badhane ke liye

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 7, 2010 at 8:33pm
//ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए//
मौत को मध्यांतर समझना और कहना हरेक के बूते की बात नही ! ये शेयर तो किसी बहुत गहरी अध्यात्मिक सोच की तरफ इशारा कर रहा है ! जियो फौजान भाई जियो, मुझे फख्र है की आप मेरे मित्र हैं !
Comment by Sanjay Kumar Singh on June 5, 2010 at 3:49pm
ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए ,
Bahut badhiya likhey hai, aap ki gazal mey jo lajjat hai wo aur jagah nahi milti, bahut badhiya,
Comment by satish mapatpuri on June 4, 2010 at 3:28pm
उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए

धीरे धीरे बोझ बुनियादों पे कम होता गया
वक़्त यूँ गुज़रा हवेली को खंडहर करते हुए
फौजान भाई, कमाल है.
Comment by Admin on June 3, 2010 at 11:38pm
उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए,

वाह जनाब वाह, आपके उबुरे-क़लम का कोई सानी नही, बहुत ही उम्द्दा ख्यालात है आपके, एक बेहतरीन ग़ज़ल,बहुत बहुत धन्यबाद आपका,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 3, 2010 at 11:15pm
रक्त से सारा मरुस्थल तरबतर करते हुए
प्राण तो त्यागे मगर खुद को अमर करते हुए

वाह फ़ौज़ान भाई वाह , क्या शानदार ग़ज़ल आपने लिखा है, आज पुनः मुझे तारीफ के लिए शब्द की कमी महसूस हो रही है, मैं यह टिप्पणी लिखने से पहले आप के इस ग़ज़ल को स्वर देकर प्रीतम भाई को जी टॉक पर सुना रहा था , बहुत ही प्यारा और सारगर्भित रचना बन पड़ा है, सभी शेअर एक पर एक है,

ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए,

एक सच्चाई है ये....
जिंदगी एक खेल, कोई पास कोई फेल,
कुछ लोग जीत कर भी हार जाते है,
और कुछ लोग हार कर भी जीत जाते है,
यही तो है जिंदगी का खेल,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 3, 2010 at 10:40pm
सब्र की सारी हदों से कोई आगे बढ़ गया
अग्निपथ पे तिशनगी को अग्रसर करते हुए
bahut badhiya fauzan bhai........
Comment by Biresh kumar on June 3, 2010 at 10:02pm
lajawab hai bhai
concntrate hai
kiya piroya hai khubsurti se lafzo ko
mere pas sabd nahi hai .....its just fabulous!!!!!!!!!!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service